कल हमने अपना ६१वाँ गणतंत्र दिवस मनाया... स्कूल-कॉलेज, सरकारी दफ्तरों और कुछ प्राइवेट कार्यालयों में भी तिरंगा फ़हराया गया... नेताओं ने बड़े बड़े भाषण दिये... अमन, शांति और सौहार्द बनाए रखने की नसीहत दी गयी... बीते सालों की कुछ उपलब्धियों को गिनाया गया... कुछ देशभक्ति के गाने बजाये गए... कुछ SMSs भेजे गए... मिठाई बटी और बस हो गया समारोह पूरा या यूँ कहिये शान्ति से, बिना किसी अड़चन और परेशानी के एक काम निपट गया और बाकी का दिन आराम करते हुए एक आम छुट्टी की तरह बिता दिया गया... अब फिर अगले १५ अगस्त या २ अक्टूबर को ये देशभक्ति जागेगी... एक बार फिर पुराने SMSs ढूंढ़ के भेजे जायेंगे... एक बार फिर पुराने देशभक्ति के गानों के कैसेट झाड़-पोछ के निकाले जायेंगे और एक बार फिर सारा दिन हर तरफ से एक ही आवाज़ सुनाई देगी "हम बुलबुलें हैं इसकी ये गुल्सितां हमारा...सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा"
कभी सोचा आख़िर क्यूँ हमारी ये देशभक्ति इन चंद ख़ास मौकों पर ही जागती है... क्या हो अगर सीमा पे खड़े उन तमाम सिपाहियों की देशभक्ति भी इन चंद ख़ास मौकों पर ही जागे... वो जो दिन-रात, एक से बढ़कर एक जटिल और विषम परिस्थितियों में भी वहाँ सजग होकर सीमा की रखवाली करते हैं, सिर्फ़ इसलिए की उनका देश और देशवासी तमाम बाहरी दुश्मनों से महफूज़ रहें...
खैर! हम भी कहाँ बेकार की बातों में उलझ गए... ये तो उनका काम है... और वो अपना काम पूरी इमानदारी से करते हैं... पर हम क्या करते हैं... तमाम बाहरी दुश्मनों से तो वो हमें बचा लेंगे पर हमारे देश के असली दुश्मन... "हम"... हमसे कैसे बचायेंगे इसे... सोच में पड़ गए ना ? अभी कल ही तो तिरंगा फ़हराया था... कल ही तो मोबाइल का कालर ट्यून बदल के फ़िल्मी गाने की जगह देशभक्ति का गीत लगाया था "ऐ वतन ऐ वतन हमको तेरी कसम तेरी राहों में जाँ तक लुटा जायेंगे"... हम भला अपने देश के दुश्मन कैसे हो सकते हैं...
तो सुनिए... पढ़ाई करेंगे यहाँ हिन्दुस्तान में इस उम्मीद के साथ की किसी "MNC" में नौकरी लग जाये और विदेश में जा के सेटेल हो जाएँ तो बस लाइफ बन जाये... चार लोगों के बीच में खड़े होंगे तो अंग्रेजी में ही बात करेंगे भले बोलनी आये या ना आये... क्यूँ... क्यूँकि हिंदी, अपनी मातृभाषा, बोलने में तो शर्म आती है... कहीं किसी ने हिंदी में बात करते सुन लिया तो क्या कहेगा.... और कोई हिंदी में बात कर रहा हो तो ऐसे देखेंगे जैसे बहुत ही "low standard" इंसान हो... जिसे हक़ ही नहीं आज के ही समाज में रहने का... अच्छा ज़रा याद कर के बताइये आपमें से " क ख ग" कितने लोगों को पूरा याद है ? और "A B C" ? अब तो भरोसा हुआ हमारी बात का :-)
और बतायें... अच्छा चलिए आप ही बताइये कितना जानते हैं अपने देश के बारे में ? बोर्रा गुफाओं का नाम सुना है कभी आपने ? नहीं ? अच्छा सिरोही जिले के बारे में तो ज़रूर जानते होंगे ? वो भी नहीं ? ह्म्म्म... अच्छा चलिए ये ही बता दीजिये पूरब का स्विज़रलैंड किसे कहते हैं... ये भी नहीं पता ? अजी ये अमेरिका, यूरोप, ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर के बारे में जानने के लिये तो बहुत बार गूगल सर्च करी होगी कभी अपने देश के बारे में भी जानिये... बहुत कुछ है यहाँ भी जानने और समझने के लिये...
