कुछ एहसास कितने दिव्य होते हैं... पाक होते हैं... हवन वेदी से उठती उस पवित्र सी गंध की तरह जो अपने आस पास का सारा वातावरण पवित्र कर देती है... कुछ बेहद ख़ास होते हैं... जैसे जब एक बच्चा पहली बार अपनी तोतली सी बोली में "माँ" बुलाता है... कुछ बेहद ख़ूबसूरत होते हैं... गुलाब की पंखुड़ियों पर पड़ी ओस की बूँदें और उन पर पड़ती सुबह के सूरज की उन पहली किरणों की तरह ... कुछ एहसास एकदम पारदर्शी होते हैं जैसे माँ की ममता और कुछ एहसास रहस्यमयी होते हैं जैसे कोहरे में लहराता कोई साया, कोई अनसुलझी पहेली... कुछ एहसास बेहद साफ़ होते हैं बर्फ़ से सफ्फ़ाक और एकदम नाज़ुक... जिन्हें छूते हुए भी डर लगता है... या तो गल जाएगा या मैला हो जाएगा... और कुछ एहसास बारिश की पहली बूँद की तरह होते हैं जो सूखी ज़मीं पर पड़ते ही उसमे समां जाते हैं... जज़्ब हो जाते हैं...
हर एहसास एकदम अनूठा... जिसे आप सिर्फ़ महसूस कर सकते हो.. बयान नहीं कर सकते... कभी कोशिश भी करते हो उसे बताने समझाने की तो बहुत कुछ अनकहा रह जाता है... कभी आप समझा नहीं पाते और कभी सामने वाला समझ नहीं पाता और इसी कशमकश में उस एहसास के मानी ही बदल जाते हैं... कभी कभी सोचती हूँ ये कवि और लेखक कितने बुद्धिजीवी लोग होते हैं... कितनी आसानी से ख्यालों और एहसासों को शब्द दे देते हैं... सचमुच तारीफ के काबिल :-)
कभी किसी बच्चे की हँसी सुनी है आपने... कितनी मासूम होती है... फिर भी एक चुम्बक सा आकर्षण होता है उसमें... है ना ? आप कितने भी थके हो... मन कितना भी उदास क्यूँ ना हो... उस मासूम सी किलकारी से आपकी सारी थकान गायब हो जाती है... एक प्यारा सा एहसास भर जाता है मन में... ऐसे ही किसी एहसास के ताने बाने में मन उलझा हुआ है आजकल... कुछ ख़ास, कुछ पाक, बेहद मासूम, निर्मल, निष्पाप... बिलकुल अपना सा... ये कैसा एहसास है पता नहीं... क्यूँ है ये भी नहीं जानती... शायद जानना भी नहीं चाहती... बस इस एहसास को जीना चाहती हूँ... साँसों में भर लेना चाहती हूँ... हमेशा हमेशा के लिये... या तो ये एहसास मुझमे समा जाये या मैं इसमें...
अजीब कशमकश में हूँ आजकल
इक नया सा एहसास साथ रहता है
हर लम्हा, हर पल...
कुछ अनूठा, कुछ अदभुत
कुछ पाने की प्यास
कुछ खोने का एहसास
कभी झील सा शान्त
तो कभी पहाड़ी नदी सा चंचल
कुछ संजीदा, कुछ अल्ल्हड़
मंदिरों से आती जरस की सदाओं सा पाक
कभी शीशे सा साफ़-शफ्फाफ़
तो कभी पुरइसरार सा... धुंध की चादर में लिपटा हुआ
क्या है ये अनजाना सा एहसास
भावों का ये कोमल स्पर्श
पता नहीं ... पर अपना सा लगता है
कभी जी चाहता है इसे इक नाम दे दूँ
फिर सोचती हूँ बेनाम ही रहने दूँ
मैला ना करूँ...
-- ऋचा
खू़बसूरत एहसास उकेरने वाली ख़ूबसूरत लेखनी। बहुत अच्छा लिखा है आपने..
ReplyDeleteहैपी ब्लॉगिंग
मासूमियत के नए पत्ते पर ओस की बूंद रहने दो
ReplyDeleteपत्ते को सिहरने दो-
कोई नाम ना दो
Ehsason ki Ghati mein aisa hi to jaan padta hai
ReplyDeletesahi karti hain aap jo unko naam nahi detin
Kuch hai....jo benaam hai beintha khoobsoorat...aur agar benaam khoobsoorat hai to wahi sahi.... Naam ka ilzaam kya dena....Khoobsoorat ehsaas
ReplyDeleteनिदा फाजली की फैन हैं आप.. वाकई उनकी लेखनी में दम है और उनके गूढ़ अथ को आप अच्छा समझाकी हैं.
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर स्वागत है
www.syaah.blogspot.com
सौरभ कुणाल
एक पत्रकार
अगर तूफ़ान में जिद है ... वह रुकेगा नही तो मुझे भी रोकने का नशा चढा है ।
ReplyDeletebahut khoob likhte raho.... mere blog par bhi swagat hai....!!
ReplyDeleteJai HO MAngalmay Ho
... sundar rachanaa !!!!
ReplyDeleteHi...
ReplyDeleteAchha lagta hai jab is lekhan ki duniya me koi apne shahar ka milta hai...aapka parichay padha aap maanti hai ki aap lekhika nahi hai...par apne ahsaso ko jis sanjidgi se bayan kiya hai aapne ek lekhak hi kar sakta hai.
nice blog...would like to read more from you.
Best wishes
~~rishu~~
waah...kaafi achha likha ...
ReplyDeleteबेहतरीन..
ReplyDeleteजितनी अच्छी कविता उतनी अच्छी एहसास की व्याख्या
--कभी-कभी सोंचती हूँ इसे एक नाम दूँ
फिर सोंचती हूँ बेनाम ही रहने दूँ
मैला न करूं..
वाह कमाल की अभिव्यक्ति!
सुंदर रचना. साधुवाद.
ReplyDeleteबहुत अच्छी कविता लिखी है आपने । रचना गहरा प्रभाव छोडऩे में समर्थ हैं ।
ReplyDeleteSANJAY KUMAR
HARYANA
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
भावपूर्ण,प्रशंसनीय प्रस्तुति.
ReplyDeleteदोनों पोस्ट बहुत ही खुबसूरत...
ReplyDeleteमंदिरों से आती जरस की सदाओं सा पाक
कभी शीशे सा साफ़-शफ्फाफ़
तो कभी पुरइसरार सा... धुंध की चादर में लिपटा हुआ
यह पैर तो दिल ले गया ... शानदार !
बहुत ही लाज़वाब ,दिल छूने वाली रचनाएँ👌👌
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