पूरे दिन ऑफिस के बिज़ी हेक्टिक स्केड्यूल के बाद जब घर पहुँच के टी.वी. ऑन करो तो कुछ भी देखने लायक नहीं आ रहा होता है.... आधे चैनल्स पर तो वही सास-बहु के गंदे सीरीअल्स चल रहे होते हैं जिसमें घर की महिलायें एक दूसरे के लिये हमेशा कोई ना कोई षड्यंत्र रचा करती हैं... आधी रात में भी जागती हैं तो हेवी साड़ी और फुल मेकअप में... भगवान जाने कैसे मैनेज करती है इतना सब... सोते में भी शायद मेक अप ही टच अप करती रहती हैं... कोई न्यूज़ चैनल लगाओ तो या तो वही गन्दी राजनीति या किसी रिऐलिटी शो की चर्चा या फिर कोई तंत्र मन्त्र वाले बाबाजी आपकी सारी समस्याओं का इलाज बताते हुए दिखाई देते हैं... और कुछ नहीं तो कोई भी ऐरा गैरा क्रिकेटर "सचिन" को क्रिकेट खेलना सिखा रहा होता है... "उसे ये शॉट ऐसे नहीं मारना चाहिये था, शॉर्ट पिच बाल को कैसे मिस कर दिया, बाउंसर पे बैट छुआने की क्या ज़रुरत थी"... अब भला बताइये सचिन को ये खेलना सिखायेंगे :) खैर जाने दीजिये... आगे चलते हैं... कोई बिज़नस चैनल लगाओ तो सेंसेक्स का उतार चढ़ाव, मंदी, रिसेशन और टेंशन... अब कोई ये सब देख कर कैसे रिलैक्स कर सकता है भला... ऐसे में हमारा साथ देते हैं कार्टून चैनल्स और हमारा फेवरेट "टॉम एंड जेरी"... बिलकुल "स्ट्रेस बस्टर" की तरह काम करते हैं... यकीन ना हो तो कभी आज़मा के देखिएगा... एक कप गरमा गरम चाय और आधा घंटा टॉम और जेरी का साथ... सारी थकान, सारी प्रॉब्लम्स, सारी टेंशन मिनटों में छू मंतर... :)
कितनी अच्छी होती है इन कार्टून कैरेक्टर्स की दुनिया... हर समय बस मस्ती मज़ाक, धमाचौकड़ी, उछल कूद और शरारत और किसी बात की कोई टेंशन नहीं... बड़ा मज़ा आता है इन्हें देखने में... सुपर हीरो नहीं होते हैं पर फिर भी वो कुछ भी कर सकते हैं... २० मंज़िल की इमारत से छलांग लगा कर भी बच जाते हैं... पूरी की पूरी गाड़ी उनके ऊपर से गुज़र जाये फिर भी फ़ौरन ही उठ कर खड़े हो जाते हैं और फिर से वही शरारतें और मस्ती शुरू... कितने अच्छे होते हैं ना, कम से कम हम इंसानों से तो अच्छे ही होते हैं ये और इनकी मासूम दुनिया :)
कल ऐसे ही "टॉम एंड जेरी" देखते देखते मन में ख़याल आया की इंसानों कि इस बनावटी दुनिया से कितनी अच्छी और प्यारी है इनकी दुनिया... एक तरफ हम इंसानों की दुनिया में तो इमोशंस भी बनावटी हैं और जज़्बात भी और यहाँ तक की अब तो हँसी भी बनावटी होती जा रही है... वो क्या कहते हैं आज की भाषा में... "प्लास्टिक स्माइल"... और दूसरी तरफ हैं ये कार्टून कैरेक्टर्स जो सबको सिर्फ़ हँसी बाँटते हैं... बिना किसी बनावट या मिलावट के... कोई भी इनसे चिढ़ता नहीं, कोई भी इन्हें देख कर कभी उदास नहीं होता... ये सब सोचते सोचते "ऐज़ यूज़ुअल" फिर एक मासूम सी ख़्वाहिश जागी मन में :) काश हम भी इन कार्टून कैरेक्टर्स जैसे होते... एक बार जी के देखते इनकी दुनिया में... महसूस करते कि कैसी लगती है ये प्यारी, मासूम सी दुनिया अन्दर से... मन तो हुआ की बस टी.वी. में ही घुस जाएँ और उनके साथ ही ढेर सारी मस्ती करें कुछ देर... अच्छा ठीक है... अब ऐसे नहीं हँसिये... एक मासूम सी ख़्वाहिश ही तो थी... पूरी नहीं हो सकी तो क्या ख़ुशी तो फिर भी दे गयी :)
काश ये ज़िन्दगी
एक कार्टून फिल्म हो जाये
तुम टॉम और मैं जेरी
जेरी ज़्यादा क्यूट है ना
इसलिए मैं जेरी :)
कुछ देर जी के देखेंगे
उन कैरेक्टर्स की तरह
सारा दिन बस शरारत करेंगे
पूरे घर में
मस्ती, मज़ा, धमाल
एक दूसरे से लड़ेंगे भी
झगड़ेंगे भी
और रह भी नहीं पायेंगे
एक दूसरे के बिना
हाँ... कुछ कुछ ऐसे ही तो हैं हम भी...