हम कब ये बात समझेंगे देशभक्ति ये चंद ख़ास दिनों पर बजाये जाने वाले फ़िल्मी गानों से नहीं आती... वो हमारी सोच से आती है, हमारे कर्मों में झलकती है... अपने देश के प्रति हमारे नज़रिए से प्रतिबिंबित होती है... देशभक्ति ज़िन्दगी भर का समर्पण होता है... एक जज़्बा होता है... ज़िन्दगी जीने का तरीका होता है...
क्यूँ "Green Card Holder" बनने की ख़्वाहिश हर समय हमारे दिल में रहती है... क्यूँ "NRI" कहलाने में हमें गर्व महसूस होता है... भले ही अनपढ़ हो, भले ही ख़ूबसूरत ना हो पर "माँ" माँ होती है, उसे हम किसी ख़ूबसूरत, पढ़ी लिखी महिला से बदल नहीं लेते... और ना ही लज्जित होते हैं उसे "माँ" कहने में... फिर क्यूँ हमें अपने हिन्दुस्तानी होने पर गर्व नहीं होता...
अब और क्या कहूँ हमें अपने हिन्दुस्तानी होने पर गर्व है... हिंदी भाषी होने पर गर्व है... जय हिंद... जय हिंद की सेना !!
जाते जाते आपको दुष्यंत कुमार जी की चंद पंक्तियों के साथ छोड़े जा रही हूँ...
मेरी प्रगति या अगति का
यह मापदण्ड बदलो तुम,
जुए के पत्ते सा
मैं अभी अनिश्चित हूँ ।
मुझ पर हर ओर से चोटें पड़ रही हैं,
कोपलें उग रही हैं,
पत्तियाँ झड़ रही हैं,
मैं नया बनने के लिए खराद पर चढ़ रहा हूँ,
लड़ता हुआ
नयी राह गढ़ता हुआ आगे बढ़ रहा हूँ ।
अगर इस लड़ाई में मेरी साँसें उखड़ गईं,
मेरे बाज़ू टूट गए,
मेरे चरणों में आंधियों के समूह ठहर गए,
मेरे अधरों पर तरंगाकुल संगीत जम गया,
या मेरे माथे पर शर्म की लकीरें खिंच गईं,
तो मुझे पराजित मत मानना,
समझना –
तब और भी बड़े पैमाने पर
मेरे हृदय में असन्तोष उबल रहा होगा,
मेरी उम्मीदों के सैनिकों की पराजित पंक्तियाँ
एक बार और
शक्ति आज़माने को
धूल में खो जाने या कुछ हो जाने को
मचल रही होंगी ।
एक और अवसर की प्रतीक्षा में
मन की क़न्दीलें जल रही होंगी ।
ये जो फफोले तलुओं मे दीख रहे हैं
ये मुझको उकसाते हैं ।
पिण्डलियों की उभरी हुई नसें
मुझ पर व्यंग्य करती हैं ।
मुँह पर पड़ी हुई यौवन की झुर्रियाँ
क़सम देती हैं ।
कुछ हो अब, तय है –
मुझको आशंकाओं पर क़ाबू पाना है,
पत्थरों के सीने में
प्रतिध्वनि जगाते हुए
परिचित उन राहों में एक बार
विजय-गीत गाते हुए जाना है –
जिनमें मैं हार चुका हूँ ।
मेरी प्रगति या अगति का
यह मापदण्ड बदलो तुम
मैं अभी अनिश्चित हूँ ।
-- दुष्यंत कुमार
कभी सोचा आख़िर क्यूँ हमारी ये देशभक्ति इन चंद ख़ास मौकों पर ही जागती है... क्या हो अगर सीमा पे खड़े उन तमाम सिपाहियों की देशभक्ति भी इन चंद ख़ास मौकों पर ही जागे... वो जो दिन-रात, एक से बढ़कर एक जटिल और विषम परिस्थितियों में भी वहाँ सजग होकर सीमा की रखवाली करते हैं, सिर्फ़ इसलिए की उनका देश और देशवासी तमाम बाहरी दुश्मनों से महफूज़ रहें...
खैर! हम भी कहाँ बेकार की बातों में उलझ गए... ये तो उनका काम है... और वो अपना काम पूरी इमानदारी से करते हैं... पर हम क्या करते हैं... तमाम बाहरी दुश्मनों से तो वो हमें बचा लेंगे पर हमारे देश के असली दुश्मन... "हम"... हमसे कैसे बचायेंगे इसे... सोच में पड़ गए ना ? अभी कल ही तो तिरंगा फ़हराया था... कल ही तो मोबाइल का कालर ट्यून बदल के फ़िल्मी गाने की जगह देशभक्ति का गीत लगाया था "ऐ वतन ऐ वतन हमको तेरी कसम तेरी राहों में जाँ तक लुटा जायेंगे"... हम भला अपने देश के दुश्मन कैसे हो सकते हैं...
