पिछले क़रीब डेढ़ साल से ब्लॉग जगत में सक्रिय हूँ... इस दौरान बहुत से लोगों को पढ़ा... बहुत सी उभरती हुई प्रतिभाओं से भी रु-बा-रु हुए... इन सब के बीच कुछ नामी गिरामी शायरों को डेडिकेटेड ब्लॉग्स भी दिखे... बहुत अच्छा लगा अपने प्रिय शायर या शायरा के लिये लोगों का ये प्यार देख कर...
फिर चाहे वो गुलज़ार साब को समर्पित पवन झा जी का ख़ुशबू.ए.गुलज़ार हो या रंजू भाटिया जी और अन्य ब्लॉगर साथियों द्वारा संचालित सामूहिक ब्लॉग गुलज़ार नामा हो जो पिछले एक साल से जाने क्यूँ सुस्त पड़ा है
यदि आप अमृता प्रीतम जी के प्रशंसक हैं तो रंजू भाटिया जी का अमृता प्रीतम की याद में..... ज़रूर पढ़ा होगा आपने
और यदि ग़ालिब के फैन हैं तो अनिल कान्त जी का मिर्ज़ा ग़ालिब भी किसी से कम नहीं जो ग़ालिब की रूह को आज के युग में भी ज़िन्दा रखे हुए है...
ऐसे ही साहिर लुधियानवी साहब को डेडिकेटेड एक बहुत ही अच्छा ब्लॉग है साहिर की क़लम से जिसे sahir.fanatic नाम से उनके कोई फैन चलाते हैं
पर इन तमाम लोगों के बीच फैज़ को समर्पित किसी भी ब्लॉग की कमी बड़ी खली या शायद हमारी ही नज़र नहीं पड़ी कभी... तो सोचा चलो ये नेक काम हम ही कर देते हैं...
फैज़ के बारे में फिलहाल इतना ही कहना चाहूँगी की आधुनिक काल का शायद ही कोई ऐसा शायर होगा जिसने रूमानियत और इन्क़ेलाब से ओतप्रोत विचारों को इस ख़ूबसूरती के साथ अपने शब्दों में घोला है की वो सीधे आपकी रूह को झकझोरते हैं...
सियासी और सामाजिक मुद्दों पर फैज़ के लिखे बेबाक अशआर किस कदर का असर छोड़ते थे लोगों पर इस बात का अंदाज़ा आप गुलज़ार साब की फैज़ के लिये लिखी इस नज़्म से ही लगा सकते हैं -
चाँद लाहोर की गलियों से गुज़र के इक शब
जेल की ऊँची फसीलें चढ़ के,
यूँ 'कमांडो' की तरह कूद गया था 'सेल' मे,
...कोई आहट ना हुई,
पहरेदारों को पता ही ना चला !
"फ़ैज़" से मिलने गया था, ये सुना है,
"फ़ैज़" से कहने, कोई नज़्म कहो,
वक़्त की नब्ज़ रुकी है !
कुछ कहो, वक़्त की नब्ज़ चले !!
-- गुलज़ार
यूँ तो अपने इस ब्लॉग में भी पहले फैज़ साहब की कुछ रचनायें आप सब के साथ शेयर करी हैं... पर इस बार थोड़ा तफ़सील से फैज़ को आप तक पहुँचाने के लिये ये नया ब्लॉग बनाया है -
फैज़ के बारे में फिलहाल इतना ही कहना चाहूँगी की आधुनिक काल का शायद ही कोई ऐसा शायर होगा जिसने रूमानियत और इन्क़ेलाब से ओतप्रोत विचारों को इस ख़ूबसूरती के साथ अपने शब्दों में घोला है की वो सीधे आपकी रूह को झकझोरते हैं...
सियासी और सामाजिक मुद्दों पर फैज़ के लिखे बेबाक अशआर किस कदर का असर छोड़ते थे लोगों पर इस बात का अंदाज़ा आप गुलज़ार साब की फैज़ के लिये लिखी इस नज़्म से ही लगा सकते हैं -
चाँद लाहोर की गलियों से गुज़र के इक शब
जेल की ऊँची फसीलें चढ़ के,
यूँ 'कमांडो' की तरह कूद गया था 'सेल' मे,
...कोई आहट ना हुई,
पहरेदारों को पता ही ना चला !
