मैंने कभी उनकी उँगली पकड़ कर चलना नहीं सीखा... कभी तोतली ज़ुबान में उनसे कोई ज़िद नहीं की... उनकी गोद में चढ़ कर कभी चंदा मामा को नहीं देखा... कभी उन्हें घोड़ा बना कर उनकी पीठ पर नहीं बैठी... बहुत कम याद आते हैं वो... या शायद हम याद भी उन्हें ही करते हैं जिनसे कभी मिले होते हैं... ज़्यादा ना सही कम से कम एक बार तो... कभी कभी सोचती हूँ कि कभी मिलती उनसे तो क्या बुलाती उन्हें.. दादाजी, दद्दू या बाबा... हाँ, शायद "बाबा" ही बुलाती...
वो याद तो नहीं आते बहुत पर जब भी किसी छोटे बच्चे को अपने बाबा के साथ हँसता, मुस्कुराता, खेलता हुआ देखती हूँ तो एक अजीब सी क़सक उठती है मन में... जैसे ज़िन्दगी की जिगसॉ पज़ल का एक ज़रूरी हिस्सा खो गया हो कहीं... और उसके बिना वो अधूरी ही रहेगी हमेशा चाहे बाक़ी के सारे हिस्से सही सही जोड़ दिये जाएँ... जैसे अम्मा बाबा से कहानी सुनना हर बचपन का हक़ हो और हमसे वो हक़ छीन लिया हो किसी ने...
बुआ बताती हैं कि उस ज़माने में कांग्रेस कमेटी का दफ़्तर हमारे ही घर में हुआ करता था... आये दिन मीटिंग्स होती थीं... जाने कितनी ही बार जेल भरो आन्दोलन में बाबा जेल गये... महीनों जेल में रहे... कितनी ही बार लाठी चार्ज हुआ... इसी सब के चलते उन्हें पेट की कोई ऐसी बीमारी हो गई थी जिसे समय पर डाइग्नोज़ नहीं किया जा सका और वो हम सब को छोड़ कर चले गये... उस वक़्त पापा सिर्फ़ हाई स्कूल में थे...
बाबा के बारे में जितना भी सुनते हैं पापा और बुआ से उतना ही ज़्यादा उन पर गर्व होता है और उनसे मिलने का मन करता है... आज से तकरीबन एक सदी पहले भी वो कितनी खुली विचारधारा के इन्सान थे... उस वक़्त जब घर की स्त्रियों को घर से बाहर निकलने की भी आज़ादी नहीं थी वो अम्मा को अपने साथ पार्टी की मीटिंग्स में ले जाया करते थे... अपनी बेटियों और बेटों में कभी कोई फ़र्क नहीं किया उन्होंने... सबको हमेशा ख़ूब पढ़ने के लिए प्रेरित किया... बुआ लोगों के लिये भी कहते थे की ये सब हमारे बेटे हैं... और उस ज़माने में भी साड़ी या सलवार कुर्ते के बजाय सब के लिये पैंट शर्ट सिलवाते थे... बुआ बताती हैं गाँव में जहाँ हमारा घर था वहाँ आस पास के लोग अपनी लड़कियों को उन लोगों के साथ खेलने नहीं देते थे ना ही हमारे घर आने देते थे... कहते थे कि इनके पिताजी जेल का पानी पी चुके हैं इनके घर का कुछ मत खाना... हँसी आती है आज उन लोगों की सोच पर... ख़ैर...
आज स्वतंत्रता दिवस पर जाने क्यूँ बाबा की बहुत याद आ रही है... और हमारे देश की सभ्यता और संस्कृति को दीमक की तरह चाट कर खोखला करते जा रहे भ्रष्टाचार, अराजकता और उन तमाम बुराइयों को देख कर उन सभी लोगों और उनके परिवारों के लिये तकलीफ़ हो रही है जिन्होंने देश को आज़ाद करने के लिये अपने प्राणों की बलि दी... उन हज़ारों, लाखों लोगों की क़ुर्बानी का ये सिला दे रहे हैं हम ?
आज की युवा पीढ़ी के लिये क्या मतलब रह गया है १५ अगस्त का... बस एक और छुट्टी का दिन... अपने मोबाइल में वंदे मातरम् की रिंग टोन लगा लेने का दिन या तिरंगे वाला टैटू लगा कर फेसबुक पर नई प्रोफाइल पिक्चर उपलोड कर लेने का दिन... दोस्तों को देशभक्ति के एस.एम.एस. भेज देने का दिन या बहुत हुआ तो एक पूरा दिन देशभक्ति के गाने सुन लेने का दिन... बस इतना ही ना... देशभक्ति का जज़्बा भी फैशन स्टेटमेंट बनता जा रहा है... सिर्फ़ एक दिखावा...
देशभक्ति ही सीखनी है तो उन सैनिकों से सीखिए जो सालों साल हर मौसम, हर पहर, हज़ारों मुश्किलों से जूझते हुए भी हमारी, आपकी और सबसे बढ़कर अपने देश की, अपनी मातृभूमि की रक्षा करने के लिये सीमा पर डटे रहते हैं... जिनके लिये देशभक्ति महज़ २६ जनवरी, १५ अगस्त और २ अक्टूबर को उमड़ने वाला जज़्बा नहीं है... आइये हम भी उन जैसे बनते हैं जिनके लिये देशभक्ति ही उनके जीने का अंदाज़ है...!
जय हिंद... जय हिंद की सेना...!!!
Badaahee sundar aalekh hai....aise Baba sabke naseeb me nahee hote.
ReplyDeleteआज 16/08/2012 को आपकी यह पोस्ट (संगीता स्वरूप जी की प्रस्तुति मे ) http://nayi-purani-halchal.blogspot.com पर पर लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!
ReplyDeleteबेशक आप अपने बाबा से मिली नहीं...मगर आपकी रगों में लहू तो उनका ही दौड रहा है न....बहुत भाग्यशाली हैं आप !!
ReplyDeleteअच्छा लगा आपकी पोस्ट पढ़ कर.
शुभकामनाएं.
अनु
बड़े ही प्रासंगिक सवाल भी पूछ लिए आपने .... अच्छा लगा पढना .......
ReplyDeleteसंवेदना को जगाती रचना.... बहुत भावपूर्ण...संस्मरण में 'बाबा' के बहाने देशप्रेम स्वतः झलक रहा है.
ReplyDeleteबहुत ही भावपूर्ण लिखा है आपने... मैं आप की बात से पूरी तरह सहमत हूँ और आपकी आवाज़ में आवाज़ मिलकर कहना चाहती हूँ......
ReplyDeleteजय हिंद... जय हिंद की सेना...!!!
sateek v sarthak lekhan .aabhar
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सच ही जिन लोगों के परिवार के सदस्यों ने आज़ादी की लड़ाई लड़ी है उनके लिए आज देश में होते भ्रष्टाचार और नैतिक मूल्यों का पतन निश्चय ही दुख दायी है
ReplyDeleteहमारा भी नमन..
ReplyDeletegrandpa's voice is grand voice
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