- मैं क्यों उसको फ़ोन करूँ ! उसे भी तो इल्म होगा कल शब मौसम की पहली बारिश थी
- ये क्या बड़बड़ा रही हो ?
- तुम्हें क्या ?
- अरे बताओ तो...
- नहीं बताना... बातचीत बंद है तुमसे...
- ठीक है मत बताओ फिर...
- हाँ तो कहाँ बता रहे हैं... वैसे भी तुम्हें क्या फ़र्क पड़ता है हम बोलें या न बोलें...
- सो तो है :)
- ह्म्म्म... जाओ फिर काम करो अपना... क्यूँ बेकार में टाइम वेस्ट कर रहे हो...
- अच्छा... जाता हूँ... बाय...... बाय....... अब बाय का जवाब तो दे दो...
- क्यूँ... नहीं देंगे जवाब तो क्या नहीं जाओगे ?
- नहीं जाऊँगा तो तब भी... पर जवाब दे दोगी तो खुश हो के जाऊँगा... काम करने में मन लगेगा...
- ह्म्म्म... तुम्हें फिक्र है क्या हमारी ख़ुशी की... हम क्यूँ करें फिर...
- जाऊं फिर ?
- तुम्हारी मर्ज़ी...
- सच में जाऊं ?
- बोला न... तुम्हरी मर्ज़ी... मेरी मर्ज़ी का वैसे भी कब करते हो...
- हम्म... जा रहा हूँ फिर... बाय...
- रुको... वो मैकरोनी और कॉफी जो बनायी है उसका क्या होगा ? खा के जाओ...
- :)
- हँसो मत... रोक नहीं रहे हैं... खा के चले जाना... हमने भी नहीं खायी है अभी तक... बड़े मन से बनायी थी...
- :):):)
- बुरे हो सच में... बहुत बुरे... रोज़ लड़ते हो... रोज़ रुलाते हो... बुरा नहीं लगता तुम्हें...
- नहीं... मज़ा आता है तुम्हें गुस्सा दिलाने में... रुलाने में... :)
- हम्म... अच्छा सुनो... ये झगड़ा बरसात भर के लिये पोस्टपोन कर देते हैं... बारिशें तुम्हारे बिना बिलकुल अच्छी नहीं लगतीं...
- :)
- :)
- अच्छा अब तो बता दो... वो सब क्या था? वो पहली बारिश.. फ़ोन.. इल्म.. ???
- कुछ नहीं... बहुत बहुत बुरे हो तुम :):):)
- अरे बताओ तो...
- क्यूँ बतायें...
- ..........
- ..........
achcha likha hai.. happy blogging
ReplyDeleteरोचक .... झगड़ा बरसात भर मुल्तवी किया जाये
ReplyDeleteजिंदगी यूँ ही चलती रहे तो ......
ReplyDeleteताउम्र याद आने वाले लम्हे...!
कुँवर जी,
बहुत रोचक..
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन रचना....
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
बारिशों में झगड़ना और फिर बूंदों के बीच आंसू बहाना और भीगते भीगते गले लग जाना क्या कहती हो ?
ReplyDeleteरूमानी :)
Delete:) :)
ReplyDeleteबस तस्वीर लगाकर आपने गडबड कर दी :)
ReplyDeleteस्कूल्स में एक एकांकी थी "तौलिए"...कुछ कुछ उसकी याद आ गयी ...
ReplyDeleteबारिश में लड़ाई का भी अपना मजा है :)