वो साहिल की रेत में दबी
किताब सा मिला
कुछ नम, कुछ रुखा,
नम पन्नों पर
कुछ धूल सी जम आयी थी
सीलन से
कुछ वर्क ग़ल गये थे
कुछ हर्फ़ भी पिघल गये थे
कुछ सीमे हुए से किरदार मिले
उन आधे अधूरे पन्नो में
बड़े ही दिलचस्प थे
पूरा पढ़ना चाहा, पर
ठीक से पढ़ ना सकी...
अजीब कैफ़ियत है
अजीब क़िस्सा है
ना इब्तिदा है कोई
ना अंजाम तक ही पहुँचा
फिर भी पढ़ती हूँ
अक्सर उसे
उन अनसुलझे किरदारों से
अजीब शनासाई है...
-- ऋचा
किताब सा मिला
कुछ नम, कुछ रुखा,
नम पन्नों पर
कुछ धूल सी जम आयी थी
सीलन से
कुछ वर्क ग़ल गये थे
कुछ हर्फ़ भी पिघल गये थे
कुछ सीमे हुए से किरदार मिले
उन आधे अधूरे पन्नो में
बड़े ही दिलचस्प थे
पूरा पढ़ना चाहा, पर
ठीक से पढ़ ना सकी...
अजीब कैफ़ियत है
अजीब क़िस्सा है
ना इब्तिदा है कोई
ना अंजाम तक ही पहुँचा
फिर भी पढ़ती हूँ
अक्सर उसे
उन अनसुलझे किरदारों से
अजीब शनासाई है...
-- ऋचा
Bahut achcha representation.. phir se agrah karunga ki aapko apni rachnaon ka sangrah prakashit karne par gambheerata se vichar karna chahiye..
ReplyDeletehappy blogging
अरे वाह..बहुत खूब...
ReplyDeleteक्या खूब नज़्म है, दिल को भा गयी...
बिलकुल सच्ची.....
और ये कर्सर ले जाने पर शब्दों के अर्थ पता चलने वाला फ़ॉर्मूला भी पसंद आया...हम जैसे अज्ञानियों के लिए तो अमृत का काम करेगा....:)
वो साहिल की रेत में दबी
ReplyDeleteकिताब सा मिला
कुछ नम, कुछ रुखा,
नम पन्नों पर
कुछ धूल सी जम आयी थी
सीलन से
कुछ वर्क ग़ल गये थे
कुछ हर्फ़ भी पिघल गये थे
कुछ सीमे हुए से किरदार मिले
उन आधे अधूरे पन्नो में
बड़े ही दिलचस्प थे
पूरा पढ़ना चाहा, पर
ठीक से पढ़ ना सकी...
waah
गुलज़ारियत जम कर हावी हैं......सहमत हूँ आशीष जी से .....अब छपवा ही लो :-)
ReplyDeleteहमारा हाल यही होता है, कुछ रूखा, कुछ नम।
ReplyDeleteआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (23/12/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.uchcharan.com
खुबसूरत से एहसासों का खूबसूरती से प्रस्तुतिकरण....
ReplyDeleteइन्हें छपवाओ तो कृपया सूचित जरुर करना.....
कुंवर जी,
रेत पर अच्छे मनोभाव उकेरे हैं … शुभकामनाएं ।
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत लेखन है आपका. पढ़कर अच्छा लगा.
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत ....यह जान पहचान भी बहुत भली लगती है ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर, बेहतरीन रचना !
ReplyDeleteजाने किस ओर निकले कल रुखसती के बाद दीवाने
ReplyDeleteतेरी कैफियत का जिक्र कल शाम हुआ था मयखाने में
in between how come you do..that meaning of words display on your blog?
इस कविता ने इतनी गहराई में उतार दिया कि शब्द और भाव मेरे परिवेश का ही बयान करने लगे। एक कविता को इससे ज्यादा और क्या चाहिए।
ReplyDeleteवाह...वाह...वाह...क्या कहने..
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर शब्द रचना ....।
ReplyDeleteधूल से आच्छादित किताब सा कोई रिश्ता...
ReplyDeleteखूबसूरत विम्ब!
सुन्दर रचना!
हाँ ... इस नज़्म का पहला मिसरा ... खयालात की लंबी उड़ान है.. वो साहिल की रेत में दबी किताब सा मिला ... हट्स ऑफ इस बात के लिए ... यह मिसरा ही अपने आप में एक पूरी कविता है .. बाकी बातें उसी पहले मिसरे को पर्त दर पर्त एक्सप्लेन करने जैसा है ..हाँ नज़्म के अंत नें फिर से बांह पकड़ के बैठा लिया.. और कहा ..फिर पढ़ो ... :)
ReplyDelete'वर्क’ पढकर लगा कि जैसे गुलज़ार साहेब उसे कह रहे हो..
ReplyDeleteस्वप्निल सही कहता है कि आखिरी पैरा कहता है कि पिक्चर तो अभी बाकी है..
gehan abhivyakti.
ReplyDeleteनायाब
ReplyDelete@ all... आप सभी का तह-ए-दिल से शुक्रिया इस हौसला अफज़ाई का :)
ReplyDelete@ dr. anurag... its a very simple HTML trick... will mail you the details...
ekdam dil se nikli hui lajabab pangtiyan.bahot sunder.
ReplyDeleteऋचा जी सुंदर एहसाह है............बहुत ही अच्छी कविता.
ReplyDeleteफर्स्ट टेक ऑफ ओवर सुनामी : एक सच्चे हीरो की कहानी
रमिया काकी
अहसासों से परिपूर्ण बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteजिसकी ना इब्तिदा , ना अंजाम ...
ReplyDeleteपढना उसे बहुत भाया ...
जबकि ठीक से पढ़ा भी नहीं जा सका ...
बेहतरीन !
भाई वाह, कमेंट डिजेबल कर के कुछ लोग समझते हैं वो हमारा मु बंद करा देंगे. अरे यहाँ नहीं तो फेसबुक पे बोलेंगे. मेल पर बोलेंगे. एस एम् एस पर केह देंगे. कुछ नहीं तो उनके दिल में बोलेंगे. अपना लब खोलेंगे.
ReplyDeleteचुप थोड़े ना रहेंगे... हाँ तो कहना ये के "वाह".