वक़्त की नाव में बैठ कर
आओ चलें कुछ दूर
समय से परे
वहाँ,
जहाँ सूरज सदा चमकता है
फिर भी तपता नहीं
सिर्फ़ बिखेरता है
झिलमिल सी रश्मियाँ
जो ठंडक पहुंचाती हैं मन को...
वहाँ,
जहाँ कोई शोर गुल नहीं है
सिर्फ़ भीनी सी सरगोशियाँ हैं
हवाओं के कंगन की
पानियों की झांझर की
और मीलों फैले सुकून की...
वहाँ,
जहाँ समय थम जाता है
"तुम" और "मैं" का भ्रम मिट जाता है
बस वो एक लम्हा
जिसमे सिर्फ़ "हम" हों
एकाकार...
और फिर वक़्त की शाख़ से
तोड़ के उस लम्हें को
क़ैद कर के मुट्ठी में
नक्श कर के ज़हन में
समय के दायरे में
लौट आयेंगे...
-- ऋचा
Nice thoughts with nice expression... In my opinion the link provided in "तुम" और "मैं" is showing that this concept is again a journey only with oneself... am I right?
ReplyDeleteHappy Blogging
बहुत सुंदर भाव युक्त कविता
ReplyDeleteऐसी कवितायें रोज रोज पढने को नहीं मिलती...इतनी भावपूर्ण कवितायें लिखने के लिए आप को बधाई...शब्द शब्द दिल में उतर गयी.
ReplyDeleteआपने कहने के लिए कुछ नहीं छोड़ा है
ReplyDeleteबस एक शब्द
लाजवाब !!
यात्रा अच्छी लगी :)
आभार
....और हाँ आपका ब्लॉग बेहद सुन्दर है
ReplyDelete[शायद मैं पहली बार आया हूँ यहाँ पर ]
chaliye main bhi chalti hun
ReplyDeleteबहुत कोमल से एहसास लिए हुए सुन्दर रचना .
ReplyDeleteलिंक मतलब कविता में कविता ! बढ़िया है दोनों
ReplyDeleteएक मासूम सी लड़की जो ख़्वाब बुनती थी ....
ReplyDeleteचर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना 22 - 9 - 2010 मंगलवार को ली गयी है ...
ReplyDeleteकृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया
http://charchamanch.blogspot.com/
सुन्दर कविता
ReplyDeleteसुंदर भाव अभिव्यक्ति .... बहुत अच्छी रचना ....
ReplyDeleteसमय के परे जाने के बाद संभवतः समय में वापस लौटने का मन न करे। वहीं बनी रहें, अनन्त तक। सुन्दर कविता।
ReplyDeleteबहुत अच्छी लगी यह रचना....
ReplyDeleteदोनों कविताएँ बहुत सुन्दर हैं :)
ReplyDeleteकल गल्ती से तारीख गलत दे दी गयी ..कृपया क्षमा करें ...साप्ताहिक काव्य मंच पर आज आपकी रचना है
ReplyDeletehttp://charchamanch.blogspot.com/2010/09/17-284.html
समय से परे जाकर फिर उसी समय में लौट आना ..
ReplyDeleteमगर अब सब नया होगा ...
वाह !
@ आशीष जी... yes ashish ji you are right... its again a journey with oneself only... to go beyond time and just for that one moment find your true self... what we really are...
ReplyDelete@ all... thanks a lot for appreciation !!!
"तुम" और "मैं" का भ्रम मिट जाता है
ReplyDeleteबस वो एक लम्हा
जिसमे सिर्फ़ "हम" हों
एकाकार...
खूबसूरत एहसास और भाव्