Saturday, June 26, 2010

तन्हां सी शाम



सूरज की सिन्दूरी बिंदी लगाये
एक तन्हां सी शाम आयी थी आज
कुछ ख़ामोश सी थी
उस सिन्दूरी आभा के पीछे
यूँ लगा इक मौन उदासी छिपी है

कुछ कहना था उसे शायद
पर किस से कहे
उगते को तो सभी सलाम करते हैं
डूबते की कौन सुने

पंछी भी अपने अपने
घरौंदों में लौटने की जल्दी में हैं
किसी के भी पास वक़्त नहीं है
जो दो पल उसके पास ठहरे

जाने क्यूँ उसे देखा तो
क़दम ख़ुद-ब-ख़ुद थम गये
बहुत अपनी सी लगी वो
शायद दोनों ही तन्हां थे

कुछ देर साथ बैठे हम
कुछ ख़ामोशियाँ बांटी
मन कुछ हल्का सा महसूस हुआ
शायद दिल की तरह
तन्हाई को भी तन्हाई से राह होती है

जब उठ के आने लगी मैं
तो मुझे गले लगा के बोली
कभी कभी आ जाया करो यूँ ही
कुछ समय साथ बिताएंगे
अच्छा लगता है किसी का यूँ साथ होना...

-- ऋचा

Thursday, June 17, 2010

हाँ... तुम ख़ास हो !!!


कितने ही लोग, कितने ही रिश्ते होते हैं हमारे आसपास जिनसे हमारा अस्तित्व जुड़ा होता है... जो हमें वो बनाते हैं जो हम हैं... वो जिनसे हम प्यार करते हैं और वो जो हमें प्यार करते हैं... वो कोई भी हो सकते हैं... हमारे घर-परिवार वाले, हमारे दोस्त, हमारे अपने... कभी सोचा की ये लोग हमारी ज़िन्दगी में ना हों तो क्या हो... ज़िन्दगी के मायने ही बदल जाएँ शायद... या पूरी ज़िन्दगी ही... पर कितनी बार होता है की हम इन अपनों को "Special" फील कराते हैं... उन्हें ये महसूस कराते हैं की हाँ, वो हमारे लिये ख़ास हैं... हाँ, हमें उनकी ज़रुरत है... हाँ, उनका ना होना हमारी ज़िन्दगी को प्रभावित करेगा... शायद ही कभी ऐसा करते हैं हम... है ना ? हमेशा इन अपनों को "for granted" लेते हैं... या शायद उन लोगों की इतनी आदत पड़ चुकी होती है हमारी ज़िन्दगी में, कि कभी इस बारे में सोचते ही नहीं कि वो कितने ख़ास है हमारे लिये... कि उनके बिना हम "हम" नहीं होंगे...

हमें हमेशा यही लगता है की ये तो हमारे अपने हैं... ये कहाँ जायेंगे... ये तो हमेशा हमारे पास ही रहेंगे... हम सही भी होते हैं... वो कहीं नहीं जायेंगे क्यूँकि वो हमारे अपने हैं... पर क्या ये हमारा फ़र्ज़ नहीं बनता की हम भी उन्हें ये महसूस करायें की हम भी हैं उनके लिये... कि हम भी हमेशा उनके लिये मौजूद रहेंगे उनकी ज़िन्दगी की हर छोटी-बड़ी ज़रूरतों में, हर अच्छे-बुरे पल में... माना आपको उनकी परवाह है और कद्र भी पर हमेशा खामोशियाँ पढ़ना किसी को भी अच्छा नहीं लगता... कभी-कभी खुल के जता भी देना चाहिये... कभी किसी अपने को ये महसूस कराइये कि वो कितना ख़ास है आपके लिये... उसे भी एक मुस्कान दे कर देखिये... यकीन जानिये उसे ये छोटी सी ख़ुशी दे कर आपको जो सुकून मिलेगा उसका कोई मोल नहीं...

