तुमसे जितना झगड़ती हूँ प्यार उतना ही बढ़ता जाता है... रोती हूँ तो सपने धुल के नये से हो जाते हैं.. कुछ और चमकीले... तुम्हारे साथ हँसती हूँ तो उन सपनों में इन्द्रधनुषी रँग भर जाते हैं... तुम्हें हँसता देखती हूँ तो उनमें जान आ जाती है... हम तीनों मिल कर जी उठते हैं फिर से... तुम.. मैं और हमारे सपने...!
तुम्हारी मुस्कुराहट को पेंट करने का दिल करता है कभी कभी... काँच सी पारदर्शी तुम्हारी आँखें... उतना चमकदार रँग बना ही नहीं जो उन्हें कैनवस पे उतार सके... कभी कभी सोचती हूँ तुम्हारी रूह को एक काला टीका लगा दूँ... कहाँ बची हैं अब इतनी पाकीज़ा रूहें धरती पर... कहाँ रह गये हैं इतने साफ़ दिल इंसान...
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मैं एक छोटा सा घर बनाना चाहती हूँ... किसी पहाड़ी गाँव में... जहाँ हम दोनों बुड्ढे बुढिया मिल कर बागवानी करेंगे... जंगल से लकड़ी बिन के लायेंगे... चूल्हे में खाना बनायेंगे... कच्ची पक्की रोटियाँ सेकेंगे... प्रकृति की सुंदरता निहारेंगे... चिड़ियों को दाना खिलायेंगे और सारा दिन फ़ुर्सत से बैठ कर सिर्फ़ बातें करेंगे...
आज सुबह से ही शहर का मौसम खुशनुमा सा है... कुछ अच्छा सा करने का दिल हो रहा है... तो इस खूबसूरत से दिन उस ऊपर वाले का शुक्रिया करना चाहती हूँ... तुम्हें मेरी ज़िंदगी में लाने के लिये... तुमसे मेरी ज़िंदगी खूबसूरत है दोस्त... तुमसे ही इस ज़िंदगी को मानी मिले हैं...!
मेरे पसंदीदा गीत तुम हो... तुम्हारा पसंदीदा गीत तुम्हारे लिये...