Saturday, July 5, 2014

Kumaon Diaries - Day 1


26th June 2014; Lucknow to Kausani




अल्मोड़ा से कौसानी जाते वक़्त पाइन के ख़ूबसूरत जंगलों से गुज़रते हुए

नैनीताल हमेशा से हमारा पसंदीदा हिल स्टेशन रहा है... झील के किनारे बसा एक खूबसूरत शहर... यूँ तो तीन बार पहले भी आ चुकी हूँ यहाँ... पर दिल है की भरता ही नहीं इस जगह से... जाने मन की कौन सी डोर है जो हर बार यही अटक कर रह जाती है और बार बार हमें अपनी ओर खींच लेती है...

अब ये चौथी ट्रिप थी यहाँ की तो सोचा क्यूँ ना इस बार थोड़ा अलग रूट लिया जाये... पहले कौसानी चलते हैं... वहाँ से उतर के रानीखेत आयेंगे और सबसे आखिर में नैनीताल... तो बस ट्रिप फ़ाइनल होते ही irctc की साईट पे जम गये... भला हो रेलवे वालों का की आख़िरकार उन्हें लखनऊ काठगोदाम शताब्दी की याद आ ही गयी... एक हफ्ते के लिये चली इस ट्रेन को एक और वीक का एक्सटेंशन भी मिल गया... बस फिर क्या था टिकट बुक किये और चल दिये इस गर्मी में सुकून के चंद रोज़ बिताने के लिये...

सुबह सवा पाँच बजे की ट्रेन थी सो तीन बजे उठे... नहा धो कर तैयार हुए और सुबह पाँच बजे के करीब उमस भरी गर्मी में स्टेशन पहुँचे... प्रीमियम ट्रेन थी सो साफ़ सुथरी थी... पिछले हफ़्ते न्यूज़ पेपर में छपी ख़बरों के विपरीत रास्ते भर खाना भी ठीक ठाक ही मिला... दोपहर करीब पौने एक बजे हम काठगोदाम पहुँच गये... वहाँ से तीन दिन के लिये टैक्सी हायर करी और निकल पड़े कौसानी की ओर... ख़ूबसूरत कुमाउनी वादियों से गुज़रते हुए अपने पाँच दिन के कुमाऊं प्रवास पर...


दुनिया की सबसे ख़ूबसूरत बारिश पहाड़ों पर होती है !

काठगोदाम से थोड़ा ही आगे बढ़े थे की बादल और बारिश उमड़ पड़े हमारे स्वागत में... मन की सूखी धरती पर बारिश की बूँदे पड़ते ही ऐसा सौंधा सा एहसास हुआ की क्या बतायें... सुबह तीन बजे उठ कर ट्रेन पकड़ने की थकन जैसे गायब ही हो गयी... सब एकदम से हराभरा हो गया... मानो मेघों से अमृत बरस रहा हो और हम उसे पी कर अमर हुए जाते हों...


कोसी पे बना कोई पुल

काठगोदाम से भुवाली होते हुए रास्ते का पहला पड़ाव था कैंची... यहाँ नीम करोली बाबा का बनवाया हुआ हनुमान जी का प्रसिद्ध मन्दिर है... प्राकृतिक सुंदरता के बीच स्थापित इस मन्दिर की साफ़ सफ़ाई और यहाँ का अनुशासन देखने लायक है... यहाँ मिलने वाला चने का प्रसाद हमें बड़ा पसंद है... बारिश ने यहाँ तक भी उँगली थामी हुई थी सो कैमरे को हमने सुस्ताने दिया... और ख़ुद बारिश में भीगे पाइन के पेड़ों से उठती मदहोश कर देने वाली ख़ुश्बू के खो गए... ऐसी मादक ख़ुश्बू जिसे बस महसूस किया जा सकता है... बयां नहीं...