"फ़ैज़" से मिलने गया था, ये सुना है,
"फ़ैज़" से कहने, कोई नज़्म कहो,
वक़्त की नब्ज़ रुकी है !
कुछ कहो, वक़्त की नब्ज़ चले !!
-- गुलज़ार
यूँ तो अपने इस ब्लॉग में भी पहले फैज़ साहब की कुछ रचनायें आप सब के साथ शेयर करी हैं... पर इस बार थोड़ा तफ़सील से फैज़ को आप तक पहुँचाने के लिये ये नया ब्लॉग बनाया है -
भीगी है रात "फैज़" ग़ज़ल इब्तिदा करो...
बस एक छोटी सी कोशिश है फैज़ कि लेखनी को आप के साथ बांटने की... उम्मीद है पसंद आएगी और आपका प्यार और प्रोत्साहन बदस्तूर जारी रहेगा...
इरशाद ....आप इब्तिदा करिए....हमारी आशिकी की कोई इन्तहा नहीं :-)
ReplyDeleteIs mahaan shaksiyat se rubru karane ke aapke is mahaan kaam ke liye badhaai..
ReplyDeleteblog ko humari aur se dheron shubhkamnayen
Happy Blogging
एक महान काम का बीड़ा उठाने के लिए आपको बधाई।
ReplyDeletehttp://sudhirraghav.blogspot.com/
हमने अपना लोक बसाया,
चारों ओर है अपनी माया।
माया का विस्तार है इतना,
स्वर्गलोक का सार न जितना।
बहुत बहुत बधाई ...इंतज़ार है
ReplyDeleteप्रिया ने वजह फ़रमाया...
ReplyDeleteकुछ नज्में हमारे पास भी हैं जो साऊथ कैम्पस में पढ़ी गयी थी और गोली की मानिद दिल में फंसी है... कभी बाटेंगे
@ प्रिया, आशीष जी, सुधीर जी, सागर ... आप सब की शुभकामनाओं और हौसला अफज़ाई का शुक्रिया... बस ऐसे ही साथ बनाए रखिये... हम आगे बढ़ते रहेंगे... :)
ReplyDelete@ संगीता जी... शुक्रिया संगीता जी... इंतज़ार ख़त्म किया... पहली पोस्ट पब्लिश हो चुकी है... उम्मीद है ये छोटी सी कोशिश पसंद आएगी...
ये रहा लिंक -
"शेर लिखना जुर्म ना सही, लेकिन बेवजह शेर लिखते रहना ऐसी दानिशमंदी भी नहीं...." - फैज़
ye sab meel ka patthar hain....hum tak unka aana yun kahen aapke dwaraa pahunchana sarahniye hai
ReplyDeleteप्रिया ने ठीक फ़रमाया है है .आप आगाज करिए ....वैसे साहिर पर पूरी डोकूमेंटरी यू ट्यूब पर है ..
ReplyDeleteकुछ कहो, वक़्त की नब्ज़ चले !!
ReplyDeleteउम्दा काम. नए ब्लॉग का कलेवर भी अच्छा है.
शुभकामनाये
बड़ा नेक काम कर रही हैं आप....पढने वालों के लिए
ReplyDeleteवक्त की नब्ज़ चले। वाह।
ReplyDeleteये बढिया रही!
ReplyDeleteअब उधर होकर आयें जहाँ फ़ैज़ साहेब हैं उनसे कहना भी है कि ’कोई नज़्म कहो’
फैज़ साहब के बारे में पढ़ कर
ReplyDeleteबहुत सुकून हासिल हुआ ....
आपकी ये कोशिश यक़ीनन बहुत सराही जाएगी
बड़ा है दर्द का रिश्ता, ये दिल ग़रीब सही
तुम्हारे नाम से आएँगे ग़मगुसार चले
अभिवादन स्वीकारें