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एक सनसेट है, पके फल की तरह
पिलपिला रिसता, रसीला सूरज
चुसकियाँ लेता हूँ हर शाम लबों पे रखकर
तुबके गिरते हैं मेरे कपड़ों पे आ कर उसके
एक इमली के घने पेड़ के नीचे
स्कूल से भागा हुआ बोर-सा बच्चा
जिस को टीचर नहीं अच्छे लगते
इक गिलहरी को पकड़ के
अपनी तस्वीरें किताबों की दिखा कर खुश है
मेरे कैन्वस ही के ऊपर से गुज़रती है सड़क इक
एक पहिया भी नज़र आता है टाँगे का मुझे
कटकटाता हुआ एक सिरा चाबुक का
घोड़े की नालों से उड़ती हुई चिनगारियों से
सादा कैन्वस पे कई नुक्ते बिखरते हैं धुएँ के।
कोढ़ की मारी हुई बुढ़िया है इक गिरजे के बाहर
भीख का प्याला सजाए हुए, गल्ले की तरह,
माँगती रहती है ख़ैरात 'खुदा नाम' पे सब से।
जब दुआ होती है गिरजे में तो बाहर आकर
बैठ जाता है खुदा गल्ले पे, ये कहते हुए
आज कल मंदा है, इस नाम की बिक्री कम है।
'क़ादियाँ' कस्बे की पत्थर से बनी गलियों में
दुल्हनें 'अलते' लगे पाँव से जब
काले पत्थर पे क़दम रखती हुई चलती हैं
हर क़दम आग के गुल बूटे से बन जाते हैं!
देर तक चौखटों पे बैठे, कुँवारे लड़के
सेंकते रहते हैं आँखों के पपोटे उनसे।
नीम का पेड़ है इक-
नीम के नीचे कुआँ है।
डोल टकराता हुआ उठता है जब गहरे कुएँ से
तो बुजुर्गों की तरह गहरा कुआँ बोलता है
ऊँ छपक छपक अनलहक़
ऊँ छपक छपक अनलहक।
-- गुलज़ार
( ४ मई २००९ )
( Painting by : Belgian Linen )
itni achchi nazam se roobaroo karne ka shukriya ... waise aapne nazam se pahle jo chand linein likhi hain vo hamare dil ko cho gai bahut behtreen likha hai .... badhi ho
ReplyDeleteword varification ka option hata deejiye comment karne mein aasani hogi vaise aap ki marzi
ReplyDeletenazm aapko pasand aayi is baat ki khushi hai humen aur humari likhi lines bhi pasand aayin ye jaan kar bhi achchha laga... tareef ka shukriya... aur word verification hata diya hai, ummeed hai ab comment karne me dikkat nahi hogi :-)
ReplyDeleteSabse pahle to bahut- bahut shukriya!Gulzaar Saa'b ke taza - tareen nazm se hamhe rubaroo karane ke liye. 4th Para bahut hi marmik hai kai bhaav aur khyaal dil mein umad padte hain ek saath...bilkul Gulzaar Saa'b ke canvas ki tarah
ReplyDeleteबहुत ही चुनिन्दा और ख़ूबसूरत सी रचना प्रस्तुत कर दी.........
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