धुन केनी जी के एल्बम ब्रेथलेस से - "इन द रेन"
( आओ आज फिर एक सपना देखते हैं... तुम हो... मैं हूँ... तारों भरा आसमां हो... बादलों में छुप के चाँद भी झाँकता हो... लजाया सा... कुछ कुछ शरमाया सा... पार्श्व में ये धुन हो मद्धम मद्धम बजती हुई... तुम्हारे गले में बाहें डाले, काँधे पे सर रखे, आँखें मूंदे... सारी उम्र थिरकती रहूँ... बस यूँ ही !!! )
Behatareen.. Happy Blogging
ReplyDeleteवाह .. बहुत खूब
ReplyDeleteदिले नादां तुझे हुआ क्या है,
ReplyDeleteआखिर इस दर्द कि दवा क्या है.
सच में आखिर हुआ क्या है ???
आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (09.07.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at
ReplyDeleteचर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
bahut hi khubsurat.......
ReplyDeleteNihayat khoobsoorat rachana hai!
ReplyDeleteaap pahli bar meri purani post 'kya mila tumhe' bahut aabhari hun.
ReplyDeleteab aapki post...
sach me yade aisi hi hoti hain....chand lamho k liye aati hain aur hame geela kar jati hain...
sunder shabdo me dhala hai apne ehsaso ko.
चौखट पर कुछ गीला और सूखा मन लिए बैठने की बात ... बहुत खूबसूरत भाव ...सुन्दर रचना
ReplyDeleteगहन, जो बरस नहीं पाता है, नमकीन बन आँखों की कोरों में बसा रहता है।
ReplyDeleteबहुत खूब.... वाह!
ReplyDeletewah.had kar di......
ReplyDeletegeela mann sookhna chahta hai, phir bheegna chahta hai... ek baadal banker aa bhi jao sapne ki tarah
ReplyDeletenice!
ReplyDeleteamazing poem , great composition. शब्द उभर का बहुत कुछ कह रहे है .. आपने यादो को हवा देने का कामा किया है अपनी कविता से.. बधाई
ReplyDeleteआभार
विजय
कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html