कुछ ख़ुश्बूएँ दिल के कितने क़रीब होती हैं... कभी होता है ना बैठे बैठे अचानक कोई ख़ुश्बू याद आ जाती है और बस मन बच्चों सा मचल उठता है उसे महसूस करने को... हाँ, इन ख़ुश्बुओं को बस महसूस करा जा सकता है बताया या समझया नहीं जा सकता... रूहानी सी कुछ ख़ुश्बूएँ... किसी नन्हें से बच्चे के हाथों से आती भीनी सी महक जैसी... पाकीज़ा सी कुछ ख़ुश्बूएँ... हवन वेदी से उठती पवित्र गंध जैसी... कोहरे में भीगी पहाड़ी पर चीड़ और देवदार से आती पुर-असरार सी कोई ख़ुश्बू, सम्मोहित कर के अपने मोहपाश में बाँध लेने वाली... रूमानी सी कोई ख़ुश्बू... जैसे बारिश की हल्की सी फुहारें पड़ने के बाद मिट्टी से उठने वाली सौंधी सी महक जो बस पागल ही कर देती है... सुकून देती कोई ख़ुश्बू जैसे सर्दियों की सुबह पेड़ से छन के आने वाली धूप की महक...
सर्दियों की रात अंगीठी में जलते कोयले की ख़ुश्बू... बारिश में भीगे मिट्टी के चूल्हे में जलती लकड़ी और उसमें सिंकती रोटी की ख़ुश्बू... सरसों के खेत से उठती सरसों के फूलों की तीखी गंध... आम के पेड़ पर आये नये कोपलों और बौर की ख़ुश्बू... गीली मेहँदी की ख़ुश्बू... किसी बेहद अज़ीज़ किताब के पन्नों से आती अतीत की ख़ुश्बू... इलायची वाली चाय की ख़ुश्बू... पुदीने की चटनी की ख़ुश्बू... गरम गरम भुट्टे पर नींबू और नमक की ख़ुश्बू... ताज़े भुने हुए अनाज की ख़ुश्बू... सर्दी की सुबह धुँध की ख़ुश्बू... जंगली फूलों की ख़ुश्बू... दादी के आँचल से आती वात्सल्य की ख़ुश्बू... बच्चों की आँखों से झाँकती शरारत की ख़ुश्बू... ब्लैक कॉफी से उठती कोई तल्ख़ सी ख़ुश्बू... सुबह सुबह झरे हरसिंगार की ख़ुश्बू..
आधी रात भीगे हुए मोगरे की ख़ुश्बू... चाँदनी की ख़ुश्बू...
यादों की ख़ुश्बू... ख़्वाबों की ख़ुश्बू... साहिल की भीगी रेत की
ख़ुश्बू... पीले गुलाब की ख़ुश्बू... पहले प्यार की ख़ुश्बू... लब-ए-यार की ख़ुश्बू... तुम्हारी
ख़ुश्बू.....!