आज बड़ी सारी भीगी सीली रातों के बाद एक ख़ुशनुमा दिन खिला तो
सोचा यादों की गठरी खोल के उन्हें भी थोड़ी सी धूप दिखा दूँ... बैठी बैठी
यूँ ही कुछ पुराने वर्क़ पलट रही थी यादों के कि अचानक ढेर सारी मीठी मीठी
ख़्वाहिशों से लबरेज़ एक विश लिस्ट पर नज़र पड़ी... कितनी तो प्यारी प्यारी ख़्वाहिशें
लिखीं थीं उसमें... मेरी तुम्हारी... याद है वो दौर कि जब हर रोज़ हम उसमें
अपनी एक ख़्वाहिश जोड़ा करते थे... एक दिन मेरी बारी होती, दूसरे दिन
तुम्हारी... क्या पागलपन भरे दिन थे वो भी... कितने उजले, कितने प्यारे... ख़ुशियों से छलकते... बांवरा सा ये मन हर पल जाने किस दुनिया में विचरता
रहता... अपनी ही धुन में मग्न... आज भी सोचो तो मुस्कुराहट होंठों पे बेसाख़्ता तैर जाती है...
एक एक कर सारी ख़्वाहिशों को पढ़ती गई तो पाया कि लगभग सारी ही
तो पूरी हो चली हैं... समय भी तो बीत गया ना कितना... तो आओ आज इस उजले दिन
में मिलकर एक नयी विश लिस्ट बनाते हैं... कुछ तुम अपनी ख़्वाहिशें जोड़ो
इसमें... कुछ मैं अपने ख़्वाब टाँकती हूँ... कि कुछ ख़्वाहिश, कुछ ख़्वाब
बचे रहें तो ज़िन्दगी जीने की ललक भी बची रहती है... और साथ मिल कर उन
ख़्वाबों, ख़्वाहिशों को पूरा करने का उत्साह भी बचा रहता है...
ऐसे
ही किसी उजले से दिन एक लॉन्ग ड्राइव पे जाना है तुम्हारे साथ... दूर बहुत
दूर तलक... जहाँ धरती और आसमां मिल कर एक होने का भ्रम देते हों... साथ ना
होते हुए भी एकदम करीब... एक दूसरे में घुलते हुए से... एकसार... हमारी
तरह...
किसी पूरनमासी की रात किसी ऊंचे पहाड़ की चोटी से
चाँद देखना है... बिलकुल साफ़ शफ़्फ़ाक... इतना बड़ा गोया किसी ने आसमां से
तोड़ के सामने वाली अल्हड़ पहाड़ी के माथे पे सजा दिया हो, बिंदिया बना के...
इतना पास कि हाथ बढ़ाऊँ तो छू ही लूँ उसे... उसकी चाँदनी का शॉल ओढ़े पूरी
रात तुम्हारे काँधे पे सर रख के ढेर सारी बातें करनी हैं...
किसी शांत नदी के तट पे बैठ तुम्हारी बाँसुरी सुननी है, भोर की पहली किरण के
साथ... जब सुरों में बदल रही होंगी तुम्हारी साँसे उस बाँस के टुकड़े से
गुज़र के... मेरे वजूद में भी घुल जायेंगे सातों सुर... तुम्हारी सिम्फनी
के...
याद है हमारा पसंदीदा शहर वेनिस... पानी पे तैरते किसी
ख़ूबसूरत जज़ीरे सा... वहाँ की सर्पीली गलियों में घूमना है तुम्हारे साथ
हाथों में हाथ डाले... गंडोला पे बैठ के पानी में उतरता शाम का सूरज देखना
है... दीवार से लग कर लकड़ी की ख़ूबसूरत नक्काशीदार खिड़की तक बढ़ती पीले गुलाब
की बेल के नीचे तुम्हारा माथा चूमना है... मेरी ज़िन्दगी में आने के
लिये...
देखो मैंने दर्ज करा दी अपनी चंद ख़्वाहिशें अब तुम्हारी बारी... तुम भी कुछ कहो...
तुम
ये ही सोच रहे हो ना कि हमारी इन बाँवरी ख़्वाहिशों को पूरा करने के लिये
इतने पैसे कहाँ से लायेंगे... पर हमारी ख़्वाहिशों को पूरा करने के लिये
पैसों की ज़रूरत कब से पड़ने लगी जान... भूल गये क्या... हमारी दुनिया में बस
चाहतों की करेंसी चलती है... जानते हो जान मैं दुनिया की सबसे अमीर लड़की हूँ
कि मेरे पास एक पूरी गुल्लक भर के तुम्हारी हँसी के सिक्के हैं...
अच्छा छोड़ो ये सब... बाकी ख़्वाहिशें जब पूरी होंगी तब होंगी... एक ख़्वाहिश अभी पूरी कर दोगे... बोलो... कैन आई गेट अ टाईट हग... राईट नाओ ???