शिखर पे बसा अल्मोड़ा किसी परी कथा के गाँव सा प्रतीत होता है

करीब पौन घंटे बाद हम अपने अगले पड़ाव अल्मोड़ा पहुँचे... ये बहुत ही शान्त और खूबसूरत पहाड़ी शहर है... हमें यहाँ ठहरना नहीं था... पर अल्मोड़ा से गुज़रें और बाल मिठाई ना लें ये तो इस खूबसूरत जगह का अपमान करने जैसा हुआ... और ऑफिस में भी सबको प्रॉमिस कर के आये थे की बाल मिठाई ले कर ही वापस आयेंगे... सो जम कर यहाँ की प्रसिद्ध बाल मिठाई और चॉकलेट मिठाई खरीदी... इतनी बार आये हैं यहाँ की इस बार तो वो मिठाई वाला भी पहचान गया हमें...

मुँह मीठा कर के थोड़ा आगे बढ़े ही थे की बारिश एक बार फिर हमसे मिलने आ गयी... और फिर कौसानी तक उसकी ये आँख मिचोली चलती रही...


पर्बतों से गले मिलते बादल, मिलन के गवाह बने सीढ़ी वाले खेत

कौसानी दो चीज़ों में लिये बहुत फेमस है यहाँ का सनराइज़ और सनसेट... होटल पहुँचते तक करीब छः बज गये थे... बारिश हो रही थी सो अलग... सनसेट देखने की हसरत मन में ही रह गयी... लेकिन यहाँ पहुँचने का सुकून था... होटल में चेक इन कर के रूम में पहुँचे तो वहाँ के नज़ारे ने सारी थकन उतार दी... रूम में ही पूरी दीवार भर की फुल लेंग्थ खिड़की से नज़र आती बारिश में भीगी हिमालय की चोटियाँ... अद्भुत नज़ारा था...


होटल की खिड़की से दिखता 375 किलोमीटर लम्बा हिमालयन रेंज

चेंज कर के और चाय पी कर जब तक हम होटल की छत पर पहुँचे तो हल्का अँधेरा घिर आया था... हवा ठंडी थी... हलकी सिहराने वाली... नीचे वादी में टिमटिमाता कोई पहाड़ी गाँव जुगनुओं के झुरमुट सा प्रतीत हो रहा था... आँखों और कैमरे में उस खूबसूरती को क़ैद कर वापस रूम में आये... खाना खाया...


जुगनुओं के झुरमुट सा टिमटिमाता पहाड़ी गाँव

करीब दस बजे लेट कर डायरी लिखते हुए इस पूरे दिन को याद किया... लखनऊ से कौसानी तक के इस एक दिन के सफ़र में कितने मौसमों से गुज़रे... गर्मी... उमस... बारिश... और अब ये निम्मी निम्मी ठण्ड... रूह को ठंडक पहुँचाने वाली... नींद ने कब बढ़ कर अपनी आगोश में समां लिया पता ही नहीं चला....!


 

5 comments:

  1. बहुत सुन्दर। इसे पढ़ कर ही निम्मी निम्मी ठण्ड लगने लगी.

    आज एक सौ रुपये और सहेजेंगे।

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  2. वैसे समुद्र पर हो रही बारिश का नज़ारा भी बहुत शानदार होता है. लोग छाता लगा कर देखते हैं.

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    1. होता है.. पर पहाड़ों की बात ही अलग है... पाइन, चीड़, देवदार से हो कर जब बारिश हम तक पहुँचती हैं तो उसकी मादकता कई गुना बढ़ जाती है... जंगल की ख़ुश्बू ख़ुद में समेटे हुए... बारिश ख़त्म होने के बाद भी देर तलक पेड़ों की नुकीली पत्तियों से बूँद बूँद पानी टपकता रहता है... बारिश के बाद का कुहासा जैसे पूरी वादी पश्मीना का मुलायम रोयेंदार शॉल ओढ़ ले...!

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  3. यात्रा के दौरान इतना खूबसूरत एहसास करना और फिर उन्हें इतनी गहराई के साथ उकेरना। वाकई पाठक खुद को वही पर महसूस करने लगता है
    Happy Blogging

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  4. I can even feel the cool breeze blowing all over...

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दिल की गिरह खोल दो... चुप ना बैठो...

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