ठीक ठीक याद नहीं अब सिवा इसके की ऐसे ही किसी मौसम में तुमसे पहली बार मिली थी... एक लंबा अर्सा गुज़र गया यूँ साथ चलते... आज सोचो तो लगता ही नहीं कि हम कभी अलग भी थे... इतने सालों में जाने कितने लम्हें बिताये तुम्हारे साथ... हर रंग में रंगे... सुर्ख भी... सब्ज़ भी... चमकीले भी... स्याह भी... कभी चटख गुलाबी तो कभी झील से नीले... हर लम्हें हर रंग का अपना मज़ा... पर वो पहला लम्हा वो पहला पल क्या कभी बुलाया जा सकता है... कोहिनूर सा चमकीला... सबसे अलग... कुछ अलग ही स्पार्क था उसमें... अलौकिक सा... रूहानी... जैसे उस एक लम्हे को वाकई उस ऊपर वाले ने ख़ुद ही रचा था हमारे लिये... रूहानी ही तो था हमारा मिलना.. है न ?
उस एक पल से ले कर आज तक हर लम्हा ये सफ़र ये हमारा साथ एक अलग ही एक्सपीरियंस रहा है.. कितना कुछ जिया हमने... हर वो ख़्वाब जो बिना हमारे मिले ख़्वाब ही रहता... वो सारी बचकानी ख़्वाहिशें जिन्हें तुमने पूरा किया... कितना कुछ तो लिख चुकी हूँ अपनी उन सारी ख़्वाहिशों के बारे में... साथ बिताये उन सारे पलों के बारे में... अब और क्या नया लिखूँ...
आज सोच रही हूँ... तुम्हारे साथ बिताये उन सारे चमकीले लम्हों को इक्कट्ठा कर के गर एक कलाइडोस्कोप बनाया जाये तो दुनिया के सबसे ख़ूबसूरत रंग उनमें देखे जा सकेंगें... हर बदलते एंगल के साथ एक नयी पेंटिंग उभरेगी... बेहद ख़ूबसूरत... हमारे प्यार के रंगों में रंगी...
हमारे साथ का ये हर लम्हा तुम्हें भी मुबारक़ हो जान... तुम्हारी बहुत याद आ रही है आज.. बहुत मिस कर रही हूँ तुम्हें... बहुत ज़्यादा... बोलो न आज रात मिलोगे क्या... सपने में ?
ज़मीं पे न सही तो आसमां में आ मिल.. तेरे बिना गुज़ारा ऐ दिल है मुश्किल...!!!
*Paintings - Leonid Afremov