Saturday, October 9, 2010

दिल का परिंदा...



मैं हूँ ग़ुबार या तूफ़ान हूँ, कोई बताये मैं कहाँ हूँ... जाने क्यूँ आज जी कर रहा है "गाइड" की रोज़ी जैसे झूम उठूँ इस गीत की धुन पे...


21 comments:

  1. क्या बात!! बड़ा चहक रहा है है ये परिंदा आज...;-)

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  2. सुंदर प्रस्तुति....

    नवरात्रि की आप को बहुत बहुत शुभकामनाएँ ।जय माता दी ।

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  3. बहुत दिनों बाद इतनी बढ़िया कविता पड़ने को मिली.... गजब का लिखा है

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  4. सार्थक और बेहद खूबसूरत,प्रभावी,उम्दा रचना है..शुभकामनाएं।

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  5. बस मन के परिंदे को उन्मुक्त कर ही दो ..अच्छी रचना .

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  6. मेक्सिकन घोड़े जैसी .....बेलगाम ख्वाहिशे

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  7. दिल का ये परिंदा
    आज उड़ने को बेताब है।
    सुंदर भावों वाली सुंदर कविता।

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  8. बेहद खूबसूरत …………।जरूर करिये आज़ाद्।

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  9. main bhi ...........

    per baat kya hai
    raaz kya hai
    .....
    waise jo ho,
    khoob ji lo
    bhar lo unchi udaan
    meri shubhkamnayen saath hain

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  10. सुन्दर कवितायें बार-बार पढने पर मजबूर कर देती हैं.
    आपकी कवितायें उन्ही सुन्दर कविताओं में हैं.

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  11. आज ना रोको दिल की उड़ान को, दिल ये चला ....आहा हा हा हा :-)

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  12. उड़ने की बेताबी बाँध कर न रखिये, बहकने दीजिये।

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  13. This comment has been removed by the author.

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  14. मेरे ब्लॉग पर हर शनिवार की शाम ऐसी रचनायें प्रकाशित की जायेंगी, जो हैं तो आपकी लेकिन शायद आपने बहुत दिनों से नहीं पढ़ीं.... आप इसे दोबारा यहाँ पढ़ सकते हैं .
    ## किसी की अनुमति के बिना उनकी रचना यहाँ प्रकाशित नहीं होगी..... इसलिए अपनी हामी जरूर भरें....

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  15. one of your post is shortlisted 4 my weekly column, sunhari yadein, if u r agreed to publish it on my blog, plz confirm.... then it will be further taken into consideration....

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  16. बहुत खूबसूरत अन्दाज और भाव
    उड़ान की सार्थक चाहत ..

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दिल की गिरह खोल दो... चुप ना बैठो...

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