हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले
-- मिर्ज़ा ग़ालिब
ख़्वाहिशें ही ख़्वाहिशें बिखरी पड़ी हैं जिधर देखो... जितना भी मिलता है कम लगता है... कुछ और... बस कुछ और... ये इंसान भी ना... फितरत से ही लालची होता है... उसकी ख्वाहिशों का कोई अंत नहीं... एक पूरी होती नहीं कि एक और नयी ख़्वाहिश अंगड़ाई लेने लगती है दिल में और ये दिल है की कभी मुत्मईं नहीं होता...
अजीब है ये इन्सां भी, दिल भी और ख़्वाहिशें भी... पता नहीं क्या क्या सोच लेता है और क्या क्या चाह लेता है... पर एक मासूम सी चाहत ही तो होती है... पूरा होने की कोई शर्त कहाँ रखते हैं हम... बस चंद ख़्वाहिशें... कुछ ख़्वाब... कुछ मुस्कुराहटें...
अभी कल ही की बात लीजिये... सुबह सुबह अलार्म बजने से नींद खुली... पर आँख नहीं... आँखें मूंदे मूंदे ही अलार्म बन्द किया... और करवट ले कर फिर से सोने की कोशिश करी... रोज़ ही यही होता है... रात में देर तक उल्लुओं की तरह जागते रहते हैं और फिर सुबह दिन को कोसते हैं ... उफ़ आज भी इतनी जल्दी निकाल आया... अभी तो सोये थे... ह्म्म्म.... फिर वही रूटीन... वही ऑफिस... वही काम... वही नीरस सा दिन... इन्हीं सब ख़यालों के बीच एक बड़ा अजीब सा पर अनोखा सा ख़याल आया मन में... देखिये तो ज़रा...
कितना अच्छा होता ना
गर हम
दिन को भी "customize" कर सकते
अपने हिसाब से...
दिन भी उठता हमारे संग
हमारे मोबाइल के अलार्म से
साथ बैठ के बालकनी में चाय पीते
सुबह की सारी ताज़गी मन में भर लेते
हम उससे जल्दी तैयार हो जाते
और हाथ पकड़ कर ऑफिस ले जाते
ये उलाहना देते हुए - "जल्दी करो...
रोज़ तुम्हारी वजह से देर होती है"
और वो सर झुकाए चलता रहता
पीछे पीछे...
सुबह को खींच कर थोड़ा लम्बा कर देते
दोपहर के उन सुस्त अलसाए पलों को
जल्दी से "fast forward" कर देते
और शाम को थोड़ा रूमानी बना देते
रात को चाँद की गोल बिंदी लगा कर
सितारों की इक झिलमिल चुनर उढ़ाते
फिर उसके पहलू में बैठ कर
किसी के तसव्वुर में खो जाते
यूँ ही लम्हा लम्हा दिन गुज़र जाता
कुछ ख़ुशनुमा, कुछ रूमानी सा
उफ़... इस technology के युग ने
ख्वाहिशों को भी technical कर दिया...
-- ऋचा
आपको कोई भी अपने हिसाब से जीने से नहीं रोक सकता!शब्दों की जादूगरी से सब कुछ अपने हिसाब से करने जो ख्वाहिश आपने दिखाई है चाहता तो हर कोई यही है,पर इतनी इमानदारी कोई नहीं कह पाता!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर..
कुंवर जी,
nihshabd , vibhor, chakit
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ReplyDeletebahut khoob... thoughts aana aur unko khoobsoorti se express karna dono difficult hain.. kitni saralata se aapne is difficulty ko aasaan kar diya..
ReplyDeleteHappy Blogging
तुम्हारी लेखनी मंत्रमुग्ध करती है ....
ReplyDeleteदिन को "Customize" करने का विचार बेहद जुदा और खूबसूरत है ...खासकर रूमानी शाम
:) :)
Sach..kaash aisa hota!Saath yah bhi hota..kisika din hota to kisee kee shaam..haina?
ReplyDeletemugdh ho gaya main to saamyik bhasha ka prayog aur bhaav bhari baatein...waah
ReplyDeleteबेहतरीन स्टाईल!! अच्छा लगा पढ़कर.
ReplyDeleteyaar Idea accha hai... customize karo fir formula de dena....Tamanna to hamari bhi yahi hain
ReplyDeleteअलग तरह की रचना और
ReplyDeleteअलग सी ख्वाहिश
पूरी हो
bahut badhiya likha hai
ReplyDelete"रात को चाँद की गोल बिंदी लगा कर
ReplyDeleteसितारों की इक झिलमिल चुनर उढ़ाते
फिर उसके पहलू में बैठ कर
किसी के तसव्वुर में खो जाते"
वाह, हम तो तसव्वुर मे खो भी गये है :) और कस्ट्माईज्ड दिन का आईडिया लीक मत करिये.. गूगल के भी कान होने है ;) कही डेवलप करके हमारे ही दिन का कन्ट्रोल किसी और के हाथ दे दिया तो :P
बहुत ही सुन्दर ख्वाहिशे.. कि हर ख्वाहिश पर दम निकले..
कितना अच्छा होता ना
ReplyDeleteगर हम
दिन को भी "customize" कर सकते
अपने हिसाब से...
दिन भी उठता हमारे संग
हमारे मोबाइल के अलार्म से
साथ बैठ के बालकनी में चाय पीते
सुबह की सारी ताज़गी मन में भर लेते
हम उससे जल्दी तैयार हो जाते
और हाथ पकड़ कर ऑफिस ले जाते
ये उलाहना देते हुए - "जल्दी करो...
रोज़ तुम्हारी वजह से देर होती है"
और वो सर झुकाए चलता रहता
पीछे पीछे...
@ all... अच्छा लगा ये जानकार कि आप सबको हमारी ये मासूम सी ख़्वाहिश पसंद आयी :-)
ReplyDelete@ रश्मि जी... आपकी टिप्पणी हमेशा प्रोत्साहन देती है...
@ आशीष जी... बस एक मासूम सा ख़याल आया था मन में... और बस ख़ुद-ब-ख़ुद ही लिख गया यहाँ... आपको पसंद आया इसकी ख़ुशी है हमें :-)
@ अनिल जी... आपकी लेखनी सा जादू तो नहीं है... हाँ बस कुछ ख़्याल हैं जो कभी कभार उभर जाते हैं ब्लॉग के पन्नो पर :-)
@ क्षमा जी... सही कहा आपने... किसी का दिन... किसी की शाम... काश...
@ प्रिया... यार कस्टमाईज़ करने का फ़ॉर्मूला आता तो अब तक कर नहीं चुके होते... तुस्सी वी ना... बड्डे मजाकिए हो...
@ पंकज... हम्म... ये तो सोचा ही नहीं... गूगल के भी कान होने हैं :-) खैर... अब तो लीक हो ही गया आईडिया... वैसे भी गूगल लैब्स में रोज़ कुछ ना कुछ डेवलप होता ही रहता है... क्या पता सच में इस दिन को भी कभी कस्टमाईज़ कर ही दें :-)