दिवाली की रौनक फिज़ाओं में घुलने लगी है... वो मिठाइयाँ, वो पटाखे, वो दिये, वो रौशनी, वो सारी ख़ुशियाँ बस दस्तख़ देने ही वाली हैं... भाई-बहनों, दोस्तों-रिश्तेदारों के साथ मिल के वो सारा-सारा दिन हँसी-ठिठोली, वो मौज-मस्ती, वो धमा-चौकड़ी, वो हो-हल्ला... सच हमारे त्योहारों की बात ही अलग होती है... हमारी संस्कृति की यही चमक दमक... ये रौनक... बरसों से लोगों की इसकी ओर आकर्षित करती आयी है...
आजकल तो बाजारों की रौनक भी बस देखते ही बनती है... दुकानें तो लगता है जैसे आपको रिझाने के लिये ब्यूटी पार्लर से सज-धज के आयी हैं... इतनी भीड़ भाड़ के बीच तो लगता है ये महंगाई का रोना जो रोज़ न्यूज़ चैनल्स और अखबारों की सुर्खियाँ में रहता है मात्र दिखावा है... अगर महंगाई सच में बढ़ी है, तो खरीदारों की ये भीड़ क्यूँ और कैसे... सच तो ये है की महंगाई और व्यावसायिकता तो बढ़ी ही है साथ ही साथ लोगों की "बाईंग कपैसिटी" भी बढ़ी है... और दिखावा भी, नहीं थोड़ा सोफिस्टीकेटेड तरीके से कहें तो सो कॉल्ड "सोशल स्टेटस" मेन्टेन करने की चाह भी...
बिना सोचे समझे हम त्यौहार के नाम पर नये कपड़ों, मिठाई और पटाखों पर हज़ारों रूपये मिनटों में फूँक देते हैं... उस पर ये दलील की फिर कमाते किस लिये हैं ? ... त्योहारों पर ख़ुशी मानना बिलकुल भी ग़लत नहीं है पर बेवजह सिर्फ़ दिखावे के लिये इतने पैसे ख़र्च करना कहाँ तक सही है ? ... और अगर ख़र्च ही करने हैं तो आइये इस साल कुछ नया कर के देखें ? आइये इस दिवाली किसी की ज़िन्दगी में उजाला करते हैं... किसी महरूम का सहारा बन के देखते हैं... किसी के होंठों पर एक मुस्कान खिला के देखते हैं... किसी के सपनों में रंग भर के देखते हैं... उस ख़ुशी को महसूस कर के देखते हैं जो खोखली नहीं होती...
ये हज़ारों रुपये जो हम बस यूँ ही फूँक देते हैं, किसी बच्चे की एक साल की फीस हो सकती है, किसी के पढ़ने की किताबें हो सकती हैं, किसी की स्कूल यूनिफ़ॉर्म हो सकती है, वो बच्चे जो बड़े होकर कुछ बनना चाहते हैं पढ़ लिख कर... वो बच्चे जो पढ़ना तो चाहते हैं पर उनके पास इतने पैसे नहीं हैं की अपने इस सपने में रंग भर सकें... हमारी एक छोटी सी मदद उनके सपनों के साकार होने का एक ज़रिया हो सकती है... वैसे भी मदद कभी छोटी बड़ी नहीं होती... सागर की हर बूँद उतनी ही अनमोल होती है... किसी की ज़िन्दगी में एक पल की ख़ुशी भी ला पायें हम तो शायद ज़िन्दगी सार्थक हो जाये...
अपने लिये और अपनों के लिये तो सभी करते हैं पर उनके लिये करना जिन्हें आप जानते तक नहीं और जिनसे इंसानियत के सिवा आपका और कोई रिश्ता नहीं, बड़ी ही अनोखी ख़ुशी दे जाता है... कभी महसूस करी है आपने ? ऐसी ही एक संस्था है "स्माइल इंडिया फाउंडेशन" जो ऐसे बेसहारा और महरूम बच्चों के लिये काम करती है... उनकी शिक्षा और स्वास्थ का ध्यान रखती है... शायद आपको याद हो पिछले साल स्माइल इंडिया फाउंडेशन ने एन.डी.टी.वी. के साथ मिल के "छूने दो आसमां" नाम से एक पहल करी थी, ऐसे ही बच्चों की शिक्षा के लिये... उनका वो प्रयास दिल को छू गया और हम भी उस मुहिम का छोटा सा हिस्सा बन गये... चाहें तो आप भी अपना सहयोग दे सकते हैं... सोचिये अगर हम सब अपनी तरफ़ से थोड़ा थोड़ा सा भी सहयोग दे दें तो कितने बच्चों का भविष्य बन सकता है... तो क्या इस दिवाली आप कुछ नया करना चाहेंगे ?
