एक बच्चा जब इस संसार में अपनी पहली साँस लेता है तो उसके साथ ही बहुत सारे रिश्ते उससे जुड़ जाते हैं... माँ, बाबा, भाई, बहन, दादा, दादी, नाना, नानी और ऐसे ही तमाम रिश्ते जो उस नन्हें से बच्चे को अपने जन्म के साथ ही मिल जाते हैं... ये खून के वो रिश्ते होते हैं जो ता-उम्र उसके साथ रहते हैं... ज़िन्दगी के हर ऊंचे-नीचे, टेढ़े-मेढ़े रास्ते पर उसका हाथ थामे ख़ामोशी से उसके साथ चलते रहते हैं... उस बच्चे को तो इस बात का एहसास भी नहीं होता कि उसका बोला हुआ पहला शब्द और उसका बढ़ाया हुआ पहला कदम उन तमाम रिश्तों, उन लोगों के बिना शायद मुमकिन भी ना होता... पर कभी कभी इनमें से कुछ रिश्ते समय के साथ अपनी मिठास खो देते हैं... कड़वे हो जाते हैं... फिर भी उन्हें निभाना पड़ता है, भले ही उनसे मन मिले या ना मिले... क्यूंकि ये वो रिश्ते होते हैं जिन पर आपका कोई बस नहीं चलता... जो आप अपने लिये नहीं चुनते हैं बल्कि इन्हें आपके लिये आपका भाग्य चुनता है... आपको सिर्फ़ निभाना होता है...
फिर जैसे जैसे वो बच्चा बड़ा होता जाता है कुछ और रिश्ते उससे जुड़ जाते हैं... वो रिश्ते जिन्हें वो खुद चुनता है - उसके दोस्त... दोस्ती इस संसार का सबसे अनूठा रिश्ता है... एक ऐसा रिश्ता है जो तमाम खून के रिश्तों से भी ज़्यादा घनिष्ठ और प्रिय हो जाता है कभी कभी... आप भले ही एक बार अपने घर वालों की बात ना मानें पर अगर आपका सच्चा दोस्त आपसे कुछ कहता है तो आप उसे ज़रूर मानते हैं... है ना ? दोस्त होते ही ऐसे हैं... आपकी ख़ुशी में खुश... आपके ग़म में उदास... आपकी हर गलती पर आपको डाटते भी हैं तो आपकी हर बुराई को जानते हुए भी आपसे प्यार करते हैं... और आपकी ताक़त बन कर हर कदम पर आपके साथ होते हैं... कभी भी कहीं भी :-)
और फिर एक दिन वो नन्हा सा बच्चा एक परिपक्व इंसान बन जाता है... विवाह होता है और एक बार फिर वो तमाम सांसारिक रिश्तों और बन्धनों में बंध जाता है... ये रिश्ते भी बाकी रिश्तों की तरह ही कभी ख़ुशी तो कभी कड़वाहट ले कर आते हैं...
इन सब रिश्तों के बीच कभी कभी एक ऐसा रिश्ता भी बन जाता है किसी से, जिसे आप खुद समझ नहीं पाते... उस रिश्ते का क्या नाम है... क्यूँ वो एक अनजान इंसान आपके लिये अचानक इतना प्रिय और ख़ास हो जाता है, पता नहीं... और आप पता करना भी नहीं चाहते... बस उससे बात करना, उसके साथ समय बिताना अच्छा लगता है... ये जानते हुए भी की उस रिश्ते का कोई अस्तित्व नहीं है... वो कब तक आपके साथ रहेगा और कब अचानक साथ छूट जाएगा पता नहीं... पर आप कुछ सोचना नहीं चाहते... कुछ समझना नहीं चाहते... क्या ग़लत है क्या सही मालूम नहीं... बस उन साथ बिताये हुए कुछ पलों में तमाम उम्र जी लेना चाहते हैं... कुछ यादें बटोर लेना चाहते हैं... कुछ हँसी, कुछ मुस्कुराहट समेट लेना चाहते हैं... ज़िन्दगी भर के लिये...
गुलज़ार साब ने ऐसे ही किसी रिश्ते को अपनी इस नज़्म के ताने बाने में बुना है...
और फिर एक दिन वो नन्हा सा बच्चा एक परिपक्व इंसान बन जाता है... विवाह होता है और एक बार फिर वो तमाम सांसारिक रिश्तों और बन्धनों में बंध जाता है... ये रिश्ते भी बाकी रिश्तों की तरह ही कभी ख़ुशी तो कभी कड़वाहट ले कर आते हैं...
इन सब रिश्तों के बीच कभी कभी एक ऐसा रिश्ता भी बन जाता है किसी से, जिसे आप खुद समझ नहीं पाते... उस रिश्ते का क्या नाम है... क्यूँ वो एक अनजान इंसान आपके लिये अचानक इतना प्रिय और ख़ास हो जाता है, पता नहीं... और आप पता करना भी नहीं चाहते... बस उससे बात करना, उसके साथ समय बिताना अच्छा लगता है... ये जानते हुए भी की उस रिश्ते का कोई अस्तित्व नहीं है... वो कब तक आपके साथ रहेगा और कब अचानक साथ छूट जाएगा पता नहीं... पर आप कुछ सोचना नहीं चाहते... कुछ समझना नहीं चाहते... क्या ग़लत है क्या सही मालूम नहीं... बस उन साथ बिताये हुए कुछ पलों में तमाम उम्र जी लेना चाहते हैं... कुछ यादें बटोर लेना चाहते हैं... कुछ हँसी, कुछ मुस्कुराहट समेट लेना चाहते हैं... ज़िन्दगी भर के लिये...
गुलज़ार साब ने ऐसे ही किसी रिश्ते को अपनी इस नज़्म के ताने बाने में बुना है...
बहुत खूब.. भावप्रवाह प्रस्तावना के साथ गुलज़ार साहब की रचना परोसने का आभार.. रिश्ते होते ही ऐसे हैं.. बन जाते हैं तो चुटकियों में वरना पूरा जन्म भी कम होता है.. शीर्षक लाजवाब रहा
ReplyDeleteहैपी ब्लॉगिंग
behatarin prastuti.....
ReplyDeletewaah
ReplyDeletepadha...aur palbhar kuch socha bhi.... khamoshi hi zuba hai ab to :-)
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