३० जनवरी २०१७
कहने को केरल में आये दो दिन हो चुके थे... अब तक हम कोच्ची से भी मिल चुके थे और अथिरापल्ली के भीमकाय झरनों से भी... फ़िर भी जाने क्या था की मन को अब तक सुकून नहीं था... या यूँ कहें की यात्रा में होने का एहसास नहीं था.. अब आप सोच रहे होंगे की वो कैसा होता है... इसे हमारे नज़रिये से कुछ ऐसे समझिये कि जब हम यात्रा में होते हैं तो पूरी तरह ख़ुद को प्रकृति के हवाले कर देते हैं... और अपने आसपास के वातावरण में ख़ुद को खो देते हैं... या यूँ कहिये की सब कुछ जज़्ब करते चलते हैं... यात्रा के दौरान ज़्यादा बातचीत करना भी हमे पसंद नहीं... बस हम, हमारा कैमरा, प्रकृति और दिमाग़ में ढेर सारा कौतुहल... यहाँ के लोग कैसे हैं.. यहाँ का खाना पीना, रहन सहन कैसा है... पेड़ पौधे, खेत खलिहान, पक्षी जानवर, से लेकर मिट्टी का रंग, हवा की ख़ुश्बू और पानी की मिठास तलक... सब कुछ... दिमाग किसी अलग ही स्टेट में होता है यात्रा के दौरान.. ट्रैवलिंग हमारे लिये मैडिटेशन की तरह है... जो अब तक मिसिंग लग रहा था हमें..
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ज़रा इमैजिन कर के देखिये.. अपने शहर में कोई चटक नीला, गहरा गुलाबी या फ़िर हरा या फालसी रंग का घर सोच भी सकते हैं क्या आप ? कैसा बेतुका सा लगेगा... अभी तक हमने तो कम से कम हिन्दुस्तान के किसी और शहर में ऐसे रंग के घर नहीं देखे कभी... सोच के ही कैसा वीयर्ड सा लगता है... पर यहाँ देखिये हर उस वीयर्ड कलर का घर कितना ख़ूबसूरती से खड़ा है नारियल और केले के पेड़ों के बीच... एक बार कभी ऐसे ही किसी घर के रह कर वहाँ के कल्चर को समझने की भी ख्वाहिश है मन में... कितना सुकून भरा होगा न ऐसे शान्त, पौल्यूशन फ्री एनवायरनमेंट में रहना... केरल ऐसे ही तो नहीं हिन्दुस्तान का सबसे साफ़ सुथरा प्रदेश कहलाता है...
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जारी...
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यात्रा के पिछले पन्ने :
आपकी तूलिका से केरल की बहुत खूबसूरत तस्वीरें सामने आ रही हैं। अगली कड़ी का इंतज़ार है।
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