तो सुनिए... पढ़ाई करेंगे यहाँ हिन्दुस्तान में इस उम्मीद के साथ की किसी "MNC" में नौकरी लग जाये और विदेश में जा के सेटेल हो जाएँ तो बस लाइफ बन जाये... चार लोगों के बीच में खड़े होंगे तो अंग्रेजी में ही बात करेंगे भले बोलनी आये या ना आये... क्यूँ... क्यूँकि हिंदी, अपनी मातृभाषा, बोलने में तो शर्म आती है... कहीं किसी ने हिंदी में बात करते सुन लिया तो क्या कहेगा.... और कोई हिंदी में बात कर रहा हो तो ऐसे देखेंगे जैसे बहुत ही "low standard" इंसान हो... जिसे हक़ ही नहीं आज के ही समाज में रहने का... अच्छा ज़रा याद कर के बताइये आपमें से " क ख ग" कितने लोगों को पूरा याद है ? और "A B C" ? अब तो भरोसा हुआ हमारी बात का :-)
और बतायें... अच्छा चलिए आप ही बताइये कितना जानते हैं अपने देश के बारे में ? बोर्रा गुफाओं का नाम सुना है कभी आपने ? नहीं ? अच्छा सिरोही जिले के बारे में तो ज़रूर जानते होंगे ? वो भी नहीं ? ह्म्म्म... अच्छा चलिए ये ही बता दीजिये पूरब का स्विज़रलैंड किसे कहते हैं... ये भी नहीं पता ? अजी ये अमेरिका, यूरोप, ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर के बारे में जानने के लिये तो बहुत बार गूगल सर्च करी होगी कभी अपने देश के बारे में भी जानिये... बहुत कुछ है यहाँ भी जानने और समझने के लिये...
हम कब ये बात समझेंगे देशभक्ति ये चंद ख़ास दिनों पर बजाये जाने वाले फ़िल्मी गानों से नहीं आती... वो हमारी सोच से आती है, हमारे कर्मों में झलकती है... अपने देश के प्रति हमारे नज़रिए से प्रतिबिंबित होती है... देशभक्ति ज़िन्दगी भर का समर्पण होता है... एक जज़्बा होता है... ज़िन्दगी जीने का तरीका होता है...
क्यूँ "Green Card Holder" बनने की ख़्वाहिश हर समय हमारे दिल में रहती है... क्यूँ "NRI" कहलाने में हमें गर्व महसूस होता है... भले ही अनपढ़ हो, भले ही ख़ूबसूरत ना हो पर "माँ" माँ होती है, उसे हम किसी ख़ूबसूरत, पढ़ी लिखी महिला से बदल नहीं लेते... और ना ही लज्जित होते हैं उसे "माँ" कहने में... फिर क्यूँ हमें अपने हिन्दुस्तानी होने पर गर्व नहीं होता...
अब और क्या कहूँ हमें अपने हिन्दुस्तानी होने पर गर्व है... हिंदी भाषी होने पर गर्व है... जय हिंद... जय हिंद की सेना !!
जाते जाते आपको दुष्यंत कुमार जी की चंद पंक्तियों के साथ छोड़े जा रही हूँ...
मेरी प्रगति या अगति का
यह मापदण्ड बदलो तुम,
जुए के पत्ते सा
मैं अभी अनिश्चित हूँ ।
मुझ पर हर ओर से चोटें पड़ रही हैं,
कोपलें उग रही हैं,
पत्तियाँ झड़ रही हैं,
मैं नया बनने के लिए खराद पर चढ़ रहा हूँ,
लड़ता हुआ
नयी राह गढ़ता हुआ आगे बढ़ रहा हूँ ।
अगर इस लड़ाई में मेरी साँसें उखड़ गईं,
मेरे बाज़ू टूट गए,
मेरे चरणों में आंधियों के समूह ठहर गए,
मेरे अधरों पर तरंगाकुल संगीत जम गया,
या मेरे माथे पर शर्म की लकीरें खिंच गईं,
तो मुझे पराजित मत मानना,
समझना –
तब और भी बड़े पैमाने पर
मेरे हृदय में असन्तोष उबल रहा होगा,
मेरी उम्मीदों के सैनिकों की पराजित पंक्तियाँ
एक बार और
शक्ति आज़माने को
धूल में खो जाने या कुछ हो जाने को
मचल रही होंगी ।
एक और अवसर की प्रतीक्षा में
मन की क़न्दीलें जल रही होंगी ।
ये जो फफोले तलुओं मे दीख रहे हैं
ये मुझको उकसाते हैं ।
पिण्डलियों की उभरी हुई नसें
मुझ पर व्यंग्य करती हैं ।
मुँह पर पड़ी हुई यौवन की झुर्रियाँ
क़सम देती हैं ।
कुछ हो अब, तय है –
मुझको आशंकाओं पर क़ाबू पाना है,
पत्थरों के सीने में
प्रतिध्वनि जगाते हुए
परिचित उन राहों में एक बार
विजय-गीत गाते हुए जाना है –
जिनमें मैं हार चुका हूँ ।
मेरी प्रगति या अगति का
यह मापदण्ड बदलो तुम
मैं अभी अनिश्चित हूँ ।
-- दुष्यंत कुमार
बहुत खूब.. आपने बिल्कुल सही कहा कि देशभक्ति केवल राष्ट्रीय दिवसों के दिन ही नहीं बल्कि हर दिन और हर पल महसूस की जानी चाहिए..
