Monday, March 19, 2012

कुछ तो पढ़िए कि लोग कहते हैं आज "ग़ालिब" ग़ज़ल सरां न हुआ...



देखना तक़रीर की लज्ज़त कि जो उसने कहा
मैंने ये जाना कि गोया ये भी मेरे दिल में है
-- मिर्ज़ा ग़ालिब

एक वो दौर के जब पूछते थे कि ग़ालिब कौन है और एक ये जब कहते हैं होगा कोई ऐसा भी कि ग़ालिब को ना जाने...

ग़ालिब को जितना भी थोड़ा बहुत जाना-समझा है उसके पीछे सिर्फ़ और सिर्फ़ तीन लोगों का हाथ है... जो हमारे लिये ग़ालिब की रूह, शक्ल और आवाज़ बने... सबसे पहले और अहम वो शख्स जिसका ग़ालिब के प्रति लगाव और उन्हें आम आवाम तक पहुँचाने का जुनून और सपना एक टीवी सीरियल के ज़रिये हम तक पहुँचा... तब जब टीवी का मतलब सिर्फ़ दूरदर्शन हुआ करता था... और उम्र का वो दौर कि उर्दू फ़ारसी तो छोड़िए हिंदी के कठिन शब्द भी ब-मुश्किल ही समझ आते थे... उस दौर में भी वो शख्स जब अपनी पुरकशिश आवाज़ में बल्लीमारां के मोहल्ले की पेचीदा दलीलों की सी गलियों में एक कुरान-ए-सुख़न का सफ़हा खोलता था और कहता था कि यहाँ असद उल्लाह खां "ग़ालिब" का पता मिलता है तो उनकी आवाज़ की उँगली थामे हम भी पहुँच जाते थे क़ासिम की उन अँधेरी गलियों में... गुलज़ार, जी हाँ यही तो हैं वो शख्स जिन्होंने पहली बार ग़ालिब के बारे में जानने की शौक़-ए-तहकीक़ पैदा करी थी मन में...

कौतुहल से भरे हुए जब झाँक के देखा गली क़ासिम-जान में तो लम्बा सा चोगा पहने और लम्बी सी काली टोपी लगाये एक और शख्स नज़र आया... जाने कौन सी भाषा में कुछ बड़बड़ा रहा था और लोग वाह वाह किये जा रहे थे... मिर्ज़ा के शेर (जो उस वक़्त कम से कम हमारी समझ के परे थे) पढ़ते ये शख्स थे नसीरुद्दीन शाह... जिन्होंने ना केवल मिर्ज़ा ग़ालिब का किरदार निभाया इस सीरियल में बल्कि उस किरदार को इस हद तक जिया कि आज भी जब ग़ालिब को याद करते हैं तो नसीर साहब का चेहरा ही ज़हन में उभरता है... एक बार गुलज़ार साब अपने किसी इंटरव्यू में बता रहे थे की नसीर इस कदर खो जाते थे किरदार में कि शूटिंग के बाद उन्हें झकझोर के बाहर निकालना पड़ता था मिर्ज़ा ग़ालिब के किरदार से...

तीसरे शख्स वो जो तमाम दुनिया वालों के लिये ग़ालिब की आवाज़ बने... सुप्रसिद्ध ग़ज़ल गायक जगजीत सिंह जी... जब ग़ज़ल समझ भी नहीं आती थी तो उन्होंने ग़ालिब की आवाज़ बन के हमें ग़ज़लें सुनना सिखाया... बाज़ीचा-ए-अत्फ़ाल है दुनिया मेरे आगे, होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मेरे आगे... दीवानगी का आलम ये कि उस वक़्त १५० रूपये में मिलने वाले इस दो कैसेट के एल्बम को लेने के लिये जाने कितने महीनों का जेबख़र्च बचाया... दीवानगी कुछ और बढ़ी तो अब तक सिर्फ़ कानों को सुकून देती उन ख़ूबसूरत ग़ज़लों को समझने का भी दिल हुआ तो उसका भी जैसे तैसे इंतज़ाम करा... किसी कबाड़ी वाले कि दुकान से ग़ालिब की ग़ज़लों की एक किताब मिल गई... शायद ५ रूपये में... सारे मुश्किल शब्दों के अर्थ दिये हुए थे उसमें.. बस फिर क्या था... कैसेट प्लयेर पर जगजीत सिंह और हाथ में वो किताब... सालों लगे उन ग़ज़लों का मर्म समझने में... आज भी कितना समझी हूँ मालूम नहीं... हाँ प्यार ज़रूर हो गया है ग़ालिब की शायरी और शख्सियत से !

कुछ साल पहले मिर्ज़ा ग़ालिब सीरियल की विडिओ सीडी खरीदी और पूरा सीरियल फिर से देखा, जाने कितनी बार... इस बार शायद सही मायनों में थोड़ा कुछ समझ आया... गुलज़ार के निर्देशन में एक-एक चीज़ की डीटेलिंग इतनी अच्छी है कि बस तारीफ़ के कितने भी शब्द सूरज को दिया दिखाने जैसे होंगे... यकीन मानिये उसे देखते हुए रात के एक दो कब बज जाते थे पता ही नहीं चलता था फिर भी बन्द करने का दिल नहीं होता था... गुलज़ार साब, नसीर साब और जगजीत जी... ग़ालिब से हमारी पहचान कराने के लिये इन तीनों का ही तह-ए-दिल से शुक्रिया...

इतने सालों में अभी उस सीरियल और ग़ालिब की ख़ुमारी से बाहर निकल भी नहीं पाये थे कि उसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए गुलज़ार साब ने एक जादू का पिटारा और थमा दिया... लो सुनो और फिर से मदहोश हो जाओ... इस जादुई पिटारे का नाम है तेरा बयान ग़ालिब... दो दिन से जो नशा चढ़ा है गुलज़ार साब की आवाज़ में पढ़े गये ग़ालिब के ख़ुतूतों का कि बस पूछिये मत... उसपर जगजीत जी की आवाज़ में ग़ालिब कि वो ग़ज़लें जो पिछले एल्बम का हिस्सा नहीं बन पायीं थी... गुलज़ार साब जब ग़ालिब के लिखे ख़ुतूत पढ़ना शुरू करते हैं तो एक बारगी लगता है आप ग़ालिब के ही दौर में पहुँच गये हैं... नसीर ना होते हुए भी जैसे हर पल ज़हन में उभरते रहते हैं... और जगजीत जी कि आवाज़... सब मिल कर ऐसा समां बाँध देते हैं... उफ़! कैसी कैफ़ियत है क्या बताऊँ...

बस अब और कुछ ना कह पाऊँगी... इतना कर सकती हूँ कि एक छोटा सा हिस्सा सुन देती हूँ आपको भी... बाक़ी अगर आपको भी ग़ालिब से प्यार है हमारी तरह तो ये सीरियल और ये एल्बम किसी भी कीमत पर छोड़ नहीं कर सकते आप...

बस बहुत, बहुत, बहुत ढेर सारा शुक्रिया गुलज़ार साब, नसीर साब, जगजीत जी, सलीम आरिफ़ जी और इस सीरियल और इस एल्बम से जुड़े हर उस शख्स का जिन्होंने ग़ालिब को हम तक पहुँचाया और माशा-अल्लाह क्या ख़ूब पहुँचाया !!!





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