कल शाम यूँ ही रिमोट लिये हुए टी.वी. चैनल्स सर्फ़ कर रहे थे... अचानक नज़र पड़ी किसी चैनल पर "दिल से" आ रही थी... शाहरुख़ खान की उन चंद पिक्चरों में से एक जो हमें बहुत पसंद है... पता नहीं क्यूँ... इस पिक्चर में एक सीन है जहाँ शाहरुख़ मनीषा से शादी के लिये पूछता है और वो मना कर देती है, उसका जवाब होता है की वो शादी नहीं कर सकती क्यूँकि उसके पास "समय नहीं है..."
जब पहली बार देखा था तो ये डायलॉग सुन के हँसी आई थी... पर कल सुना तो सोच में पड़ गए... "समय"... आज के आधुनिक मशीनी युग और मसरूफ़ ज़िन्दगी के परिपेक्ष में शायद सबसे दुर्लभ संसाधन... पेट्रोल, पेड़ और पानी से भी ज़्यादा तेज़ी से विलुप्त होता हुआ... आज इंसान के पास सब कुछ है बस "समय" नहीं है... सारे ऐश-ओ-आराम हैं बस उनका सुख उठाने का समय नहीं हैं... मम्मी पापा के पास बच्चों के लिये समय नहीं है, बच्चों के पास मम्मी पापा के लिये समय नहीं है... कभी दादा-दादी, नाना-नानी के लिये समय नहीं है... कभी खेलने के लिये तो कभी दोस्तों के लिये समय नहीं है...
इस व्यस्त ज़िन्दगी में आज दूसरों के लिये क्या इंसान के पास ख़ुद के लिये भी समय नहीं है... कभी सोचो तो हँसी आती है... ना तो आज हमारे पास खाने का समय है और ना सोने का... आज इंसान इतना व्यस्त है की ख़ुद के स्वास्थ पर ध्यान देने के लिये भी समय नहीं है... समय क्यूँ नहीं है... क्यूँकि काम का बोझ बहुत है... वो क्यूँ है... क्यूँकि बहुत से पैसे कमाने हैं... भविष्य के लिये बचत करनी है... निवेश करना है... "हेल्थ इंश्योरेंस" करवाना है... "मेडी क्लेम पौलिसी" लेनी है... अब भला बताइये आज स्वास्थ पे ध्यान नहीं देना है और कल के लिये इंश्योरेंस करवाना है... अब अगर आज ख़ुद के स्वास्थ के लिये थोड़ा सा समय निकाल लें... थोड़ा ख़ुद पे ध्यान दें... तो कल शायद ये "हेल्थ इंश्योरेंस" की ज़रुरत ही ना पड़े... पर ये सब सोचने के लिये भी शायद समय नहीं है... हम तो बस आँख बन्द कर के इस अंधी दौड़ में दौड़ते जा रहे हैं... पता नहीं किस लक्ष्य को हासिल करने के लिये...
क्या ऑफिस और क्या घर... जिधर भी देखो तो हर कोई हर समय तनाव में ही नज़र आता है... किस बात का इतना तनाव है आख़िर... क्या चिंता है... इतना तनाव ले कर, इतना व्यस्त रह कर आख़िर क्या साबित करना चाहते हैं हम ? और किसको ? ऐसा भी क्या है की हम ज़िन्दगी जीना ही भूल गए हैं... ख़ुश रहना भूल गए हैं... इससे बेहतर तो हम कल थे जब शायद जेब में चंद रूपये ही हुआ करते थे पर दिल में ख़ुशी थी... एक उत्साह था... ज़िन्दगी जीने की उमंग थी... तो फिर आज ऐसा क्यूँ है कि सब होते हुए भी हम ख़ुश नहीं हैं...
शायद इसकी वजह भी हम ख़ुद है... हमने ख़ुद ही अपने लिये इतने ऊँचे मानक बना लिये हैं... इतने बड़े मानदण्ड की बस उनको हासिल करने की जद्दोजहद में ज़िन्दगी कब हमारी मुट्ठी से रेत की तरह फिसल जाती है पता ही नहीं चलता... शायद आज से कुछ ३० या ४० साल बाद... अगर तब तक ज़िन्दा रहे तो... या सोचने के काबिल रहे तो... शायद सोचेंगे कि हमने क्या खो दिया... और तब शायद इस बात का अफ़सोस होगा की ज़िन्दगी तो हमने बस यूँ ही गँवा दी... काश की कभी दिल से जिये होते... ख़ुद के लिये... अपनों के लिये... अपनी और उनकी खुशियों के लिये... तब शायद तमाम सुख सुविधायें होंगी, थोड़ा समय भी होगा, पर शायद ज़िन्दगी जीने की उमंग नहीं होगी, वो लोग नहीं होंगे... तब शायद सिर्फ़ काश कह के ही काम चलाना होगा... कहीं सुना था कभी "आता है लेकिन ये वक़्त बड़ा ही बे-वक़्त है, जब तक ये आता है सब कुछ बदल जाता है..."
अब भी समय है... आइये इस भागते वक़्त के पहिये को कुछ देर रोक दें... एक दिन के लिये ही सही... कुछ पल के लिये ही सही... आइये एक बार दिल से जियें... ताकि कल काश ना कहना पड़े...
आओ पकड़ें घड़ी की सुइयाँ
थाम लें उड़ते वक़्त की डोर
क़ैद करें कुछ लम्हों को
जी लें दिल से "लाइफ वंस मोर"
किसी काबिल जादूगर के जैसे
घुमायें अपनी जादुई छड़ी
पकड़ के वक़्त की दौड़ती नब्ज़
डालें उसकी आँखों में आँखें
वशीभूत करके इसे फिर
अपने ही इशारों पे चलायें
माना बहुत बलवान है ये
पर कम तो कुछ हम भी नहीं
क्यूँ चलें फिर इसके पीछे
क्यूँ ना अपने संग चलायें
भूल के सारे शिकवे गिले
आओ इससे हाथ मिलायें
-- ऋचा
बहुत खूब.. समय के दर्शन को बहुत ही ख़ूबसूरत शब्दों में बयां किया है आपने..
ReplyDeleteहैपी ब्लॉगिंग
Sacchi !Give me some sunshine, give me some rain; I want to grow up once again......Is race ka hissa ham bhi hai :-) good writing
ReplyDeleteAmjad Islam Amjad once wrote
ReplyDeleteवक़्त की रवानी है
बख्त की गिरानी है .
But now, as you have rightly said
वक़्त की गिरानी है.
aap bahut khubsoorat likhti hai ....kaun kahta hai ki lucknow wale ....sirf nawabiyat jaante hai ....aap me bahut fun hai mashaAllah ....kabhi waqt nikal hamare blogs par aakar apni rai dei....
ReplyDeletehttp://aleemazmi.blogspot.com/
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aleem
lucknowi
Its awsm richa. u remembered me all those span of time that we left in vain. Pata nahi kaise sab beet gaya. sab kuch choot sa gaya.............. Nice writing.
ReplyDeletesamy to kisika bhi nahi...to kiske pas hoga..
ReplyDeleteबहुत खूब.. समय के दर्शन को बहुत ही ख़ूबसूरत शब्दों में बयां किया है आपने..
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