Monday, July 3, 2017

केरल डायरीज़ - ६ : फिरोज़ी इश्क़... कोवलम !




२ फरवरी २०१७

कोवलम... यानी नारियल के पेड़ों का उपवन... इससे बेहतर और उपयुक्त नाम हो ही नहीं सकता इस जगह का... दूर तक फैला नीला अरब महासागर और किनारे लगे असंख्य नारियल के पेड़... आने वाले दो दिनों में ये जगह हमारी ऑल टाइम फेवरेट लिस्ट में शामिल होने वाली है ये हमें भी नहीं पता था....

बीती रात लहरों के शोर ने समंदर से मिलने की उत्सुकता कुछ और बढ़ा दी... रात उठ उठ के जाने कितनी बार खिड़की से झाँका कि सुबह हो गयी क्या... पर सुबह को तो अपने तय समय पर ही होना था सो वो तभी हुई... हाँ हम जैसे तैसे तो ६ बजे तक पड़े रहे बिस्तर में फ़िर बस आ कर टंग गये बालकनी में और लहरों को साहिल संग अठखेलियाँ करते देखते रहे एक टक... कोवलम में तीन मेन बीच हैं... सबसे बड़ा और टूरिस्टों से हमेशा भरा रहने वाला कोवलम बीच, विदेशी सैलानियों के लिए प्रसिद्द हावा बीच और तीसरा समुद्र बीच जो अपने शान्त वातावरण के लिये प्रसिद्द है... हम जिस रिसोर्ट में रुके थे वो दरअसल यहीं समुद्र बीच के किनारे था... यहाँ बहुत कम ही लोग आते हैं... ज़्यादातर वो जो इस रिसोर्ट में या आसपास के होटलों में रुके होते हैं... तो एक तरह से ये बीच अनौपचारिक तौर पर इस रिसोर्ट के लिए प्राइवेट बीच का काम करता है...

समुद्र बीच से सामने पहाड़ी पर लाल और सफ़ेद रंग की जो बिल्डिंग दिख रही है
वो होटल लीला कोवलम है
किसी तरह ६.३० बजा और जैसे ही थोड़ी चहलपहल दिखी बीच पर हम भी निकल गए लहरों से मिलने... यूँ लहरों से भोर का राग सुनने का ये बिलकुल अलहदा तजुर्बा था... बेहद रूहानी... जाने कितनी देर किनारे बैठे लहरों को यूँ आते जाते देखते रहे... अजब सम्मोहन था उनकी चाल में... दूर से उठती कोई लहर ढेर सारा सफ़ेद दूधिया झाग अपने संग लिये आपकी ओर दौड़ती आती है और छपाक से गिरती है साहिल पे... कोई बस चुपके से दबे पाँव आती है और पैरों में गुदगुदी मचा में खिलखिलाती हुई वापस भाग जाती है... तो कोई दुष्ट लहर ढेर सारी रेत बहा ले जाती है आपके पैरों तले से और आपके पैर धंस जाते हैं साहिल की रेत में... जी करता कि बोलें उसे, रुको, अभी बताते हैं तुम्हें और दौड़ जायें दूर तक उस पागल लहर के पीछे... कितने तो मासूम खेल और कितने ही बचकाने ख़यालात... दिल सच में बच्चा हुआ जाता था वहाँ पहुँच के...

नाव में बैठ कर दूर समंदर में जाल डालने जाते मछुआरे

फ़ोटो बड़ा कर के देखने पर समंदर में दूर तक तिकोना आकार बनाते छोटे छोटे से सफ़ेद डिब्बे जैसे दिखेंगे
वो दरअसल मछुआरों के द्वारा डाले हुए जाल के दो सिरे हैं
 

जाल के एक सिरे पर रस्सी खींचते मछुआरे 
लहरों के संग खेलने और यहाँ की आधी काली आधी भूरी रेत में देर तलक चहलकदमी करने के बाद थोड़ा सुस्ताने बैठे तो देखा दूर समुद्र में जा के जो मछुआरों ने जाल डाला था अब उसे खींचना शुरू करने वाले थे... उन्हें जाल की रस्सी खींचते देखना भी अपने आप में एक अजब अनुभव था... पहली चीज़ जिसने आकर्षित किया वो था उनका सिंक्रोनाइजेशन... दोनों छोर पे तकरीबन २०-२० मछुआरे जाल की रस्सी खींच रहे थे और साथ में एक अजब ही आवाज़ निकल रहे थे... शायद एक दूसरे का उत्साह बढ़ने के लिये... ये मछली पकड़ने का पूरा साईकल तकरीबन ३ घंटे का होता है जो दरअसल सुबह करीब ६ - ६.३० शुरू होता है जब कुछ मछुआरे एक नाव में बैठ कर समुद्र में काफ़ी दूर तक जाते हैं और जाल को पानी में डालते हैं... फ़िर वापस किनारे पर आ कर अपने अन्य साथियों के साथ मिलकर जाल के दोनों छोर में बंधी रस्सी खींचते हैं मछलियों से भरे जाल को वापस लाने के लिए... उस दिन कितनी मछलियाँ फँसी जाल में ये तो हमने नहीं देखा... अलबत्ता भीगे हुए, १५-२० मिनट तक मछुआरों का रस्सी खींचना देख कर ठण्ड ज़रूर लगने लगने लगी.. तो पास में ही एक चाय की दूकान पर जा कर चाय पी और साथ में गरम गरम मैगी खायी तब जाकर ज़रा जान में जान आयी :)

१० दिन की इस हेक्टिक ट्रिप के बीच कोवलम का ये दिन हमने रिलैक्स करने के लिए चुना था तो लगभग सारा दिन ही रिसोर्ट में आराम किया और आगे की यात्रा के लिए री-एनर्जाइज़ हुए... और उसके लिये ये रिसोर्ट बेस्ट था... यूँ तो कमरा भी शानदार था खुला खुला हवादार... पर अन्दर मन किसका लगता है... हमें तो रूम के बहार की बालकनी बहुत पसंद आयी... जी चाहे तो सारा दिन वहाँ बैठे समंदर को निहारिये... किताबें पढ़िये... सामने नारियल से लदे पेड़ों को देखिये... उस सब से थक जाइये तो स्विमिंग पूल का लुत्फ़ उठाइये या केरल की फेमस आयुर्वेदिक मसाज का...






