रिश्ते... रेशम के धागों से नाज़ुक और रेशम जैसे से ही ख़ूबसूरत, चमकीले और नर्म... बहुत संभाल के रखना पड़ता है इन्हें... ज़िन्दगी की ऊँची-नीची, आढ़ी-तिरछी पगडंडियों पर किसी छोटे से बच्चे की तरह इनका हाथ थाम के चलना पड़ता है... सहारा देना पड़ता है... कभी गिरे तो प्यार से उठाना पड़ता है... मुश्किल हालातों की गर्द झाड़ के... दुलार के, पुचकार के फिर से संवारना पड़ता है... आख़िर हमारे अपने ही तो हैं ये भी... ऐसे कैसे मुश्किल समय में इनका साथ छोड़ दें...
बड़े अनोखे रूप होते हैं इन रिश्तों के... हर किसी से एक अनोखा रिश्ता होता है... प्यार का... विश्वास का... दोस्ती का... सहानुभूति का... तो कभी कभी बस इक मुस्कान का... कितने ख़ूबसूरत होते हैं कभी मोतबर तो कभी मुख़्तसर से ये रिश्ते... कितना कुछ देते हैं ये हमें... प्यार, अपनापन, शान्ति, सुकून, भावात्मक मज़बूती... पर इनका रूप हमेशा ऐसा ख़ूबसूरत रहे ये ज़रूरी नहीं... कभी कभी वक़्त और हालात इन्हें कुरूप बना देते हैं... समय आपके धैर्य की परीक्षा लेता है... आपको और आपके रिश्ते को हाशिये पे रख के अपनी कसौटी पे परखता है... ऐसे में हमें ही इन रिश्तों को बचाना होता है... वापस इन्हें वो ख़ूबसूरत रूप देना होता है...
रिश्ते के एक छोटे से बीज को एक मज़बूत पेड़ का आकार भी हम ही दे सकते हैं... बस ऐसे नाज़ुक समय में जब हमारे रिश्ते को हमारी ज़रुरत हो उसका साथ कभी मत छोड़िये... अपने अहम को रिश्ते के बीच कभी मत लाइये... चुप मत रहिये... लफ़्जों का पुल टूटने मत दीजिये... पहल करिये... बात करके आपस की ग़लतफहमी को मिटाइये... मत मुरझाने दीजिये अपने रिश्ते को... इस मुख़्तसर सी ज़िन्दगी में चंद रिश्ते भी नहीं कमाये तो क्या कमाया...
रिश्ते कुम्हार की चाक पर पड़ी
नर्म मिट्टी से होते हैं
जैसा चाहो आकार दे दो
जैसे चाहो ढाल लो
कभी ख़ूबसूरत दिये का आकार ले
ज़िन्दगी में उजाला करते हैं
तो कभी शीतल सुराही बन
मन को ठंडक पहुंचाते हैं
कभी कभी हाथों के ज़्यादा दबाव से
ये मिट्टी विकृत रूप ले लेती है
अपेक्षा और उपेक्षा के दबाव से
रिश्ते भी कभी विरूप हो जाते हैं
एक कुशल कुम्हार ही
इस विरूप होती मिट्टी को
फिर से सही आकार दे कर
ख़ूबसूरत बना सकता है
सही आंच में सही समय तक पका कर
उसे मज़बूत बना सकता है
रिश्ते भी हालात और समय की ताप से
मज़बूत बनते हैं
ज़रुरत है बस धैर्य रखने की...
-- ऋचा
रिश्ते भी हालात और समय की ताप से
ReplyDeleteमज़बूत बनते हैं
ज़रुरत है बस धैर्य रखने की...
bahut khoob... bahut achche expressions..
Happy Blogging
रिश्ते कुम्हार की चाक पर पड़ी
ReplyDeleteनर्म मिट्टी से होते हैं
जैसा चाहो आकार दे दो
जैसे चाहो ढाल लो
!!!........ एक ख़ास उम्र , ख़ास वक़्त, फिर रिश्ते चाक से अलग !
कभी ख़ूबसूरत दिये का आकार ले
ज़िन्दगी में उजाला करते हैं
तो कभी शीतल सुराही बन
मन को ठंडक पहुंचाते हैं
रिश्तों में मिठास हो तो ऐसा ही होता है ...
कभी कभी हाथों के ज़्यादा दबाव से
ये मिट्टी विकृत रूप ले लेती है
अपेक्षा और उपेक्षा के दबाव से
रिश्ते भी कभी विरूप हो जाते हैं
कई बार नर्म दबाव को भी मिट्टी ग्रहण नहीं करती !
एक कुशल कुम्हार ही
इस विरूप होती मिट्टी को
फिर से सही आकार दे कर
ख़ूबसूरत बना सकता है
रिश्तों के सन्दर्भ में सारी कुशलता हतप्रभ होती है !
सही आंच में सही समय तक पका कर
उसे मज़बूत बना सकता है
रिश्ते भी हालात और समय की ताप से
मज़बूत बनते हैं
ऐसा होता तो कैकेयी की जिह्वा पर हठ का लोभ कैसे होता !
ज़रुरत है बस धैर्य रखने की...
ताउम्र धैर्य ही होता है
वक़्त वक़्त को जितना गूँध सके हम! गूँध लिया
ReplyDeleteआटे की मिक़्दार कभी बढ़ भी जाती है
भूख मगर इक हद से आगे बढ़ती नहीं
पेट के मारों की ऐसी ही आदत है-
भर जाए तो दस्तरख़्वान से उठ जाते हैं।
आओ, अब उठ जाएँ दोनों
कोई कचहरी का खूँटा दो इंसानों को
दस्तरख़्वान पे कब तक बाँध के रख सकता है
कानूनी मोहरों से कब रुकते हैं, या कटते हैं रिश्ते
रिश्ते राशन कार्ड नहीं हैं।
who can said this.....off course.Gulzar
Harek pankti dohrana chahti thi....copy ka function is samay 'diable' ho gaya hai!Niyahat khoobsoorat khayalat pesh karti aapki yah rachna!
ReplyDeleteरिश्तों का धैर्य से गहरा सम्बन्ध है ।
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत बिम्बों का प्रयोग किया है...बहुत सुन्दर रचना....भूमिका बहुत पसंद आई
ReplyDeleteज़रुरत है बस धैर्य रखने की...
ReplyDeleteजिसने ये समझ लिया उसने रिश्तो को समझ लिया..
रिश्तों की परिभाषा बहुत ही सुन्दर दी है।
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति और क्या खूबसूरत शब्द सयोंजन है
ReplyDeleteachcha likha hai
ReplyDeleteसच में रिश्ते बहुत नाज़ुक होते हैं ... कोमल हाथों से निखारा जा सकता है इन्हे और कठोर हाथों से तोड़ा भी जा सकता है .... बहुत अनुपम रचना है ...
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