
इस राज़ को क्या जाने साहिल के तमाशाई
हम डूब के समझे हैं दरिया तेरी गहराई
जाग ए मेरे हमसाया ख़्वाबों के तसलसुल से
दीवारों से आँगन में अब धूप उतर आई
चलते हुए बादल के साये के त-अक्कुब में
ये तशनालबी मुझको सहराओं में ले आई
ये जब्र भी देखे हैं तारीख की नज़रों ने
लम्हों ने खता की थी, सदियों ने सज़ा पायी
क्या सानेहा याद आया मेरी तबाही का
क्यूँ आपकी नाज़ुक सी आँखों में नमी आई
तसलसुल - continuous, त-अक्कुब - to chase,
तशनालबी - thirst, जब्र - zulm, सानेहा - incident.
वाह मजा आ गया आपकी ये पोस्ट पढ़कर
ReplyDeleteमुजफ्फर रजमी की है।
ReplyDeleteकौछ लाइनें गलत हैं आपकी
ये पंक्तियां जनाब मुज़फ्फर रज़मी की है, उन्वान है -"लम्हों ने खता की थी सदियों ने सजा पाई"
ReplyDeleteपूरी नज़्म इस लिंक से देखी जा सकती है।
https://m.facebook.com/permalink.php?id=220467668076235&story_fbid=344164429039891
ये पंक्तियां जनाब मुज़फ्फर रज़मी की है, उन्वान है -"लम्हों ने खता की थी सदियों ने सजा पाई"
ReplyDeleteपूरी नज़्म इस लिंक से देखी जा सकती है।
https://m.facebook.com/permalink.php?id=220467668076235&story_fbid=344164429039891
Zanaab Mujaffar Razmi kee ye Kaaljayee Nazm hai....Sanyog se ve bhee Kairana ke hee rahne waale thay jahaan aajkal UP kee satta paane kee ek nayee patkatha likhi jaa rahi hai....
ReplyDeleteNice
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