और एक राज़ की बात बतायें? ये काम बिलकुल भी मुश्किल नहीं है... छोटी छोटी सी बातें हैं पर अगर आप कर पायें तो सच में आपके अपने, आपके और भी करीब आ जायेंगे... बहुत कुछ नहीं करना होता है किसी को ख़ास महसूस कराने के लिये... ना ही बहुत मेहनत, समय या पैसा लगता है इसमें... किसी ख़ास मौके पर तो हर कोई आपको याद करके ये एहसास करता है की वो मौका, वो दिन आपके लिये ख़ास है... पर कभी बेवजह ही, बिना किसी बात के बस यूँ ही याद कर के देखिये... एक प्यारा सा SMS कर के देखिये... बेवजह फ़ोन कर के बस हाल चाल ले लीजिये... या यूँ ही बोल दीजिये तुम्हारी याद आ रही थी, ऐसे ही बात करने का मन हुआ... कितना टाइम लगता है इस सब में ? चंद मिनट बस... ऑफिस से घर लौटते समय सबके लिये कुछ लेते जाइए... फूल, चॉकलेट या कुछ भी जो घर पे सबको पसंद हो... कभी ऐवें ही कॉफी पीने चले जाइए अपने दोस्त के साथ ये कह के की बस साथ बैठने का मन है... या एक जादू की झप्पी दे दीजिये बेवजह और देखिये आपके अपने कैसे खिल उठेंगे :)

आपके अपनों को ज़्यादा कुछ नहीं चाहिये होता है आपसे... बस आपका थोड़ा सा समय और थोड़ा सी परवाह... और आपकी आँखों में अपने लिये थोड़ा सा प्यारा और ये भरोसा की हाँ वो भी ख़ास हैं आपके लिये... आपको भी उनकी ज़रुरत है... किसी अपने को ये एहसास करा के देखिये कभी, आप ख़ुद भी उतना ही अच्छा महसूस करेंगे... इस भौतिकवादी दुनिया में कोई भी एहसास इस एहसास से ज़्यादा ख़ास नहीं होता की किसी को आपकी ज़रुरत है... आप भी ख़ास हैं किसी के लिये... 

क्या कभी मैंने ये कहा
कि तुम्हारे बिना
ज़िन्दगी का एक पल भी
नहीं सोच सकती

क्या कभी ये कहा
कि कभी सोचा ही नहीं
तुम ना होते तो
मैं क्या करती
शायद मैं "मैं" ना होती

क्या कभी ये कहा
कि बहुत अच्छा लगता है
जब बिन मेरे कुछ बोले
मेरे मन की हर बात पढ़ लेते हो

कभी ये भी नहीं कहा ना
कि वो एहसास
दिल को गहरे तक
छू जाता है कहीं
जब उदास होती हूँ मैं
और मेरे आँसू मीलों दूर बैठे
तुम्हारी आँखें भी नम कर जाते हैं

या कभी मेरी हँसी कि खनक
जब सुनाई देती है तुम्हारी आवाज़ में
तो मन और भी ख़ुश हो जाता है
जी चाहता है नाच उठूँ

कभी कहा क्या मैंने ?
नहीं ?

लो आज कहती हूँ
हाँ... मुझे ज़रुरत है तुम्हारी
अपनी ज़िन्दगी के हर पल में
हाँ... तुम ख़ास हो मेरे लिये !!!

-- ऋचा

Thursday, June 10, 2010

मासूम सी एक ख़्वाहिश...


