देखा था तुम्हें
उगते सूरज की
नर्म उजली किरणों में
महसूस करा था
तुम्हारा कोमल स्पर्श
बारिश की रिमझिम फुहार में
बच्चों की मासूम
निश्छल हँसी में
सुना भी था तुम्हें, कई बार
हाँ, इक बार
आवाज़ दे कर
बुलाया भी था
सहर के वक़्त अज़ाँ में
पर कभी सोचा ना था
चलते चलते अचानक
इक अनजान मोड़ पर
यूँ टकरा जाऊँगी
ऐ ज़िन्दगी तुझसे
के जैसे बेजान जिस्म को
बिछड़ी हुई रूह मिल जाए
मिल जाए नयी साँस
थमी हुई सी धड़कन को...
-- ऋचा
Wah.. zindagi se aamna-samna
ReplyDeletehum to kuch aur hi samajh baithe the..:)
har baar ki tarah behatareen...
Happy Blogging
कल्पनाशीलता को कोई सीमा नहीं मान्य नहीं...यही दिखाती आपकी ये रचना...
ReplyDeleteवाह...शानदार अभिव्यक्ति...!!!
जिन्दगी से एकाएक टकराने का आपका अनुभव अनूठा रहा जी....
कुंवर जी,
बेहतरीन रचना, बहुत खूब!
ReplyDeleteके जैसे बेजान जिस्म को
बिछुड़ी हुई रूह मिल जाए.
सुन्दर ।
ReplyDeletenice
ReplyDeletebahut hi bhawbheene khyaal aur ehsaas
ReplyDeleteAisi zindagee,hamesha aapki qismat ho!
ReplyDeleteItni zuda andaaz aur khoobsoorati se milegi zindgi to kaun nahi jeena chahega....har lamha, har pal
ReplyDeleteuf kahun to kyaa kahun.....kuchh samajh nahin aa rahaa....darasal is kavita ko padhkar kuchh kahane ko jee hi nahin chaah rahaa.....!!
ReplyDelete@ आशीष जी... आमना सामना तो ज़िन्दगी से ही हुआ पर आपने ग़लत समझा ये भी नहीं कहूँगी :) ज़िन्दगी किसी भी रूप में आये आपको जीना सिखा जाती है...
ReplyDelete@ कुंवरजी... ये ज़िन्दगी भी अनूठी है और इसके अनुभव भी... कौन जाने कब, कहाँ, किस से टकरा जाएँ आप और ज़िन्दगी बदल जाये...
@ शाह नवाज़ जी, प्रवीण जी, जनदुनिया, रश्मि जी, क्षमा जी, वर्मा जी... आप सब का शुक्रिया !!
@ प्रिया... सही कहा... "ये लम्हा फिलहाल जी लेने दो..." :)
@ भूतनाथ जी... उफ़... कुछ ना कह के भी आपने कितना कुछ कह दिया :) शुक्रिया !!
its first i hav came to urs blogs...really ur fantastic writter ,poet ...i have saw each n every poetry all have some meanings ...gud yaar its also gud tht we r frm same city
ReplyDeleteif u have time please to visit my blogs too
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thnx
best regards
aleem azmi