कोई भी हमें देख कर कर
कभी उदास नहीं होगा
हम सिर्फ़ हँसी बाटेंगे सबको
चोट भी लगे कभी तो
फ़ौरन उठ के खड़े हो जायेंगे
और फिर शरारत शुरू
चूहे के बिल से घुस के
नल से निकलेंगे कभी
तो कभी टेबल पे चढ़ के
चाय के कप में डाइव मारेंगे
देखो... ज़रा ध्यान से चाय पीना...
यूँ ही हँसते खेलते
सबको हँसाते गुदगुदाते
ख़ुशियाँ और प्यार बाँटते
ये मुख़्तसर सी उम्र
बस यूँ ही बीत जाये...
हम्म... इत्ती सी तो ख़्वाहिश है बस
पूरी क्यूँ नहीं हो सकती !!!
-- ऋचा
is idiot box me wakai kuch achcha bhi hai...
ReplyDeletehumare liye bhi tom n jerry stress buster hi hain... jo log inhe dekhna chahte hain unke liye bata dete hain ki aap tom n jerry ki sararaten cartoon network pe weekdays me 6-30 to 7-30 pm enjoy kar sakte hain..
bahut achcha presentation raha aapka
Happy Blogging
अच्छी लगी ये मासूम रचना...
ReplyDeletehttp://kavita.hindyugm.com/2010/06/blog-post_2232.html
आपके ब्लॉग को पढ़ते समय ऐसा लगता है जैसे किसी ओर ही दुनिया में आ गए हो.......जो भी हो सकता है वो होता सा दिखने लगता है...
ReplyDelete"टॉम & जेरी" "अंकल क्रूज़" ये वो पात्र है जो हमारे जीवन होते थे कभी....अभी तो टी.वी. से नाता टुटा हुआ सा है पर जब हम उम्र में भी छोटे ही होते थे और रहते गाँव में,जहाँ केवल दूरदर्शन ही होता था टी.वी. का अर्थ!रविवार सुबह नौ से बारा का टाइम तो जैसे हम बच्चो के ही नाम किया हुआ था दूरदर्शन ने भी.....तभी से ही ये पात्र ही हमें असली लगते थे बाकी सब के मुकाबले.....
देखा चले गए ना फिर उसी दुनिया में.....आपके ब्लॉग पर आते ही.......बातो-बातो में पता ही नहीं चला कि टिप्पणी भी करनी है....वो फिर कभी....
कुंवर जी,
कल्पना का समंदर काफी दिलचस्प लगा....वाकई मस्ती ही मस्ती
ReplyDeleteSach ! Kitni maasoom-si khwahish hai!
ReplyDeletebadhiya hai...dil to bachcha hai hi...bas ise kisi tarah behla ke rakhe khush hi rahega
ReplyDeleteबहलाना कठिन है और हँसाना और भी कठिन है, ये टीवी वाले काहे नहीं समझ पाते हैं यह मर्म ।
ReplyDelete@ आशीष जी... प्रेज़ेन्टेशन पसंद आया आपको उसके लिये धन्यवाद... और हाँ टॉम एंड जेरी के टेलीकास्ट का टाइम सबको बताने के लिये भी :) वैसे अच्छा लगा ये जान कर की आप भी टॉम एंड जेरी फैन क्लब में शामिल हैं :)
ReplyDelete@ निखिल जी... शुक्रिया :)
@ कुंवरजी... हमारे ब्लॉग को इतना सराहने के लिये और इस तारीफ़ के लिये बहुत बहुत शुक्रिया... सच कहा आपने तब लगा करता था की सन्डे वाकई छुट्टी का दिन होता है... दूरदर्शन पर सुबह से ही वो "ही-मैन", "स्पाइडर-मैन", "जंगल बुक", "चंद्रकांता" और ना जाने क्या क्या देखा करते थे... आज चैनल्स का ढेर है पर देखने को कुछ नहीं... हाँ शायद पहले जितना समय भी नहीं :)
@ रश्मि जी... सोचा असली दुनिया नहीं तो ना सही कल्पना की दुनिया ही ख़ूबसूरत बना के देखा जाये :)
@ क्षमा जी... है ना मासूम सी ख़्वाहिश... बस पूरी नहीं होती :)
@ दिलीप जी... ग़ालिब साहब का एक शेर याद आ गया - "हमको मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन, दिल के ख़ुश रखने को ग़ालिब ये ख़याल अच्छा है"
@ प्रवीण जी... सही कह रहे हैं आप... काश की ये टी.वी. वाले ये समझ पाते... खैर तब तक कार्टून नेटवर्क जिंदाबाद :)
koi nahi...ham aaye dive maari...muskura liye ...gudguda liye...chal diye...duniya cartoon ki khoobsoorat hai....kuch likha tha bahut pahle yahin...chaap dete hain
ReplyDelete"kaash! zindgi ek animated movie hoti,
imagination par chalti aur confusion mein nikhar jaati :-)
हमारे टॉम & जेरी जहाँ नज़र आते हैं मज़ा आता है, आपकी पंक्तियाँ मस्त लगी :)
ReplyDeleteसोचा तो था लेकिन कभी लिखा नही :)