पूरे दिन ऑफिस के बिज़ी हेक्टिक स्केड्यूल के बाद जब घर पहुँच के टी.वी. ऑन करो तो कुछ भी देखने लायक नहीं आ रहा होता है.... आधे चैनल्स पर तो वही सास-बहु के गंदे सीरीअल्स चल रहे होते हैं जिसमें घर की महिलायें एक दूसरे के लिये हमेशा कोई ना कोई षड्यंत्र रचा करती हैं... आधी रात में भी जागती हैं तो हेवी साड़ी और फुल मेकअप में... भगवान जाने कैसे मैनेज करती है इतना सब... सोते में भी शायद मेक अप ही टच अप करती रहती हैं... कोई न्यूज़ चैनल लगाओ तो या तो वही गन्दी राजनीति या किसी रिऐलिटी शो की चर्चा या फिर कोई तंत्र मन्त्र वाले बाबाजी आपकी सारी समस्याओं का इलाज बताते हुए दिखाई देते हैं... और कुछ नहीं तो कोई भी ऐरा गैरा क्रिकेटर "सचिन" को क्रिकेट खेलना सिखा रहा होता है... "उसे ये शॉट ऐसे नहीं मारना चाहिये था, शॉर्ट पिच बाल को कैसे मिस कर दिया, बाउंसर पे बैट छुआने की क्या ज़रुरत थी"... अब भला बताइये सचिन को ये खेलना सिखायेंगे :) खैर जाने दीजिये... आगे चलते हैं... कोई बिज़नस चैनल लगाओ तो सेंसेक्स का उतार चढ़ाव, मंदी, रिसेशन और टेंशन... अब कोई ये सब देख कर कैसे रिलैक्स कर सकता है भला... ऐसे में हमारा साथ देते हैं कार्टून चैनल्स और हमारा फेवरेट "टॉम एंड जेरी"... बिलकुल "स्ट्रेस बस्टर" की तरह काम करते हैं... यकीन ना हो तो कभी आज़मा के देखिएगा... एक कप गरमा गरम चाय और आधा घंटा टॉम और जेरी का साथ... सारी थकान, सारी प्रॉब्लम्स, सारी टेंशन मिनटों में छू मंतर... :)

कितनी अच्छी होती है इन कार्टून कैरेक्टर्स की दुनिया... हर समय बस मस्ती मज़ाक, धमाचौकड़ी, उछल कूद और शरारत और किसी बात की कोई टेंशन नहीं... बड़ा मज़ा आता है इन्हें देखने में... सुपर हीरो नहीं होते हैं पर फिर भी वो कुछ भी कर सकते हैं... २० मंज़िल की इमारत से छलांग लगा कर भी बच जाते हैं... पूरी की पूरी गाड़ी उनके ऊपर से गुज़र जाये फिर भी फ़ौरन ही उठ कर खड़े हो जाते हैं और फिर से वही शरारतें और मस्ती शुरू... कितने अच्छे होते हैं ना, कम से कम हम इंसानों से तो अच्छे ही होते हैं ये और इनकी मासूम दुनिया :)

कल ऐसे ही "टॉम एंड जेरी" देखते देखते मन में ख़याल आया की इंसानों कि इस बनावटी दुनिया से कितनी अच्छी और प्यारी है इनकी दुनिया... एक तरफ हम इंसानों की दुनिया में तो इमोशंस भी बनावटी हैं और जज़्बात भी और यहाँ तक की अब तो हँसी भी बनावटी होती जा रही है... वो क्या कहते हैं आज की भाषा में... "प्लास्टिक स्माइल"... और दूसरी तरफ हैं ये कार्टून कैरेक्टर्स जो सबको सिर्फ़ हँसी बाँटते हैं... बिना किसी बनावट या मिलावट के... कोई भी इनसे चिढ़ता नहीं, कोई भी इन्हें देख कर कभी उदास नहीं होता... ये सब सोचते सोचते "ऐज़ यूज़ुअल" फिर एक मासूम सी ख़्वाहिश जागी मन में :) काश हम भी इन कार्टून कैरेक्टर्स जैसे होते... एक बार जी के देखते इनकी दुनिया में... महसूस करते कि कैसी लगती है ये प्यारी, मासूम सी दुनिया अन्दर से... मन तो हुआ की बस टी.वी. में ही घुस जाएँ और उनके साथ ही ढेर सारी मस्ती करें कुछ देर... अच्छा ठीक है... अब ऐसे नहीं हँसिये... एक मासूम सी ख़्वाहिश ही तो थी... पूरी नहीं हो सकी तो क्या ख़ुशी तो फिर भी दे गयी :)


