Thursday, June 17, 2010

हाँ... तुम ख़ास हो !!!


कितने ही लोग, कितने ही रिश्ते होते हैं हमारे आसपास जिनसे हमारा अस्तित्व जुड़ा होता है... जो हमें वो बनाते हैं जो हम हैं... वो जिनसे हम प्यार करते हैं और वो जो हमें प्यार करते हैं... वो कोई भी हो सकते हैं... हमारे घर-परिवार वाले, हमारे दोस्त, हमारे अपने... कभी सोचा की ये लोग हमारी ज़िन्दगी में ना हों तो क्या हो... ज़िन्दगी के मायने ही बदल जाएँ शायद... या पूरी ज़िन्दगी ही... पर कितनी बार होता है की हम इन अपनों को "Special" फील कराते हैं... उन्हें ये महसूस कराते हैं की हाँ, वो हमारे लिये ख़ास हैं... हाँ, हमें उनकी ज़रुरत है... हाँ, उनका ना होना हमारी ज़िन्दगी को प्रभावित करेगा... शायद ही कभी ऐसा करते हैं हम... है ना ? हमेशा इन अपनों को "for granted" लेते हैं... या शायद उन लोगों की इतनी आदत पड़ चुकी होती है हमारी ज़िन्दगी में, कि कभी इस बारे में सोचते ही नहीं कि वो कितने ख़ास है हमारे लिये... कि उनके बिना हम "हम" नहीं होंगे...

हमें हमेशा यही लगता है की ये तो हमारे अपने हैं... ये कहाँ जायेंगे... ये तो हमेशा हमारे पास ही रहेंगे... हम सही भी होते हैं... वो कहीं नहीं जायेंगे क्यूँकि वो हमारे अपने हैं... पर क्या ये हमारा फ़र्ज़ नहीं बनता की हम भी उन्हें ये महसूस करायें की हम भी हैं उनके लिये... कि हम भी हमेशा उनके लिये मौजूद रहेंगे उनकी ज़िन्दगी की हर छोटी-बड़ी ज़रूरतों में, हर अच्छे-बुरे पल में... माना आपको उनकी परवाह है और कद्र भी पर हमेशा खामोशियाँ पढ़ना किसी को भी अच्छा नहीं लगता... कभी-कभी खुल के जता भी देना चाहिये... कभी किसी अपने को ये महसूस कराइये कि वो कितना ख़ास है आपके लिये... उसे भी एक मुस्कान दे कर देखिये... यकीन जानिये उसे ये छोटी सी ख़ुशी दे कर आपको जो सुकून मिलेगा उसका कोई मोल नहीं...

और एक राज़ की बात बतायें? ये काम बिलकुल भी मुश्किल नहीं है... छोटी छोटी सी बातें हैं पर अगर आप कर पायें तो सच में आपके अपने, आपके और भी करीब आ जायेंगे... बहुत कुछ नहीं करना होता है किसी को ख़ास महसूस कराने के लिये... ना ही बहुत मेहनत, समय या पैसा लगता है इसमें... किसी ख़ास मौके पर तो हर कोई आपको याद करके ये एहसास करता है की वो मौका, वो दिन आपके लिये ख़ास है... पर कभी बेवजह ही, बिना किसी बात के बस यूँ ही याद कर के देखिये... एक प्यारा सा SMS कर के देखिये... बेवजह फ़ोन कर के बस हाल चाल ले लीजिये... या यूँ ही बोल दीजिये तुम्हारी याद आ रही थी, ऐसे ही बात करने का मन हुआ... कितना टाइम लगता है इस सब में ? चंद मिनट बस... ऑफिस से घर लौटते समय सबके लिये कुछ लेते जाइए... फूल, चॉकलेट या कुछ भी जो घर पे सबको पसंद हो... कभी ऐवें ही कॉफी पीने चले जाइए अपने दोस्त के साथ ये कह के की बस साथ बैठने का मन है... या एक जादू की झप्पी दे दीजिये बेवजह और देखिये आपके अपने कैसे खिल उठेंगे :)

आपके अपनों को ज़्यादा कुछ नहीं चाहिये होता है आपसे... बस आपका थोड़ा सा समय और थोड़ा सी परवाह... और आपकी आँखों में अपने लिये थोड़ा सा प्यारा और ये भरोसा की हाँ वो भी ख़ास हैं आपके लिये... आपको भी उनकी ज़रुरत है... किसी अपने को ये एहसास करा के देखिये कभी, आप ख़ुद भी उतना ही अच्छा महसूस करेंगे... इस भौतिकवादी दुनिया में कोई भी एहसास इस एहसास से ज़्यादा ख़ास नहीं होता की किसी को आपकी ज़रुरत है... आप भी ख़ास हैं किसी के लिये... 

