कानों में पहन के तेरी ख़ामोशी के सुर
साँसों में बसाये तेरी साँसों
का मोगरा
खनकी रहती हूँ आरज़ू सी कभी...
महकी
फिरती हूँ मुश्क़-बू सी कभी...
जाने ख़ुद को तुझमें छोड़ आयी हूँ या तुम्हें ख़ुद में बसा लायी
हूँ... हमेशा
के लिये... जाने क्या हुआ है पर कुछ तो हुआ है... आँखें भारी सी हो रही हैं
गोया सदियों की नींद भरी हो उनमें... सोने का मन भी होता है पर नींद नहीं
आती... भूख लगती है पर कुछ खाया नहीं जाता... किसी काम में दिल नहीं लग
रहा... अजीब हाल है... बेवजह मुस्कुरा रही हूँ... बाँवरी सी... लगता है
जैसे कोई बेहद ख़ूबसूरत ख़्वाब देखा है... या हक़ीक़त ख़्वाबों सी ख़ूबसूरत
हो आई है... ये कैफ़ियत... ये गफ़्लत... उफ़ ! ये क्या कर दिया है तुमने
मुझे...
धड़कने भी जाने कैसी दीवानी सी हो गई हैं... जाने किस सप्तक के सुर छेड़
रही
हैं हर पल... बीथोवन की सातवीं सिम्फनी सी... ये कैसा सुरूर छाया हुआ है
मुझ पर... नशे के ये किस भंवर में आ फँसी हूँ... जिस्म पर ये कैसी मदहोशी
तारी है... साँसों में भी कुछ नशा सा घुलता हुआ महसूस होता है... जैसे नशे
के किसी नमकीन महासागर में डूब के आयी हूँ... तुम्हारी कसम शराब को तो
कभी हाथ भी नहीं लगाया... फिर ये नशा कैसा है... मैं सच में अपने होश खो
बैठी हूँ क्या ?
ये कैसा मायावी जाल फेंका है कि ख़ुद-ब-ख़ुद खिंचती
चली जा रही हूँ इसमें... ये कैसी कसमकस है... ये कैसी क़शिश है कि इससे बाहर
निकलने का भी दिल नहीं होता... तुम सच में मायावी हो... जाने किस देस से
आये हो... और आते ही मेरे दिल दिमाग़ सब पर तो कब्ज़ा कर लिया है... ना कुछ
सोच पाती हूँ ना समझ पाती हूँ... फिर भी ख़ुश हूँ... बहुत ख़ुश... सुनो...
इस क़ैद से कभी आज़ाद मत करना... ये बन्धन ज़िन्दगी बन गया है... इससे आज़ाद
हुई तो मर जाऊँगी !
दिल के रंग निराले हैं,
ReplyDeleteयह ठंड से भी जला डाले है।
Pyar ek aurat ko kya se kya bana deta hai....behad achhe alfaaz me bayaan kiya hai aapne!
ReplyDeleteAwesome poem,i love this...
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