मन बहुत उदास है आज सुबह से... पिछले कोई आठ दस साल से घर के सामने ख़ाली पड़े प्लॉट में एक नीम का पेड़ उग आया था... एक अजीब सा रिश्ता हो गया था उससे... बेनाम.. बेआवाज़... सिर्फ़ आँखों का रिश्ता.. अजब सा सुकून मिलता था उसे देख कर... जैसे घर का कोई बड़ा बुज़ुर्ग... आते जाते भले उसे ना भी देखूँ तो भी उसके होने का एहसास साथ रहता था... कितने ही दिन उसने माँ के आँचल कि तरह खिड़की से आती धूप को रोका और मेरी नींद नहीं टूटने दी... कितने ही दिन एक प्रेमिका कि तरह चाँद को अपने आग़ोश में छुपा के ज़िद पर अड़ गई आज कहीं नहीं जाने दूँगी तुम्हें.. आज तुम सिर्फ़ मेरे हो... मेरे चाँद... सिर्फ़ मेरे लिये चमकोगे... दुनिया में अमावास होती है तो हो जाये...
एक छोटे बच्चे से व्यस्क होते देखा उसे... बेहद घना और छायादार.. जाने कितने ही पँछियों का आशियाना बना हुआ था... दो कोयल भी रहती थीं उसपर... सारा दिन बोल बोल कर दिमाग़ खाती रहती थीं... वो कोयल अब न बोलेंगी... इन्सान ने एक बार फिर अपना आशियाना बनाने के लिये उनका आशियाना छीन लिया... क्या कोई सरकार उन्हें मुआफ्ज़े में नया आशियाना देगी... वो मासूम तो हम इंसानों कि तरह अपने हक़ के लिये लड़ भी नहीं सकते...
अब तक उस नीम की चीख सुनाई दे रही है... कैसे कराह रहा था बेचारा जब एक एक डाल काट कर उसके तने से अलग करी जा रही थीं... उसकी ख़ाली करी हुई जगह पर कुछ ही दिनों में एक नया कंक्रीट का आशियाना बन जायेगा... नये लोग बस जायेंगे... एक बार फिर वो जगह आबाद हो जायेगी.. हम भी भूल ही जायेंगे उस नीम को कुछ दिनों में... आख़िर एक पेड़ ही तो था बस... यही दुनिया है... डार्विन ने सही कहा था.. "सर्वाइवल ऑफ़ दा फिटेस्ट"... अंत में ताकतवर ही जीतता है... उसे ही हक़ है इस दुनिया में रहने का...
दोस्त अक्सर मुझसे कहते हैं... तुम सोचती बहुत हो... स्टॉप बीइंग सो इमोशनल... बी प्रैक्टिकल यार !!
कभी कभी लगता है वो सही कहते हैं...
हमें पेड़ों की पोशाकों से इतनी सी ख़बर तो मिल ही जाती है
बदलने वाला है मौसम...
नये आवेज़े कानों में लटकते देख कर कोयल ख़बर देती है
बारी आम की आई...!
कि बस अब मौसम-ऐ-गर्मा शुरू होगा
सभी पत्ते गिरा के गुल मोहर जब नंगा हो जाता है गर्मी में
तो ज़र्द-ओ-सुर्ख़, सब्ज़े पर छपी, पोशाक की तैयारी करता है
पता चलता है कि बादल की आमद है!
पहाड़ों से पिघलती बर्फ़ बहती है धुलाने पैर 'पाइन' के
हवाएँ झाड़ के पत्ते उन्हें चमकाने लगती हैं
मगर जब रेंगने लगती है इन्सानों की बस्ती
हरी पगडन्डियों के पाँव जब बाहर निकलते हैं
समझ जाते हैं सारे पेड़, अब कटने की बारी आ रही है
यही बस आख़िरी मौसम है जीने का, इसे जी लो !
-- गुलज़ार
बदलने वाला है मौसम...
नये आवेज़े कानों में लटकते देख कर कोयल ख़बर देती है
बारी आम की आई...!
कि बस अब मौसम-ऐ-गर्मा शुरू होगा
सभी पत्ते गिरा के गुल मोहर जब नंगा हो जाता है गर्मी में
तो ज़र्द-ओ-सुर्ख़, सब्ज़े पर छपी, पोशाक की तैयारी करता है
पता चलता है कि बादल की आमद है!
पहाड़ों से पिघलती बर्फ़ बहती है धुलाने पैर 'पाइन' के
हवाएँ झाड़ के पत्ते उन्हें चमकाने लगती हैं
मगर जब रेंगने लगती है इन्सानों की बस्ती
हरी पगडन्डियों के पाँव जब बाहर निकलते हैं
समझ जाते हैं सारे पेड़, अब कटने की बारी आ रही है
यही बस आख़िरी मौसम है जीने का, इसे जी लो !
-- गुलज़ार
so sad... ab kya kahen..
ReplyDeleteemotional kar gayee aapki post
Happy Blogging
बहुत ही भावमय करती प्रस्तुति ..आभार ।
ReplyDeletekya karein yahi hakikat hai.
ReplyDeleteदिल की भावनाओं को छू गयी ये रचना.....
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर भी आपका स्वागत है...
हकीकत को बताती रचना...
ReplyDeleteBadaa hee bhavuk aalekh hai!
ReplyDeletebahut hi khoobsurat jajbaat , sach kaha hai
ReplyDeleteबेचारे पेड़ बोल नहीं सकते न...
ReplyDeleteदिल्ली में जहां मैं रहता हूं उसे द्वारका कहते हैं. यह कोलोनी कोई 10 साल पहले बसनी शुरू हुई...बहुत हरियाली है. दुनिया भर की क़िस्मों के पेड़ पौधे लगाए गए हैं, एक से बढ़ कर एक. लेकिन कोई भी फलदार वृक्ष नहीं लगाया गया है. काश यहां का हार्टीकल्चर विभाग इतना तो पढ़ लेता कि flora और fauna साथ-साथ क्यों लिखे जाते हैं. यदि फलदार पेड़ लगाए जाएं तो बहुत से पक्षियों को प्रश्रय मिलता हैं इनपर. हो सकता है कि ये, हवाई अड्डा नज़दीक होने का बहाना बनाए बैठे हों. पर ये भले आदमी इस बात का जवाब नहीं ही दे पाएंगे कि किस तरह के पक्षी कितनी ऊंचाई तक उड़ान भरते हैं.
आपकी पीड़ा समझ सकता हूं मैं.
Ab apka Dwarka bahut badal chuka hai ! Main samajh pa raha hu ki aap shayad Year 2000 ke aas paas ki baat kar rahe hain ! Ab shayad sab hariyali khatam kar di ho zalim insaano ne :(
Deleteभावुक करने वाली पोस्ट ..पक्षियों को तो कहीं और बसने के लिए जगह भी नहीं दी जाती ..बेचारे खुद ही तलाश करते हैं ...
ReplyDeleteनिश्चय ही एक शोकगीत -संवेदनाओं से लबरेज !
ReplyDeleteयह सब देख कर मन दहल उठता है।
ReplyDeleteउम्दा सोच
ReplyDeleteभावमय करते शब्दों के साथ गजब का लेखन ...आभार ।
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ReplyDeleteThis is one of the most beautiful blogs that I found on blogger ! I will read more and more here ! Have already bookmarked it :)
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