क्या कभी मैंने ये कहा
कि तुम्हारे बिना
ज़िन्दगी का एक पल भी
नहीं सोच सकती

क्या कभी ये कहा
कि कभी सोचा ही नहीं
तुम ना होते तो
मैं क्या करती
शायद मैं "मैं" ना होती

क्या कभी ये कहा
कि बहुत अच्छा लगता है
जब बिन मेरे कुछ बोले
मेरे मन की हर बात पढ़ लेते हो

कभी ये भी नहीं कहा ना
कि वो एहसास
दिल को गहरे तक
छू जाता है कहीं
जब उदास होती हूँ मैं
और मेरे आँसू मीलों दूर बैठे
तुम्हारी आँखें भी नम कर जाते हैं

या कभी मेरी हँसी कि खनक
जब सुनाई देती है तुम्हारी आवाज़ में
तो मन और भी ख़ुश हो जाता है
जी चाहता है नाच उठूँ

कभी कहा क्या मैंने ?
नहीं ?

लो आज कहती हूँ
हाँ... मुझे ज़रुरत है तुम्हारी
अपनी ज़िन्दगी के हर पल में
हाँ... तुम ख़ास हो मेरे लिये !!!

-- ऋचा

11 comments:

  1. har baar ki tarah special..

    rishton pe aap ek shodh granth likh sakti hain..

    Happy Blogging

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  2. हकीकत में सच्चाई भरा लेख और उतनी ही अच्छी कविता...'

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  3. ham soch rahe hai Doctorate in Relationship mein admission le lein.........Registration fee to course completions charges bataye jaaye .....ham bhi rishto ki gahraiyan seekh saken .......keep writing . Good one indeed :-)

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  4. सुन्दर एहसास की सुन्दर रचना

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  5. आपके सुझाव अनुकरणीय हैं, आज से अमल प्रारम्भ । कविता और भी सुन्दर ।

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  6. गद्य और पद्य के अंतर को ख़त्म करती आपकी ये अभिव्यक्ति!गद्य में भी पद्य का आनंद आया पढ़ते हुए!

    और जो सुझाव दिए है वो तो है ही जबरदस्त वाली बात!

    कुंवर जी,

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  7. हम ज्यादातर ऐसी चीज़ें पढ़ने से दूर भागते हैं, कुछ बातें एकदम सामने आ जाती हैं नज़रों के...क्या करें :(
    अच्छा तो बहुत लगा...याद भी बहुत कुछ आया...

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  8. कितनी खूबसूरती से आप बात कहती हैं। क्या बात है। कविता में क्या कहूं मेरे दिल की बात है। लगता है कि ये तो सब अपने हैं। इनको क्या कहना कि हम कितना प्यार करते हैं इनको। पर कभी कह देना चाहिए बिना किसी खास मौके के, बिना किसी प्रयोजन के भी। कहने में क्या हर्ज है। न कहने पर हर्ज होता है। अपने कभी चले जाते हैं तो सिर्फ दर्द रह जाता है। इसलिए बेहतर होता है बोल देना।
    आपकी मासूम सी ख्वाहिश भी दिल को छू गई। काश हम भी टॉम औऱ जैरी जैसी शरारत कर पाते। पर क्या करें। दिल जो बच्चा है न उसे लोग बच्चा रहने भी नहीं देते। माहौल ऐसा बना देते हैं कि वो बड़ा हो जाता है। बड़ा होते ही शुरु हो जाता है परेशानियों और सोच का सिलसिला। हद है याऱ। सही मैं यार अपने को ही भूल जाते हैं हम। पर चलिए इसी में अपने को तलाशना होगा फिर से। फिर से बच्चा ही बनना बेहतर होगा।

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  9. bohat hi sundar, mann me ghar kar jaane wali bhawnayein...

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दिल की गिरह खोल दो... चुप ना बैठो...

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