तुम्हारा भरोसा देता है मुझे पंख
और मैं तब्दील हो जाती हूँ
एक नन्ही सी चिड़िया में
सारा साहस समेट कर
भरती हूँ उड़ान, तो लगता है
आस्मां भी कुछ नीचे आ गया है
तुम्हारा भरोसा भर देता है मुझे
विश्वास से
उग आते हैं मेरे डैने
और मैं बन जाती हूँ नन्ही सी मछली
जो तमाम व्हेल मछलियों से बचते हुए
पार कर सकती है प्रशांत महासागर भी
तुम्हारा प्यार कर देता है लबरेज़ मुझे
ख़ुश्बू से
ख़िल जाती हैं नई कोपलें
नर्म पंखुड़ियों सी महक उठती हूँ मैं
गुलज़ार हो जाता है मेरा अस्तित्व
आशाएं तितलियाँ बन मंडराने लगती हैं
तुम रखते हो हाथ मेरी पलकों पे
तो भर जाता है रंग मेरे सपनों में
तुम्हारा भरोसा मेरे सपनों के साथ मिल
शिराओं में दौड़ते रक्त को
कर देता है कुछ और सुर्ख़
लाली से लबरेज़, खिल उठती हूँ मैं
आँखें कुछ खट्टा खाने को मचल रही हैं इन दिनों
लगता है नींद फिर उम्मीद से है
फिर कोई ख़्वाब जन्म लेने को है !
-- ऋचा
( धुन पियानो पर यिरुमा की - "ड्रीम")
shandar.. happy blogging
ReplyDeleteखुशनुमा सी रचना !!! बढ़िया!!!
ReplyDeleteआँखें कुछ खट्टा खाने को मचल रही हैं इन दिनों
ReplyDeleteलगता है नींद फिर उम्मीद से है
फिर कोई ख़्वाब जन्म लेने को है !
आँखों की खट्टा खाने की ख्वाहिश दिल को खट्टा ना करे इस दुआ के साथ
भरोसे का गहरापन, वाह बड़ी ही सुन्दरता से व्यक्त..
ReplyDeletebahut dinon baad koi blog padh raha hoon...aur shuruaat tum se hi ki
ReplyDelete:-)
खुशामदीद !!! :)
Deleteगज़ब की भावाव्यक्ति ………जैसे मेरे मन के भाव हों।
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