सुबहें अब पहले सी नहीं होतीं
कोई बाहों में भर के अब नहीं उठाता
सूरज बहुत देर से निकलता है
दिन के दूसरे या तीसरे पहर
नींद भी देर से खुलती है
फिर भी न जाने क्यूँ
एक अजीब सी सुस्ती तारी रहती है
सारा दिन
वो शामें अब नहीं आतीं
के जिनके इंतज़ार में
दोपहरें उड़ती फिरतीं थीं
लम्हें पलकें बिछाते थे
अफ़सुर्दा आसमां से अब
पहले सी चाँदनी नहीं बरसती
चाँद एक कोने में उदास पड़ा रहता है
तारे उसे नज़र भर देखने को तरस जाते हैं
कोई जुम्बिश नहीं होती अब
ख़्यालों में
ना कोई ख़्वाब ही करवट लेता है
नींद की चादर तले
ये ग्रहों ने कैसी चाल बदली है
कि दिन-रात का सारा
हिसाब बिगड़ गया
कुछ भी अपनी जगह अब नहीं रहा
एक बार आओ मिल के
ज़िन्दगी का बहीखाता जांच लें
कि कुछ किश्तें ज़िन्दगी की ग़ायब हैं
या शायद खाते में चढ़ाना भूल गये हम...
-- ऋचा
कोई जुम्बिश नहीं होती अब
ReplyDeleteख़्यालों में
ना कोई ख़्वाब ही करवट लेता है
नींद की चादर तले...
per aapki kalam ne jumbish paida ki hai aur neend ki chadar tale ek khwaab karwat le kah raha hai...
apni yah rachna mail ker dijiye vatvriksh ke liye , .... vatvriksh ke niche kuch khwaab karwaten lene ko aatur hain
इससे पहले कभी कोई इक किताब थी के जिसके वर्क गल गए थे. वो साहिल के रेत में धुल जमी मिली थी
ReplyDeletehttp://lamhon-ke-jharokhe-se.blogspot.com/2010/12/blog-post_22.html
कवितायेँ यात्रा करती हैं. उसके सहारे हम चलते हैं, उसी तरह कई बार प्यार का सफ़र भी होता है...
अभी आँखों में है खवाब रोशन, अभी रतजगे अच्छे लगेंगे से लेकर देखना यह बढती चाहतों का सिलसिला, मौज -ए-खून दिखलायेगा, रंग-ए- हिना ले जाएगा तक.
मस्त मौला चाँद से लेकर पीलिया का शिकार हुआ पार्क तक सब इसके दम से है. कमोबेश यही होता कि सफ़ेद कोलर को पलट कर पहना जा सकता...
देर रात यह नज़्म हंगामा पैदा कर सकती है, शिद्दत साफ़ देखी जा सकती है और शुतुरमुर्ग कि तरह गर मिटटी में सर घुसाए रहे तो उसे निकाला जा सकता है. मगर "ख़ाक हो जायेंगे हम तुमको खबर होने तक" का अक्स लिए यह बातें जब दिल/डायरी तक ही पोशीदा रह जाए या फिर वो वैसे ना समझे तो सारे सपने आवाज़ में आ जाते हैं...
मैं क्या लिख रहा हूँ पता नहीं, पर कहना यही चाहता हूँ कि आपके ब्लॉग पर पढ़ी गयी तमाम नज्मों में सबसे नायाब... किताब से भी बेहतर... विश्लेषण/शिकायात और सुझाव ऐसे होने लगे तो यकीनन कई मसले हल हो जायेंगे...
अपना मूड भी कुछ ऐसा है, वजेह यही है कि बहता गया हूँ. जानता हूँ कि कल इस भावुकता पर हम सब को पछताना भी होगा.
"ये ग्रहों ने कैसी चाल बदली है
ReplyDeleteकि दिन-रात का सारा
हिसाब बिगड़ गया
कुछ भी अपनी जगह अब नहीं रहा "
सही में हम कुछ किश्तें भूल गए है....
या अलग-अलग हिसाब रखने लगे है !!
बेहतर है कि समय रहते ही हिसाब-किताब
बराबर करलें....
सुन्दर अभिव्यक्ति..
Bahut dino baad aapki post dikhi... behatreen rachna.. Happy Blogging
ReplyDeleteजिन्दगी का बहीखाता बीच बीच में जाँच लें हम सब।
ReplyDeleteएक बार आओ मिल के
ReplyDeleteज़िन्दगी का बहीखाता जांच लें
कि कुछ किश्तें ज़िन्दगी की ग़ायब हैं
या शायद खाते में चढ़ाना भूल गये हम...
बहुत खूब ...सुन्दर रचना
बेहतरीन अभिव्यक्तियों से सजी सुन्दर श्रंखला में बंधे शाब्द बधाई
ReplyDeleteएक बार आओ मिल के
ReplyDeleteज़िन्दगी का बहीखाता जांच लें
कि कुछ किश्तें ज़िन्दगी की ग़ायब हैं
या शायद खाते में चढ़ाना भूल गये हम...
बहुत बढ़िया ...जिंदगी बहीखाता ही है.... कभी कभी जाँच लेना ही बेहतर है....
कुछ रिश्ते जिन्दगी से गायब हैं
ReplyDeleteया शायद हम खाते में चढाना बूल गए .
अब जिन्दगी बही खाता है तो लाज़मी है कुछ हिसाब किताब ऊपर नीचे हो जाता है ..शायद इसलये कुछ रिश्ते ताल्लुक बनकर रह जाते हैं ..और कुछ ताल्लुक रिश्ता बन जाते हैं.
जिन्दगी है क्या करें !
क्यू छलक रहा दुःख मेरा निशा की घन पलकों में
ReplyDeleteहा उलझ रहा सुख मेरा उषा की मृदु अलकों में
लाजवाब अभियक्ति .
बेहतरीन!!...गाना मनपसंद था.
ReplyDeleteयही तो मैं भी सोचता हूँ पर जिस तरह आपने एक सोच, समस्या...को अपने अंदाज़ में शब्दों में पिरोया है मैं नहीं समेट पाता इसलिए बड़ी प्यारी लगी यह कविता.
ReplyDeleteLovely ..
ReplyDeleteto fir kamar kas lijiye bahi khata check karne ki...aur jaldi kijiye action lene ki sakht jarurat hai. :)
ReplyDeletebadhiya rachna.
या मुमकिन है ....कुछ किश्ते वक़्त पर न मिली हो ...या चढ़ गयी हो किसी ओर बहीखाते में.......
ReplyDeleteया खुदा का मुंशी गया हो छुट्टी पे ....
bahut achcha likha hai aapne......ekdam dil se....
ReplyDeletevery nice it is !!!
ReplyDeleteबहुत - बहुत शुक्रिया ...
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