गहरे सिलेटी आसमां पर
चाँदनी की हल्की पीली शॉल ओढ़े
एक ज़र्द सा चाँद आया था आज
बहुत कमज़ोर दिख रहा था
कुछ उदास, थोड़ा ग़मगीन
शायद अकेलेपन का दर्द था
इतने तारे तो होते हैं
हर पल उसके आस-पास
फिर क्यूँ इतना तन्हाँ था
सारी दुनिया थकती नहीं
उसकी सुन्दरता की उपमाएं देते
उसे तो ख़ुश होना चाहिये, पर नहीं था
उसे यूँ देख कर तकलीफ़ हुई
पहली बार पूरनमासी का चाँद
मुस्कान की जगह उदासी दे गया
शायद तन्हाई का दर्द समझती हूँ
जी चाहा हाथ बढ़ा के थाम लूँ उसे
भर के आग़ोश में चूम लूँ उदास आँखें
ये ख़ुदा भी ना अब पहले सा नहीं रहा
इन्सानी फ़ितरत सीख गया है
पक्षपात करने लगा है
ज्यूपिटर पसंद है तो
उसे तिरसठ चाँद दे दिये
और पृथ्वी को बस एक
वो तिरसठवाँ चाँद जो वहाँ अकेला है
इस धरती को दे देता
तो हमारा चाँद यूँ तन्हा ना होता आज...
-- ऋचा
हम्म्म.. शायद आपकी यह कविता पढ़कर धरती का चाँद कभी उदास न हो... मामा प्लीज़ पढ़िए न और यूँ उदास नहीं रहिए.. आज मुस्कराते दिखना.. प्रॉमिस.. :)
ReplyDeleteहैपी ब्लॉगिंग
खुदा से ये शिकायत भी जायज़ है ....और चाँद के अकेलापन का दर्द भी ....शायद इसीलिए शायरों को चाँद में महबूब नज़र आता है ......मुमकिन हैं उनकी सोच के अल्फाज़ से इसका अकेलापन दूर होता हो......बहुत सुन्दर....कल पढ़ी तो अच्छी लगी ......आज चित्र के साथ और ज्यादा अच्छी लगी...यूँ ही लिखती रहो :-)
ReplyDeleteवाह! क्या खूब कहा है और शायद सच कहा है मगर फिर उनका क्या होता जो चाँद को ना जाने क्या क्या बना देते हैं ………………बेहद खूबसूरत प्रस्तुति।
ReplyDeleteबेहतरीन शब्दों का संगम है इस रचना में ।
ReplyDeleteचाँद के साथ कई दर्द पुराने निकले
ReplyDeleteकितने ग़म थे ......
तस्वीर बेहद खुबसूरत और उदास है.
Sundar tasveer ke saath utnee hee sundar rachana!
ReplyDeleteJisne tanhayee jee hai,wahee tanhayee samajh sakta hai!
यह कुछ कुछ विज्ञान कविता सी लग रही है -सर्वथा नए बिम्ब !
ReplyDeleteअकेला है तभी तो हमारा चाँद प्यारा है।
ReplyDeleteअकेलेपन की व्यथा का बहुत मर्मस्पर्शी चित्रण..भावनाओं को बहुत सुन्दर शब्दों में संजोया है..बहुत सुन्दर विम्बों का प्रयोग..बहुत ख़ूबसूरत प्रस्तुति..
ReplyDeletesahcmuhc... khalaon men kitni nazmen hain na.... ek dafa sahi se jaa ke dekh aao to shayri kee dunia ko aasmaani karne ka dhang aa jata hai... juoitor ko 63 chnad..... killer hai thought...ek dum alag..ek dum naya....humare chaand kee tanhai door karne ka ek matra rasta.... :)
ReplyDeleteअरे आज सच में कोई गाना नहीं है.....:( मुझे लगा पिछली बार आपने मज़ाक किया था....
ReplyDeleteहर पोस्ट के साथ एक गाना होना चाहिए, आपकी गाने की पसंद बहुत अच्छी है.... अगली बार एक अच्छे से गीत की फरमाईश है, नहीं तो यहीं धरने पर बैठ जाऊँगा....
हाँ अब आते हैं कविता पे,
आखिरी के दो पैरा में तो एकदम से विज्ञान आ गया,,,..
सच ही है बेचारे हमारे चंदा मामा अकेले ही टहलते रहते हैं....
लगता है बहुत करीब से देख लिया चाँद की उदासी को..कल यही मुआ मेरी उदासी पे हस रहा था.....
ReplyDeleteबेहद उम्दा रचना ऋचा जी..धन्यवाद..
क्या बात है ..चाँद के अकेलेपन का एहसास कराती खूबसूरत रचना
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteoh my my...! kya kamaal ka thought layi ho yaara...toooo good...! maza aa gaya, one of its kind, khaas nazm hai ye :)
ReplyDeleteaath sau solh chand ki raate.....aor khuda .....
ReplyDeleteshayad kisi ko Jupiter bhi pasand hoga....
kya kahne hain., tirsathwa chand pe aapka dhyan chala gaya..........kash wo mil jaye...:)
ReplyDeletebahut behtareen likhti hain..!
गहरे सिलेटी आसमां पर
ReplyDeleteचाँदनी की हल्की पीली शॉल ओढ़े
एक ज़र्द सा चाँद आया था आज
हां ऐसे चांद तो हमने भी देखे हैं।
nice imaginations :)
ReplyDeleteअलग सा, ख़ूबसूरत सा
ReplyDeleteभावनात्मक विषय ...
ReplyDeleteवैज्ञानिक दृष्टिकोण ....
अनुपम प्रस्तुति ........... !!
so logical and so scientific.....
ReplyDeleteit feels that was a ghazal by B.Sc. in arts.:-)
kya kahun, pahli baar aapke blog par aaya hoon , is nazm par ruk sa gaya hoon . dil me utarti chaand ki raate ....
ReplyDeletebadhayi
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मेरी नयी कविता " तेरा नाम " पर आप का स्वागत है .
आपसे निवेदन है की इस अवश्य पढ़िए और अपने कमेन्ट से इसे अनुग्रहित करे.
"""" इस कविता का लिंक है ::::
http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/02/blog-post.html
विजय
आपके पास अपने ओरिजनल एहसासों का खासा सा खजाना है, जिसे रूमानी चीजों से आपने खुद सजा कर बस एक बोल दे दिये हैं...
ReplyDeleteइस कारण आपका व्यक्तित्व्य भी काफी गरिमा पूर्ण है. एक क्लास है उसमें जो सबसे अलग करता है. ग़लतियों से ऊपर एक एक जुदा गुलाब का डंठल है.