काश ये ज़िन्दगी
एक कार्टून फिल्म हो जाये
तुम टॉम और मैं जेरी
जेरी ज़्यादा क्यूट है ना
इसलिए मैं जेरी :)

कुछ देर जी के देखेंगे
उन कैरेक्टर्स की तरह
सारा दिन बस शरारत करेंगे
पूरे घर में
मस्ती, मज़ा, धमाल

एक दूसरे से लड़ेंगे भी
झगड़ेंगे भी
और रह भी नहीं पायेंगे
एक दूसरे के बिना
हाँ... कुछ कुछ ऐसे ही तो हैं हम भी...

कोई भी हमें देख कर कर
कभी उदास नहीं होगा
हम सिर्फ़ हँसी बाटेंगे सबको
चोट भी लगे कभी तो
फ़ौरन उठ के खड़े हो जायेंगे
और फिर शरारत शुरू

चूहे के बिल से घुस के
नल से निकलेंगे कभी
तो कभी टेबल पे चढ़ के
चाय के कप में डाइव मारेंगे
देखो... ज़रा ध्यान से चाय पीना...

यूँ ही हँसते खेलते
सबको हँसाते गुदगुदाते
ख़ुशियाँ और प्यार बाँटते
ये मुख़्तसर सी उम्र
बस यूँ ही बीत जाये...

हम्म... इत्ती सी तो ख़्वाहिश है बस
पूरी क्यूँ नहीं हो सकती !!!

-- ऋचा

Friday, June 4, 2010

यूँ ही अचानक...


देखा था तुम्हें
उगते सूरज की
नर्म उजली किरणों में

महसूस करा था
तुम्हारा कोमल स्पर्श
बारिश की रिमझिम फुहार में

बच्चों की मासूम
निश्छल हँसी में
सुना भी था तुम्हें, कई बार

हाँ, इक बार
आवाज़ दे कर
बुलाया भी था
सहर के वक़्त अज़ाँ में

पर कभी सोचा ना था
चलते चलते अचानक
इक अनजान मोड़ पर

यूँ टकरा जाऊँगी
ऐ ज़िन्दगी तुझसे

के जैसे बेजान जिस्म को
बिछड़ी हुई रूह मिल जाए
मिल जाए नयी साँस
थमी हुई सी धड़कन को...

-- ऋचा

Tuesday, June 1, 2010

तारों से बंधे कुछ रिश्ते...


अभी अभी ये पिक्चर किसी फॉर्वर्डेड ई-मेल में देखी... और देख कर एक हँसी चेहरे पर खिल उठी... वो तमाम अनजान और जाने-पहचाने चेहरे आँखों के सामने उभर आये जिनसे यूँ तो आप कोसों दूर हैं पर रोज़ ही बातचीत होती है... शायद दिन में कई बार... ये वो लोग हैं जो दूर होकर भी आपके बहुत करीब हैं... ये वो लोग हैं जिनसे आप दिनभर की सारी गतिविधियाँ शेयर करते हैं... और ये वो लोग हैं जिनसे आप अपना हर सुख-दुःख आसानी से साँझा कर लेते हैं... बेझिझक अपने दिल की हर बात बोल लेते हैं... ये हैं आपके ई-दोस्त...

आज के कंप्यूटर युग ने यूँ तो इन्सान को बड़ा टेक्निकल बना दिया है... अपनी ही तरह फास्ट और प्रेक्टिकल बना दिया है... पर इस सब के बीच एक अच्छाई भी है... इस कंप्यूटर युग ने तारों से बंधे कुछ बेशकीमती रिश्ते भी दिये हैं... जिसके लिये इसका तहे दिल से शुक्रिया... आज की इस भागती दौड़ती ज़िन्दगी में अपनों के पास अपनों के लिये भी टाइम नहीं है... ना साथ बैठने का ना बात करने का... सारा दिन बस वही जद्दोजहद... ज़िन्दगी की, ख़ुद को साबित करने की, ज़रूरतों को इकठ्ठा करने की... एक ही शहर में रह के भी कितनी बार आप अपने दोस्तों से नहीं मिल पाते... समय ही नहीं है... हर किसी की ज़िन्दगी एक टाइम टेबल से ज़्यादा कुछ नहीं रह गयी है... वही रोज़ का रूटीन...

