जाने क्यूँ ये दिल बंजारों के जैसा भटक रहा था पिछले कुछ दिनों से... यहाँ वहाँ.. वहाँ यहाँ... पहाड़... झरने... जंगल... बादल... नदी... बारिश... कहीं भी चैन नहीं था... जाने क्या ढूंढ़ रहा था... न जाने किसकी तलाश थी... जानती थी ये भटकाव अच्छा नहीं है... पर दिल था कि कुछ सुनने मानने को ही तैयार नहीं था... ज़िद्दी हो गया है आजकल... लगता है हम पर ही गया है :)
ख़ैर... आज जनाब को जाने कहाँ से सेमल और पलाश के फूल याद आ गये... और बस हमारी उँगली पकड़ के ज़िद शुरू... चलो न किसी जंगल में... सेमल और पलाश के फूल चुन के लायेंगे... ढेर सारे... सुर्ख़... दहकते हुए से... कितने ख़ूबसूरत लगते हैं न... एक अलग सा तेज... एक अलग सी आभा लिये हुए... जैसे लाल जोड़े में सजी कोई दुल्हन खड़ी अपने प्रियतम का इंतज़ार कर रही हो...
हाँ तो ये जनाब कहाँ मानने वाले... ज़िद पे अड़ गये तो अड़ गये... हमने समझाया भी यहाँ कहाँ रखा है जंगल और ये पेड़... पर नहीं, उन्हें तो फूल चाहिये... तो भाई उनका हाथ थाम चल दिये हम भी... हम, वो और हमारा कैमरा... ;)
कंक्रीट के इस जंगल में अभी भी कभी कभार ये भूले बिसरे पेड़ देखने को मिल जाते हैं... सो हमें भी मिल गया एक सेमल का पेड़... श्रृंगार रस से ओत-प्रोत किसी कविता सा... और बस दिल रीझ सा गया उसकी ये सुर्ख़ सुनहरी धज देख कर... बंजारा दिल बाँवरा हो गया... ना ट्रैफिक की परवाह... ना आते जाते लोगों की और ना अचरज से देखती उनकी निगाहों की... कि आख़िर इस लड़की को हो क्या गया है... बीच सड़क कैमरा ले कर सेमल कि फोटो लेने में ऐसी मगन है कि कुछ ख़्याल ही नहीं दीन दुनिया का... अब क्या किया जाये... "कुछ तो लोग कहेंगे... लोगों का काम है कहना..." तो उन्हें कहने दिया और हम मगन रहे... ढेर सारी फोटो लीं... ज़मीं पर बिछी सुर्ख़ चादर से कुछ फूल उठाये और वापस चल दिये... होंठों पे मुस्कान और दिल में संतुष्टि ले कर... जैसे जग जीत आये हों :)
पर ये ज़िद्दी दिल वापस आने को तैयार ही नहीं था... फिर क्या था कर दी एक शाम इस पागल ज़िद्दी दिल के नाम :) ... पास ही एक पार्क था... चल दिये उधर... कुछ देर टहले और फिर एक लोहे की बेंच पे बैठ के शाम की ठंडी हवा और पेड़ पौधों का लुत्फ़ उठा ही रहे थे कि अपने घोंसलों में लौटते कुछ पंछियों का झुण्ड वहाँ से गुज़रा और दिल फिर उड़ चला उन के साथ "पंछी बनू उड़ती फिरूँ मस्त गगन में..." गाते हुए...
सच कहूँ तो उसे रोकने का मन नहीं हुआ... आज कितने दिनों बाद इतना ख़ुश था... बच्चों के जैसे निश्छलता से खिलखिला रहा था... थक गया था शायद ख़ुद को समझाते बहलाते... ये सही है ये ग़लत... ये करो ये नहीं... लोग क्या कहेंगे... कोई बच्ची हो क्या तुम... उफ़... उफ़... उफ़... बस यार ! कब तक आख़िर दुनिया की, दुनियादारी की, सही-ग़लत की परवाह करे... आज बिना किसी की परवाह किये उड़ रहा था... आज़ाद... बेफिक्र...
ओ दिल बंजारे... जा रे... खोल डोरियाँ सब खोल दे... !!!
समझ नहीं आ रहा कि तारीफ आपके लेखन की की जाये या फिर इन तस्वीरों की .... आपका कैमरे को भी शायद आपकी कलम का साथ मिलता होगा, तभी ये भी शिल्प विधान में माहिर हो गया है :)
ReplyDeleteHappy Blogging
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
ReplyDeleteबढ़िया लिखा....तस्वीरें भी सुन्दर हैं।
ReplyDeletekoi perwaah mat karo, dil ki suno...aur ud chalo
ReplyDeletehmmmm.....pyaara article hai, m jealous now. jabse bangalore chhoda hai, photography bhi chhod di....varna na poocho, kahin bhi photo lene lag jaati thi...aur mujhe bhi log usi hairat se dekha karte the, ke ye kaun pagal hai... ;)
ReplyDeletebohot khoobsurat tasveerein hai yaara, vo parindon wali to bas...ahhh...too good !!!
बहुत सुन्दर पोस्ट..
ReplyDeleteWah!Wah! Udtee raho,udtee raho!
ReplyDeleteयूँ ही खड़े होकर पलाश के फूल देखना बड़ा सम्मोहित करता है।
ReplyDelete:)
ReplyDeleteआपके इस पागलपन में हमने पूरा -पूरा सहयोग किया....वाह री दुनिया....हमारा कहीं जिक्र ही नहीं .......हाँ लोग ऐसे ही होते हैं :-) देखो ब्लॉग वालों.....हमारे साथ कितनी नाइंसाफी हुई है ...."हमें इन्साफ चाहिए " :-)
ReplyDeleteतस्वीर के साथ सुन्दर विचारो का प्रस्तुतिकरण्।
ReplyDelete"आज-कल पाँव जमीं पर नहीं पड़ते मेरे… बोलो देखा है कभी तुमने मुझे उड़ते हुए "…
ReplyDeleteबस यही गीत आया मेरे ज़ेहन में इसे पढते-देखते हुए !
तीनो खुबसूरत हैं....
ReplyDeleteआपकी ये पोस्ट, तस्वीरें और हमेशा की तरह ये गाना भी.... :D
वाकई में फोटोग्राफी मेरा भी जूनून है.... आपकी तस्वीरें बेहतरीन हैं...
सही है.....
ReplyDeleteतस्वीरें और गाना..दोनों ही बहुत खूबसूरत :)
बेहतरीन फोटो लेती हैं आप!!