2010 की आख़िरी शाम बैठ के बीते साल पे नज़र दौडाती हूँ... सोचती हूँ... कितना कुछ बीता, कितना कुछ बदला इस बीते साल में... हमारे आस पास... हमारे साथ... हमारे अपनों के साथ... कुछ नये दोस्त मिले, कुछ बिछड़े... कुछ नाम के रिश्ते टूटे... कुछ बेनाम रिश्ते जिये... बहुत कुछ बदला... वक़्त बदला... हालात बदले... ख़ुशी और प्यार का पैमाना भी... हाँ, कुछ हादसों और कुछ हौसलों के बीच कुछ नहीं बदला तो वो है "उम्मीद"... उम्मीद, की वो इंतज़ार है जिसका वो सहर कभी तो आएगी... वो सहर जब धुएँ और धूल से दूषित इस वातावरण में भी सूरज की किरणें हम तक अपनी रश्मियों की मुलायमियत पहुँचायेंगी... जब लोग यू.वी. और अल्ट्रा रेड किरणों के डर के बिना धूप सेक सकेंगे, एक बार फिर... वो सहर जब सपने नींद से निकल कर साकार होंगे... वो सहर जब हम रिश्तों और भावनाओं की तिजारत बन्द कर देंगे... प्यार करने से पहले उसके साइड इफेक्ट्स के बारे में सोचना बन्द कर देंगे... वो सहर जब दिमाग़, दिल का रास्ता काटना छोड़ देगा... हर फैसले से पहले...
इस साल की शुरुआत कुछ रेल हादसों के साथ हुई... कुछ भारतीय छात्रों पर हमले हुए ऑस्ट्रेलिया में... आतंकवादियों ने इस बार पुणे की धरती को रंगा, चंद मासूमों के खून से... प्रतापगढ़ के मंदिर में भगदड़ मची... बहुत सी जाने गयीं... सोचती हूँ बच्चों के मन में जाने कौन सा पाप होगा जो वो इस हादसे का शिकार हुए... अजमल कसाब क्यूँ अभी तक ज़िन्दा है... ज़रूर उसने कोई पुण्य किया होगा किसी जन्म में... "धनुष" और "पृथ्वी" का परीक्षण सफ़ल हुआ... रूस के साथ न्यूक्लियर रिएक्टर डील साइन हुई... ढाबे पे काम करते बच्चों को देखती हूँ तो सोचती हूँ इसी साल तो सरकार ने नि:शुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा अधिनियम लागू करते हुए शिक्षा को बच्चों का मौलिक अधिकार बनाया था...
सोचती हूँ ये नक्सलवादी... ये माओवादी क्या इन्सान नहीं होते... उनके ख़ून का रंग कैसा होता है... दिल तो उनके सीने में भी धड़कता होगा ना... पर किसके लिये... एयर इंडिया का विमान हवाई पट्टी पे फ़िसल गया... गोया विमान ना हुआ मयक़दे से निकलता हुआ शराबी हो गया जो गली में फ़िसल गया... इन्द्रदेव इस साल कुछ ज़्यादा ही प्रसन्न रहे मुम्बई वासियों पर... दिल्ली सुना था बह जायेगी इस बार बाढ़ में, पर बच गई... अब सुना है वहाँ बर्फ़ पड़ने के आसार हैं... ये मौसम वैज्ञानिक ये क्यूँ नहीं पता लगाते इन आतंकवादियों के दिल कब पिघलेंगे... उसमें कब जज़्बातों का सैलाब आएगा...
कॉमन वेल्थ खेलों के चलते दिल्ली दुल्हन सी सजाई गई... प्री ब्राइडल पैकेज में कुछ गड़बड़ियाँ हुईं थीं पर समय रहते सब संभाल लिया गया... उदघाटन समारोह की भव्यता देखते ही बनती थी... नाज़ हुआ एक बार फिर ख़ुद के भारतीय होने पर... फिर एक तरफ़ बरखा दत्त और दूसरी तरफ़ विनायक सेन भी याद हो आते हैं... शशि थरूर जी की माने तो हम कैटल क्लास लोगों को तो जीने का ही हक़ नहीं... जो पाँच सितारा होटल के सामने से गुज़रते हुए सोचते हैं... यहाँ आयेंगे ज़रूर एक दिन... बस सोचते हैं... हम्म...
सोचना कितना बड़ा काम है अपने आप में... है ना ? आज मौसम बहुत सर्द है... महावट अपने साथ कुछ ठिठुरती हुई भीगी सी यादें भी ले आया... हाँ, मौसम से याद आया इस साल मौसम में होने वाले बदलावों पर काफ़ी बैठके हुईं, बातें हुईं, सेमिनार्स हुए... सुनने में आया की 2012 में धरती का अस्तित्व ख़त्म होने वाला है... तो सोचा अभी 2 साल हैं... जी लो जी भर के... जो कुछ नहीं कर पाये सब कर लो... क्या जाने फिर कभी किसी ग्रह पर जीवन संभव हो कि ना हो... पर ये एक साल तो ऐसे ही बीत गया.. यूँ ही... बिना कुछ किये... ख़ैर... उम्मीद अभी भी नहीं टूटी... एक साल अभी भी बाक़ी है... पूरे 365 दिन...