अभी अभी ये पिक्चर किसी फॉर्वर्डेड ई-मेल में देखी... और देख कर एक हँसी चेहरे पर खिल उठी... वो तमाम अनजान और जाने-पहचाने चेहरे आँखों के सामने उभर आये जिनसे यूँ तो आप कोसों दूर हैं पर रोज़ ही बातचीत होती है... शायद दिन में कई बार... ये वो लोग हैं जो दूर होकर भी आपके बहुत करीब हैं... ये वो लोग हैं जिनसे आप दिनभर की सारी गतिविधियाँ शेयर करते हैं... और ये वो लोग हैं जिनसे आप अपना हर सुख-दुःख आसानी से साँझा कर लेते हैं... बेझिझक अपने दिल की हर बात बोल लेते हैं... ये हैं आपके ई-दोस्त...
आज के कंप्यूटर युग ने यूँ तो इन्सान को बड़ा टेक्निकल बना दिया है... अपनी ही तरह फास्ट और प्रेक्टिकल बना दिया है... पर इस सब के बीच एक अच्छाई भी है... इस कंप्यूटर युग ने तारों से बंधे कुछ बेशकीमती रिश्ते भी दिये हैं... जिसके लिये इसका तहे दिल से शुक्रिया... आज की इस भागती दौड़ती ज़िन्दगी में अपनों के पास अपनों के लिये भी टाइम नहीं है... ना साथ बैठने का ना बात करने का... सारा दिन बस वही जद्दोजहद... ज़िन्दगी की, ख़ुद को साबित करने की, ज़रूरतों को इकठ्ठा करने की... एक ही शहर में रह के भी कितनी बार आप अपने दोस्तों से नहीं मिल पाते... समय ही नहीं है... हर किसी की ज़िन्दगी एक टाइम टेबल से ज़्यादा कुछ नहीं रह गयी है... वही रोज़ का रूटीन...
सोचिये इस रूटीनड लाइफ में, ऑफिस के "हेक्टिक" स्केड्यूल के बीच आपके कंप्यूटर के मॉनिटर पर किसी ई-दोस्त का प्यारा सा हँसता हुआ स्माइली अचानक से चमकता है तो बिलकुल "स्ट्रेस बस्टर" की तरह काम करता है और एक मुस्कुराहट तो आपके चेहरे पर भी आ ही जाती है... चंद लम्हों के लिये ही सही आप उस बिज़ी लाइफ को भूल जाते हैं... कुछ देर उस दोस्त से बात करते हैं और मन हल्का हो जाता है... सच कभी कभी लगता है की जिससे आप कभी मिले नहीं, देखा नहीं उससे कैसे इतनी सारी बातें कर लेते हैं, कैसे इतनी अच्छी दोस्ती हो जाती है... शायद ये दोस्ती के वाइब्स हैं जो तारों से होते हुए आप तक पहुँच ही जाते हैं... तारों के इस अंतरजाल में आप उस शक़्स को ढूंढ ही लेते हैं कहीं से :-)
कभी सोशल नेटवर्किंग साइट्स, कभी ब्लॉग वर्ल्ड, कभी बज्ज़ तो कभी चैट... जाने कहाँ कहाँ ये दोस्त मिल जाते हैं... यूँ ही... और बस शुरू हो जाता है बातचीत का सिलसिला... एक दूसरे को जानने का सिलसिला... हालांकि ये अनुभव हमेशा मीठा नहीं होता... हर जगह की तरह अच्छे बुरे लोग यहाँ भी होते हैं... अब किसे चुनना है और किसे नहीं ये आपकी समझदारी पे निर्भर करता है... खैर इसके बारे में बात फिर कभी...
अभी तो बस अच्छे अनुभवों की बात करते हैं... जैसे की वो ढेर सारे अच्छे अच्छे दोस्त जो इस "वर्चुअल" दुनिया ने दिये... ये ब्लॉग वर्ल्ड जिसने हम जैसे इन्सान को भी कुछ कुछ लिखना सिखा दिया... और जैसे वो हर समय अपना लैपटॉप ले कर घर भर में घूमते रहने पर मिलती घर वालों की वो मीठी सी प्यार भरी झिड़की... "सारा दिन बस इस कंप्यूटर से चिपकी रहा करो... बोर नहीं हो जातीं तुम ? " और हम हँस देते हैं बस... इस कंप्यूटर से भी कोई बोर हो सकता है भला... इतने ढेर सारे दोस्त जो रहते हैं उसमें :-)
तारों से बंधी इस दुनिया में
कुछ लोग जुड़े अनजाने से
ना देखा ना ही मिले कभी
पर लगे वो जाने पहचाने से
हम ख़याल से लोग कुछ
कुछ लोग
अलहदा से
कुछ बातें हुईं कुछ रिश्ते बने
कुछ पल बीते खुशनुमाँ से
हँसते मुस्कुराते वक़्त गुज़रा
बातें भी कुछ और बढीं
बिन शक्लों के वो दोस्त
अब लगने लगे आशना से
दूरियाँ कुछ सिमट गयीं
दुनिया छोटी लगने लगी
मीलों की दूरी पलों में बदली
"mouse" की एक "click" से
जब कभी ये मन उदास हुआ
एक प्यारे "smiley" ने हँसा दिया
कुछ "share" करने को जी चाहा
तो दोस्त को झट से "ping" किया
इस "virtual" दुनिया में विचरते हुए
ज़िन्दगी के कुछ "real" पहलू दिखे
"wires" की इस "insensitive" दुनिया में
दोस्ती की इक नयी परिभाषा मिली...
-- ऋचा