ये दिल और इसके आवेश बड़े ही पेचीदा होते हैं... कोई तर्क वितर्क नहीं समझते... कभी ये बेवजह उदास हो जाता है, कुछ भी अच्छा नहीं लगता... कहीं भी मन नहीं लगता... लाख चाहो पर उदासी जाती ही नहीं... और कभी ये दिल बेवजह ही ख़ुश होता है... होंठों पे बिना बात एक मीठी सी मुस्कान तैरती रहती है... हर समय... बस ख़ुश रहने का दिल करता है... सारी दुनिया ख़ूबसूरत लगती है... बिलकुल ख़्वाबों सी हसीन... एकदम परी कथाओं जैसी...
पर हकीकत में ज़िन्दगी परी कथा नहीं होती... वो तो लम्हा लम्हा कर के आपकी मुट्ठी से फिसलती रहती है रेत की तरह... जैसे फिसलती रेत के कुछ कण आपकी हथेली पे चिपक जाते हैं ठीक उसी तरह ज़िन्दगी के कुछ लम्हे भी आपकी यादों में ठहर जाते हैं... "फ्रीज़" हो जाते हैं... हर गुज़रते लम्हे में मिलते हैं कुछ खट्टे-मीठे अनुभव जो साथ मिल कर आपकी ज़िन्दगी की किताब लिखते हैं...
कभी अकेले बैठ के ज़िन्दगी की किताब के वर्क पलटो तो कुछ ख़ूबसूरत लम्हें, जो आपने कभी अपनी यादों में समेटे हों, यादों से निकल कर बाहर आ जाते हैं और आपको बड़े प्यार से गुदगुदा जाते हैं... हँसा जाते हैं... आप अकेले हो के भी अकेले नहीं होते... वो ख़ूबसूरत यादें जो होती हैं आपका साथ देने के लिये...
सच... बहुत सुकून मिलता है यादों के आँगन में बैठ कर उन लम्हों के एहसास को, उनकी गर्मी को एक बार फिर महसूस करने में... बिलकुल वैसे ही जैसे सर्दियों की नर्म गुनगुनी सी धूप में बैठ कर किसी दोस्त से घंटों इधर उधर की बातें करना... मूंगफली खाते हुए :-)
कुछ ऐसे ही लम्हे अपनी यादों से निकाल कर आज आपके साथ बाँट रही हूँ...
जुगनू के जज़ीरों से जलते बुझते
कुछ रौशन कुछ मद्धम ये लम्हें
ज़िन्दगी छलकती है इनसे
कभी कभी लगता है
ज़िन्दगी के ये कतरे
मेरी तृष्णा को बढ़ाते जा रहे हैं
कुछ और, कुछ और
पता नहीं क्या पाने की लालसा में
आगे बढ़ती जा रही हूँ
दिये की लौ सी टिमटिमाती
एक आस है दिल के किसी कोने में
हाथों के घेरे से उसे ढांप देती हूँ ... बुझ ना जाये कहीं
भींच लेती हूँ आँखों को ज़ोर से
कि कुछ पल ये लम्हें और जी लूँ
सच-झूठ, अच्छे-बुरे, सही-गलत से परे
ये ख़्वाबों से खूबसूरत लम्हें...
कुछ रौशन कुछ मद्धम ये लम्हें
ज़िन्दगी छलकती है इनसे
कभी कभी लगता है
ज़िन्दगी के ये कतरे
मेरी तृष्णा को बढ़ाते जा रहे हैं
कुछ और, कुछ और
पता नहीं क्या पाने की लालसा में
आगे बढ़ती जा रही हूँ
दिये की लौ सी टिमटिमाती
एक आस है दिल के किसी कोने में
हाथों के घेरे से उसे ढांप देती हूँ ... बुझ ना जाये कहीं
भींच लेती हूँ आँखों को ज़ोर से
कि कुछ पल ये लम्हें और जी लूँ
सच-झूठ, अच्छे-बुरे, सही-गलत से परे
ये ख़्वाबों से खूबसूरत लम्हें...
-- ऋचा
बिलकुल वैसे ही जैसे सर्दियों की नर्म गुनगुनी सी धूप में बैठ कर किसी दोस्त से घंटों इधर उधर की बातें करना... मूंगफली खाते हुए :-)
ReplyDeleteऐसे लम्हे जीना और फ़िर उन्हें यूं अभिव्यक्त कर पाना.. लाजवाब!
हैपी ब्लॉगिंग
Lamha-Lamha kuchh ehsaas yun jehan se jud jaate hain ki lagta hai hum saans nahil le rahe un ehsaason ka daaman thaam rahe hain.
ReplyDeleteaapki post to hoti hi hai humesha lajawaab !
खूबसूरत लम्हों का सफ़र जीना.......मंजिल-सा लगता है
ReplyDeleteAbhar ...lamhon ke sang jine ke liye...
ReplyDeleteचलते रहते हैं ज़िन्दगी की राहों पे,
ReplyDeleteयही आस लिये हुए दिल में कि
कल किसी रोज़ बंद आँखों में
कुछ सुकूनी यादें फिर गुजरेंगी
और उन खूबसूरत लम्हों की एक झलक
फिर से हमें ज़िन्दगी दे जाएगी...
It's being little time for me being your follower. It's really great to see a s/w engineer so good in hindi.
Happy blogging Richa... you are just awesome in your posts.
Dil hi mein rehta hai,
ReplyDeleteaankhon mein baheta hai,
Kaccha sa ek khwaab hai,
Lagta sawaal hai,
shaayad jawaab hai,
Dil phir bhi betaab hai
Yeh sukun hai to hai,
yeh junoon hai to hai
Khoobsurat hai jee lene de
Diya......sir ye lamha hi nahi....poori zindgi....live LIFE KING SIZE ......Umda
बहुत ही उम्दा रचना है लाजवाब
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर रचना है।
ReplyDeletepls visit...
www.dweepanter.blogspot.com
kuch or paane ki ichha hi zindgi me aage badne ki nishani ho magar ye janoon ban jaye to mushkil hogi...
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