यात्रा करना कुछ कुछ ध्यान लगाने जैसा है... मेडीटेट करने जैसा... एक अनंत में ख़ुद को खो देने जैसा... एक असीम में ख़ुद को पा लेने जैसा... नयी जगह नये लोग नया वातावरण.. हर बार एक नया जन्म लेने जैसा... कितना रुच रुच के उस उपरवाले ने ये कायनात बनायी है... पूरी शिद्दत से... कहीं पेड़ कहीं पहाड़... झरने... जंगल... सागर... कहीं रेगिस्तान कहीं खेत खलिहान... ये प्रकृति कितनी ख़ूबसूरत है... जैसे हर कण में उसने अपना एक अंश छोड़ दिया है... और हम इंसानों के अन्दर एक यायावर की आत्मा...
ये यायावरी ये ख़ानाबदोशी शायद थोड़ी ज़्यादा ही दे दी है उस उपरवाले ने
हमें... पिछले जन्म की किसी बंजारन की आत्मा... थोड़ा सा समय बीतता है और
लगता है बस अब कुछ दिनों के लिए कहीं घूम आना चाहिए... किसी नए शहर किसी नए
कस्बे... और इस बार तो हद ही हो गयी... ढाई साल होने आ रहा है और हम कहीं
जा नहीं पा रहे हैं... मन हर शाम एक अजीब सी बेचैनी से भर जाता है.. जैसे
उसे भी सांस लेने को एक नयी खुली जगह चाहिए... पिछले साल फूलों की घाटी
जाने का प्लान बनाया था... टूर ऑपरेटर को एडवांस पैसे भी जमा कर दिए, पर
उत्तराखंड में पिछले साल आयी भयानक प्रलय से सारे टूर कैंसिल हो गए.. इस
साल भी कोई ख़ास उम्मीद नहीं दिखती... तो आजकल किसी नयी डेस्टिनेशन की तलाश
है... कहीं किसी दूसरे पहाड़ पर...
पहाड़ों में तो जैसे हमारी आत्मा बसती है... आज जब लोग सेविंग और
रिटायरमेंट प्लान्स के बारे में सोचते हैं तो हम दूर किसी पहाड़ी पर एक छोटा
सा कॉटेज लेने के बारे में सोचते हैं... वही किसी गाँव के किसी स्कूल में
पहाड़ी बच्चों को पढ़ाते हुए तमाम उम्र गुज़र जाये तो क्या ही ख़ूब हो... उफ़ ये
ख्वाहिशें... के हर ख्वाहिश पे दम निकले...
वैसे कितना कुछ है ना इस दुनिया में देखने को... एक्स्प्लोर करने को...
छोटी छोटी जगहें... शहर... टापू... द्वीप... हिन्दुस्तान की बात करें तो
काफ़ी हद तक हमने घूमा है... ज़्यादातर पहाड़... और बहुत कुछ है जो अभी देखना
बाकी है... मुनार जाना है... केरेला देखना है... कच्छ का रण... कश्मीर...
राजस्थान... गुजरात... दार्जलिंग... पेंगॉन्ग सो लेक... डलहौज़ी... चम्बा..
खजियार... लैंड्सडाउन... जिम कॉर्बेट... और भी न जाने क्या क्या... हमें उन
सब जगहों पर जाना है... उन्हें महसूस करना है... आत्मसात करना है... कुछ
पलों के लिये उन्हीं का हिस्सा हो जाना है...
ऐल्प्स की
पहाड़ियाँ... सफ़ेद नीले घरों से जगमगाता मिकोनोस शहर... अमेज़न के घने
जंगल... मालदीव्स का झिलमिलता नीला समुद्र... पानी में डूबता तैरता
वेनिस... फ्रेंच वाइन यार्ड्स... ऑस्ट्रेलिया की ग्रेट बैरियर रीफ... लॉच
नदी के किनारों पे बसा ख़ूबसूरत कोलमर शहर... फिलिपींस का डेडॉन आइलैंड...
कैलाश मानसरोवर में बिखरे शिव...
सोचने बैठो तो एक के बाद एक नाम जुड़ते ही जाते हैं इस लिस्ट में... देखने को कितना कुछ है... और ज़िन्दगी कितनी छोटी... हर एक लम्हें में कितना कुछ जीना है... हर गुज़रते पल के साथ एक नया जन्म लेना है...!
सोचने बैठो तो एक के बाद एक नाम जुड़ते ही जाते हैं इस लिस्ट में... देखने को कितना कुछ है... और ज़िन्दगी कितनी छोटी... हर एक लम्हें में कितना कुछ जीना है... हर गुज़रते पल के साथ एक नया जन्म लेना है...!
aapki ye post padhkar laga ki ye meri bhi khwahish hai. bas humare paas itne shabd nahi ki hum unhe itne impressive tareeke se ujagar kar saken. Happy Blogging
ReplyDeleteअरे यहां तो मेरा भी नाम है. कभी हमको भी घूम आईए. हम भी अभी तक ढाई सौ रूपया बचाये हैं उधर ही कहीं कॉटेज खरीदने के लिए.
ReplyDeletehttps://www.youtube.com/watch?v=V0LwkIZU_nU
घूमने नहीं जा पा रही हैं तो कम से कम उसकी कसक ही रेगुलर इंटरवल पर लिख दिया कीजिए. ये भी भला कोई बात हुई !
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन छोटी सी प्रेम कहानी - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteमन की घुमक्कड़ी को अवसर मिलते ही बाहर निकालिए। नौकरी की परेसानियों के बीच मैं तो हर साल दस पन्द्रह दिन जरूर निकालता हूँ विचरने के लिए। ऊपर से भगवान भी कुछ अवसर बना देते हैं।
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