ReplyDeleteआपकी भावनाओं को दुष्यंत कुमार जी की पंक्तियों ने और मज़बूती दी। इस बेहतरीन रचना को पाठकों तक पहुंचाने का शुक्रिया..
जय गणतंत्र.. हैपी ब्लॉगिंग
kisi laybadh geet kee tarah samjhaya hai sachchi desh bhakti kise kahte hain.....
ReplyDeleteमैं तो एम.एन.सी. मैं नौकरी कर विदेश में बसने या वहाँ का एक चक्कर लगा लेने भर की लालसा रखने वालों को खूब समझा चुका हूँ...मगर उन्हें तो बात नागवार गुजरती है.
ReplyDeleteआपने एक अच्छा लेख लिखा है.
hoon....To fir ham garv se kahte hai ki ek sacche Hindustani hai....apni matrbhasaha par garv hai....koi sharm nahi ....arey yaar ham to sapna dekh rahe hai Hindi ko Internation bhasha bananey ka.....socho kya sama hoga jab poora Europe Hindi bolega.....but tone unka apna :-) Dukhi hai to ghar walon se....ye kaise sudhrenge...
ReplyDeletebahut achcha likha hai Richa aap ne.
ReplyDeleteबड़ा खतरनाक लेख है। सीधे ह्रदय को स्पर्श करता है। शुक्रिया।
ReplyDeleteYour post reminds me a couplet of Shakeel badayuni
ReplyDeleteमेरा अज्म इतना बुलंद है कि पराई शोलों का डर नहीं
मुझे खौफ़ आतिश-ए-गुल से है ये कहीं चमन को जला न दे
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
ReplyDeleteदेखना है ज़ोर कितना बाज़ुए कातिल में है
करता नहीं क्यूँ दूसरा कुछ बातचीत,देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफ़िल में है
जय हिंद...
vmwteam.blogspot.com
सारे जहाँ से अच्छा, हिन्दोस्तां हमारा ।
ReplyDeleteइस गीत को प्रसिद्ध शायर डा. अल्लामा मोहम्मद इकबाल ने 1905 में लिखा था.
इस गीत को भी डा. अल्लामा मोहम्मद इकबाल ने 1910 में मुस्लिमो को हिन्दुओ के खिलाफ एक करने के लिए लिखा था.
Chin vo Arab hamaraa hindostaaN hamaara
Muslim hain hum; watan hai saara jahaaN hamaara
tawheed ki amaanat seenoN meiN hai hamaarey
aasaaN naheeN miTaana naam o nishaaN hamaara
dunyaN ke but-kadoN meiN pahlaa woh ghar KHUDA kaa
hum uskey paasbaaN haiN woh paasbaaN hamaara
tayghon key saaye meiN hum, pal kar jawaaN huwey haiN
khanjar hilaal kaa hai qawmi nishaaN hamaara
maghrib ki waadiyoN meiN guunji azaaN hamaari
thamata na thaa kisee se sayl rawaaN hamaara
baatil se dabney waaley ay aasmaaN nahiN hum
sau baar kar chukaa hai tu imtihaaN hamaara
ay gulsitaan e andalus! woh din haiN yaad tujh ko
thaa teri DaaliyoN par jab aashiyaaN hamaara
ay mawjey dajlah! tu bhi pahchaanti hai hum ko
ab tak hai tera daryaa afsaana khwaaN hamaara
ay arz e paak! teri hurmat pey kaT marey hum
hai khooN teri ragoN meiN ab tak rawaaN hamaara
saalaar e kaarwaaN hai Mir e Hijaz apnaa
is naam se hai baaqi aaraam e jaaN hamaara
Iqbal kaa taraana baang e daraa hai goyaa
hotaa hai jaadah paymaa phir kaarwaaN hamaara