गुलज़ार साब ने ठीक ही कहा है "दिल तो बच्चा है जी"... एक बच्चे की तरह ख़ुद अपनी ही उँगली थामे दुनिया के मेले में घूमता रहता है और हर प्यारी चीज़ को देख कर ठिठक जाता है... मचल जाता है... और हर बार एक मासूम सी ख़्वाहिश जाग उठती है दिल में "मुझे ये चाहिये...प्लीज़ दिला दो ना"... अब इस बच्चे को कौन समझाए की हर ख़्वाहिश पूरी नहीं होती... पर इस बच्चे की ख़्वाहिशें भी उसकी ही तरह इतनी मासूम होती हैं की मन करता है एक जादू की छड़ी आ जाये कहीं से हाथ में... आबरा का डाबरा... छू... और बस ख़्वाहिश पूरी :-)
वैसे किसी बच्चे की कोई ख़्वाहिश पूरी करी है कभी आपने... बहुत मासूम होते हैं सच में... एक चॉकलेट दिला दो या एक गुब्बारा या प्लास्टिक का चश्मा या बर्फ़ का गोला... और उसके बाद इनके चेहरे की ख़ुशी पढ़िये बस... इतनी सरल मुस्कान... इतनी प्यारी हँसी... और परितृप्ति के इतने अनोखे रंग कि मानो लगता है सारी दुनिया का ख़ज़ाना मिल गया हो उन्हें... काश हम भी उनके जैसे बन सकते... मासूम और भोले भाले... सारी दुनियावी मोह माया से दूर... अपनी मासूम सी दुनिया में रहते... बिना किसी लड़ाई झगड़े... बिना किसी बैर भाव के... सिर्फ़ प्यार होता वहाँ और ढेर सारी ख़ुशियाँ... देखा फिर एक और ख़्वाहिश... सच हमारा कुछ नहीं हो सकता...
और आजकल तो पूछिये मत... हमारे दिल की "मैन्युफैक्चरिंग यूनिट" में ख्वाहिशों का "प्रोडक्शन" इतनी तेज़ी से हो रहा है की क्या बतायें... ये बच्चा कुछ ज़्यादा ही मचल रहा है आजकल... अब देखिये ना... अभी पिछली ही पोस्ट में एक ख़्वाहिश बतायी थी आप लोगों को... दिन को कस्टमाईज़ करने की... और आज एक और ख़्वाहिश जागी है दिल में... पूरी होने की कोई शर्त इस बार भी नहीं है वैसे... बस ख़्वाहिश है... सोचा आप सब के साथ भी शेयर कर लें...
मन के शान्त साहिल पे
खड़ी थी ख़ाहिशों की इक कश्ती
अडोल, चुप चाप, शान्त सी
ना जाने कब से...
तुम आये तो कुछ हलचल हुई
कुछ लहरें खेलती हुई आयीं
और एक मासूम सी ख़ाहिश और दे गयीं
अब ये कश्ती लहरों संग खेलने को बेताब है
चलो ना...
इस कश्ती में बैठ के
हम भी कुछ दूर घूम आते हैं
मन बहल जाएगा
ज़्यादा दूर नहीं जायेंगे
बस वो क्षितिज है ना
जहाँ सूरज गुरूब होता है हर शब
उसे छू के वापस आ जायेंगे...
-- ऋचा
Nice expression... Richaji aapke thoughts me gahraai hai... aap har chhote se chhote emotion ko bakhoobi shabdon me utaar lete ho... kabhi apna sangrah prakashit karaiye... agrim shubhkamnayen..
ReplyDeleteHappy Blogging
क्षितिज दूर नहीं है वाकई
ReplyDeleteबेहतरीन पोस्ट और उतने अहसासों से लबरेज़ कविता.."
ReplyDeleteDua karti hun,aisaa hee ho!
ReplyDeletewaah kshitij choone ki baat bha gayi...lajawaab bahut khoob...
ReplyDeleteख्वाहिशे ही ख्वाहिशे.. दिन को कस्टमाईज करने की ख्वाहिश.. उसके साथ ख्वाहिश की कश्ती मे विचरने की ख्वाहिश.. सिर्फ़ क्षितिज़ को छूने की ख्वाहिश... समय के साथ भागते, दौडती ख्वाहिशे..
ReplyDeleteबहुत ही प्यारी कविता.. बहुत सुन्दर.. :)
hamara comment post nahi kiya ye to galat baat hai....matlab comment na post karne ki khwaish bhi jag gai....sach mein Mahan ho
ReplyDelete@priya ... ऐसी ग़लत ग़लत ख़्वाहिशें नहीं आतीं हमारे मन में :) और हमने कोई कमेन्ट मॉडरेटर नहीं लगाया हुआ है यार जो तुम्हारा कमेन्ट पब्लिश नहीं करें... अब तो हमें शक हो रहा है तुमने सच में कमेन्ट करा भी था या ऐसे ही बोल रही हो :-) चलो कोई नहीं अब कर दो...
ReplyDelete@ all ... आप सब का शुक्रिया... आप लोगों की ये हौसला अफज़ाई हम जैसे "amateur" लिखने वाले को भी प्रोत्साहित करती है... साथ बनाए रखियेगा...
ReplyDelete@ आशीष जी... आपको हमारे थॉट्स पसंद आये उसकी ख़ुशी है हमें... पर हमें मालूम है वो संग्रह प्रकाशित करने जितने भी अच्छे नहीं हैं... आपकी शुभकामनाओं के लिये धन्यवाद :-)
very nice think
ReplyDeletemay be kuch technical problem ho. Anyways... pahle to ye batao ki is kashti ko banay kisne ......khareed lete hain usko aur nahi mana to kidnap to pakka hai.....ab to horizon par hi chain milega :-)
ReplyDeleteye khawaahish ..badi masoom hai .. jab aaftaab gurub hone lage .. us paar kinare par..jab ufaq shafaq ho jata hai ..is kinare pe ungli dubo ke udhar dekha hai .. ? lagta hai ki laal rang ungli pe chadh jayega.. udhar se aa kar .. lagta hai bas kshitiz hi choo liya hai .. badi achhi lagi yah post aap ki ...
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