सारा दिन रिलैक्स करने के बाद शाम को सोचा पद्मनाभ स्वामी मन्दिर देख आया जाये... देखें तो ज़रा आख़िर क्यूँ इसे दुनिया का सबसे अमीर मन्दिर कहा जाता है और भगवान आख़िर इतने सोने का करते क्या हैं... मन्दिर बेहद भव्य और ख़ास द्रविडियन वास्तुशैली में बना हुआ था... भव्य गोपुरम और विशाल प्रांगण... चारों ओर ऊँची दीवारों से घिरा... सामने एक तालाब... कैमरा और फ़ोन सब काफ़ी दूर ही जमा करा लिए गए थे तो कोई भी फ़ोटो लेना संभव नहीं हो पाया... पर मन्दिर ऐसा है की ख़ुद देख के ही अनुभव कर सकते हैं... कैमरा उसका अंश मात्र भी कवर नहीं कर सकता... सख्त पत्थरों में कैसे बोलती हुई मूर्तियाँ उकेरी गयी थीं पूरे प्रांगण में... कहीं दीवारों पर कहीं खंभों पर कहीं छत में... हर छोटी बड़ी मूर्ति लगता था बस अभी बोल पड़ेगी... जाने कौन शिल्पकार थे वो जिन्होंने पत्थरों में यूँ जान डाल दी थी... 

यूँ तो मन्दिर में दर्शन के लिए बहुत लंबी लाइन लगती है पर जब हम मन्दिर पहुँचे तो संध्या आरती का समय होने वाला था और पट बंद होने वाले थे आधे घंटे के लिये तो लाइन में लगे सभी लोगों को जल्दी जल्दी दर्शन कराये गये... मन्दिर में मुख्य मूर्ति भगवान विष्णु की है जो "अनंत शयनं" मुद्रा में शेष नाग पर लेटे हुए हैं... उनका दाहिना हाथ शिव लिंग के ऊपर रखा हुआ है... उनकी नाभि से स्वर्ण कमल निकल रहा है जिस पर ब्रह्मा विराजमान हैं... साथ ही श्रीदेवी लक्ष्मी, भूदेवी, भृगु मुनि और मारकंडेय मुनि की मूर्तियाँ भी हैं... कहते हैं विष्णु भगवान की मूर्ति १२००८ सालिग्रामों से बनी है... और ये सारे सालिग्राम नेपाल में बहने वाली गण्डकी नदी से लाये गए थे... मूर्ति इतनी विशाल है की उसे तीन दरवाज़ों से पूरा देखा जा सकता है... पहले दरवाज़े से भगवान का सिर और हाथ... दूसरे से नाभि से निकलता कमल और तीसरे से उनके चरण... सच पूछिये तो ऐसी विशाल और इतनी सुन्दर मूर्ति हमने आजतक नहीं देखी... कुछ क्षणों का ही सही पर ये एक अनूठा अनुभव था...

मन्दिर से वापस आये तब तक अँधेरा हो चूका था और एक बार फ़िर से सनसेट देखना मिस कर दिया था हमने... खैर खाना वाना खा कर आज जल्दी सोने की तैयारी करनी है... कल का दिन भी लंबा होने वाला है... आज केरल में हमारी आखरी रात है... कल कन्याकुमारी जाना है...



( नोट - सभी फ़ोटो को बड़ा कर के देखने के लिए उन पर क्लिक करें )

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7 comments:

  1. बहुत ही रोचक यात्रा वर्णन

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  2. कोवलम हम भी गये हैं लेकिन कभी इतना सुन्दर नहीं लगा जितना इसे पढ़ कर लग रहा है... :)

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    1. अहा! अब इसे कहते हैं कॉम्प्लिमेंट :) कई बार बहुत कुछ आपके स्टेट ऑफ़ माइंड पर भी निर्भर करता है... एक बार फ़िर से जाओ शेखर और इस बार नये नज़रिये से देखना... कोवलम वाकई बहुत ख़ूबसूरत है... वहाँ बस जाने का दिल करता है!

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  3. Bahut dino k baad blog par aana hua, socha nahi tha itni sundar jagah ke sath Padmnabh Mandir ke itni kareeb se darshan kar lunga...

    Bahut hi sundar chitr aur un se bhi spasht mehsus hote huye Shabdchitr...

    Kunwar ji

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  4. Hi Richa

    came across your post Soona Pada hai wo Sira. why have you disabled comments on that post.
    aise lagta hai jaise mere man ki bhawnaon ko abhivyakti de di tumne. likhna mujhe nahi aata magar likhti to jaise yahi. doosre sire se awaazein jab dhundhli padne lagti hain to aise lagta hai ki koi rooh ko kheench kar jism mein se nikaal raha ho.

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दिल की गिरह खोल दो... चुप ना बैठो...

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