सोचिये इस रूटीनड लाइफ में, ऑफिस के "हेक्टिक" स्केड्यूल के बीच आपके कंप्यूटर के मॉनिटर पर किसी ई-दोस्त का प्यारा सा हँसता हुआ स्माइली अचानक से चमकता है तो बिलकुल "स्ट्रेस बस्टर" की तरह काम करता है और एक मुस्कुराहट तो आपके चेहरे पर भी आ ही जाती है... चंद लम्हों के लिये ही सही आप उस बिज़ी लाइफ को भूल जाते हैं... कुछ देर उस दोस्त से बात करते हैं और मन हल्का हो जाता है... सच कभी कभी लगता है की जिससे आप कभी मिले नहीं, देखा नहीं उससे कैसे इतनी सारी बातें कर लेते हैं, कैसे इतनी अच्छी दोस्ती हो जाती है... शायद ये दोस्ती के वाइब्स हैं जो तारों से होते हुए आप तक पहुँच ही जाते हैं... तारों के इस अंतरजाल में आप उस शक़्स को ढूंढ ही लेते हैं कहीं से :-)

कभी सोशल नेटवर्किंग साइट्स, कभी ब्लॉग वर्ल्ड, कभी बज्ज़ तो कभी चैट... जाने कहाँ कहाँ ये दोस्त मिल जाते हैं... यूँ ही... और बस शुरू हो जाता है बातचीत का सिलसिला... एक दूसरे को जानने का सिलसिला... हालांकि ये अनुभव हमेशा मीठा नहीं होता... हर जगह की तरह अच्छे बुरे लोग यहाँ भी होते हैं... अब किसे चुनना है और किसे नहीं ये आपकी समझदारी पे निर्भर करता है... खैर इसके बारे में बात फिर कभी...

अभी तो बस अच्छे अनुभवों की बात करते हैं... जैसे की वो ढेर सारे अच्छे अच्छे दोस्त जो इस "वर्चुअल" दुनिया ने दिये... ये ब्लॉग वर्ल्ड जिसने हम जैसे इन्सान को भी कुछ कुछ लिखना सिखा दिया... और जैसे वो हर समय अपना लैपटॉप ले कर घर भर में घूमते रहने पर मिलती घर वालों की वो मीठी सी प्यार भरी झिड़की... "सारा दिन बस इस कंप्यूटर से चिपकी रहा करो... बोर नहीं हो जातीं तुम ? " और हम हँस देते हैं बस... इस कंप्यूटर से भी कोई बोर हो सकता है भला... इतने ढेर सारे दोस्त जो रहते हैं उसमें :-)


तारों से बंधी इस दुनिया में
कुछ लोग जुड़े अनजाने से
ना देखा ना ही मिले कभी
पर लगे वो जाने पहचाने से

हम ख़याल से लोग कुछ
कुछ लोग अलहदा से
कुछ बातें हुईं कुछ रिश्ते बने
कुछ पल बीते खुशनुमाँ से

हँसते मुस्कुराते वक़्त गुज़रा
बातें भी कुछ और बढीं
बिन शक्लों के वो दोस्त
अब लगने लगे आशना से

दूरियाँ कुछ सिमट गयीं
दुनिया छोटी लगने लगी
मीलों की दूरी पलों में बदली
"mouse" की एक "click" से

जब कभी ये मन उदास हुआ
एक प्यारे "smiley" ने हँसा दिया
कुछ "share" करने को जी चाहा
तो दोस्त को झट से "ping" किया

इस "virtual" दुनिया में विचरते हुए
ज़िन्दगी के कुछ "real" पहलू दिखे
"wires" की इस "insensitive" दुनिया में
दोस्ती की इक नयी परिभाषा मिली...

-- ऋचा
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