आओ कुछ नया करें...
अमावास की
स्याह रात के आँचल में
विश्वास का
चमकीला चाँद उगायें
नैराश्य को दूर कर
आशाओं की रंगोली सजायें
आकांक्षाओं के बंदनवार को
भरोसे के धागे से बाँध
प्यार की गाँठ लगायें
कुछ सूनी आँखों में
विश्वास की लौ जलायें
कुछ डगमगाते क़दमों को
सहारा दे के गिरने से बचायें
घी की जगह
उम्मीद के दिये जलायें
कुछ उदास होंठों पे
फिर से मुस्कान खिलायें
रोते हुए बच्चों को हँसाएँ
बूढ़ी आँखों की रौशनी बन जाएँ
मिल के साथ फिर से हँसे खिलखिलाएँ
उनके बोझल जहाँ को फिर से जगमगायें
इस दिवाली
आओ कुछ नया करें !!!
-- ऋचा
वाकई किसी चेहरे पर मुस्कान बिखेरने से नेक काम इस दुनिया में कोई और नहीं हो सकता..निदा फाज़ली साहब ने फरमाया है.. घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो यूं कर ले, किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाए...
ReplyDeleteहम भी आपके साथ हैं...
हैपी ब्लॉगिंग
@ आशीष जी... हमारे पसंदीदा शेर और आपके साथ दोनों का ही शुक्रिया !!!
ReplyDeleteएक बात और कहना चाहूँगी यहाँ... हालाँकि हमें पसंद नहीं है सफ़ाई देना... आदत भी नहीं है... फिर भी एक बात यहाँ ज़रूर स्पष्ट करना चाहूँगी... शायद कुछ लोगों को ये लेख बेवजह की भाषणबाजी लग सकता है... वाह-वाही लूटने का ज़रिया लग सकता है... पर ये दोनों ही मंशा नहीं हैं हमारी... बाक़ी हर किसी की अपनी सोच और हर किसी को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता... हम सब एक स्वतंत्र देश के वासी हैं :)
ReplyDeleteआप सभी को दिवाली की अग्रिम बधाईयाँ... शुभ दीपावली !!!
घी की जगह
ReplyDeleteउम्मीद के दिये जलायें
कुछ उदास होंठों पे
फिर से मुस्कान खिलायें ....
सच में सच्ची दीपावली तो इसी में है .... बहुत खूब कहा है आपने ....
आपको और आपके परिवार को दीपावली की शुभकामनाएं ....
बहुत खूब कहा है आपने ....
ReplyDeleteआपको और आपके परिवार को दीपावली की शुभकामनाएं ....
अजी टोटल बदल गयी है दीपावली
ReplyDeleteदीपावली [दीपों की पंक्ति ] की जगह इलेक्ट्रोनिक लाइट्स होती हैं
बताशों की जगह महँगी मिठाइयां होती है
शाकाहारी प्रसाद के ऊपर मांसाहारी [माना जाने वाला ] चांदी का वर्क होता है
और क्या रह गया ....
अरे हाँ सात्विक प्रकाश की जगह तामसिक शोर होता है
खैर आपको दीपावली ढेर सारी सात्विक शुभकामनाएं
ये दो लेख अवश्य पढ़ें
http://rashmiravija.blogspot.com/2010/11/blog-post.html
http://my2010ideas.blogspot.com/2010/11/blog-post_02.html
सच में एक दीप जलायें।
ReplyDeleteघी की जगह
ReplyDeleteउम्मीद के दिये जलायें
कुछ उदास होंठों पे
फिर से मुस्कान खिलायें
रोते हुए बच्चों को हँसाएँ
बूढ़ी आँखों की रौशनी बन जाएँ
मिल के साथ फिर से हँसे खिलखिलाएँ
उनके बोझल जहाँ को फिर से जगमगायें
ameen
कुछ सूनी आंखों में
ReplyDeleteविश्वास के दीप जलाएं
प्रेरक कविता...बहुत सुंदर...
आपको एवं आपके परिवार को दीपावली की शुभकामनाएं।
आशा का दीप जलाये ...
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मेरा पोर्ट्रेट ......My portrait
बढ़िया...
ReplyDeleteसुख औ’ समृद्धि आपके अंगना झिलमिलाएँ,
दीपक अमन के चारों दिशाओं में जगमगाएँ
खुशियाँ आपके द्वार पर आकर खुशी मनाएँ..
दीपावली पर्व की आपको ढेरों मंगलकामनाएँ!
-समीर लाल 'समीर'