kuchh dino pehle gulzar sa'ab ki ek bahot hi khoobsoorat nazm padhi jo unhone abhi haal hi me likhi hai... bahot hi khoobsoorti se unhone jeevan ke tamaam rangon ko apne nazm roopi canvas pe utaara hai... isme jeevan ka har rang hai prakriti ka adbhut saundarya hai, baalman ki nishchhalta hai, ek boodhi bhikhaarin ki bebasi hai aur ek nayi naveli dulhan ki alhadta bhi hai... padhte padhte nazm ke ye tamaam rang aapke chehre par bhi ubhar aate hain... kabhi aapke honthon pe ek meethi si muskan chhod jaate hain to kabhi dil me ek tees si uthti hai... aap bhi padhiye aur jeevan ke in tamaam rango me saraabor ho jaaiye...
एक सनसेट है, पके फल की तरह
पिलपिला रिसता, रसीला सूरज
चुसकियाँ लेता हूँ हर शाम लबों पे रखकर
तुबके गिरते हैं मेरे कपड़ों पे आ कर उसके
एक इमली के घने पेड़ के नीचे
स्कूल से भागा हुआ बोर-सा बच्चा
जिस को टीचर नहीं अच्छे लगते
इक गिलहरी को पकड़ के
अपनी तस्वीरें किताबों की दिखा कर खुश है
मेरे कैन्वस ही के ऊपर से गुज़रती है सड़क इक
एक पहिया भी नज़र आता है टाँगे का मुझे
कटकटाता हुआ एक सिरा चाबुक का
घोड़े की नालों से उड़ती हुई चिनगारियों से
सादा कैन्वस पे कई नुक्ते बिखरते हैं धुएँ के।
कोढ़ की मारी हुई बुढ़िया है इक गिरजे के बाहर
भीख का प्याला सजाए हुए, गल्ले की तरह,
माँगती रहती है ख़ैरात 'खुदा नाम' पे सब से।
जब दुआ होती है गिरजे में तो बाहर आकर
बैठ जाता है खुदा गल्ले पे, ये कहते हुए
आज कल मंदा है, इस नाम की बिक्री कम है।
'क़ादियाँ' कस्बे की पत्थर से बनी गलियों में
दुल्हनें 'अलते' लगे पाँव से जब
काले पत्थर पे क़दम रखती हुई चलती हैं
हर क़दम आग के गुल बूटे से बन जाते हैं!
देर तक चौखटों पे बैठे, कुँवारे लड़के
सेंकते रहते हैं आँखों के पपोटे उनसे।
नीम का पेड़ है इक-
नीम के नीचे कुआँ है।
डोल टकराता हुआ उठता है जब गहरे कुएँ से
तो बुजुर्गों की तरह गहरा कुआँ बोलता है
ऊँ छपक छपक अनलहक़
ऊँ छपक छपक अनलहक।
-- गुलज़ार
( ४ मई २००९ )
( Painting by : Belgian Linen )