Friday, June 2, 2017

केरल डायरीज़ - ५ : पानियों पे बहती ज़िन्दगी...



१ फरवरी २०१७

मुन्नार की ख़ुमारी अभी उतरी भी नहीं थी कि आज एक और सफ़र पर निकलना था... आज का दिन थोड़ा लंबा होने वाला था... कोच्ची से तकरीबन २२० किलोमीटर का सफ़र तय कर के आज हमें कोवलम पहुँचना था... इस ट्रिप पर मुन्नार के बाद अगर किसी डेस्टिनेशन के लिए हम बहुत ज़्यादा एक्साइटेड थे तो वो था कोवलम और अल्लेप्पी... अल्लेप्पी के बैक वाटर्स के बारे में बहुत कुछ सुन और देख रखा था टीवी और मैगज़ीन्स में... कोच्ची से ये अल्लेप्पी कोई ५५ किलोमीटर की दूरी पर है कोवलम जाने वाले रास्ते में ही... शेड्यूल बहुत टाइट होने की वजह से वहाँ रात रुकना तो मुमकिन नहीं था पर यहाँ तक आ कर अल्लेप्पी जाना तो था ही.. सो रास्ते में २ घंटे का हॉल्ट ले कर बैक वाटर्स का मज़ा लिया जाना तय हुआ... ये जानने-समझने के लिये की आख़िर क्यूँ अल्लेप्पी को "वेनिस ऑफ़ दा ईस्ट" कहते हैं... 

यूँ तो केरल में बैकवाटर्स का तकरीबन ९०० किलोमीटर लंबा नेटवर्क है जो लगभग केरल की आधी लम्बाई के बराबर है... ये बैकवाटर्स असंख्य झील, तालाब, नदी, नहर और खाड़ियों की परस्पर जुड़ी हुई एक लंबी चौड़ी पानी की भूल भुलैया जैसे हैं... जो दरअसल अरब महासागर की तेज़ लहरों द्वारा पैदा किये करंट की देन हैं... ये करंट साग़र की ओर बह कर आ रही नदियों और पानी के अन्य स्रोतों की राह में एक तरह का व्यवधान डालता है और उन्हें पीछे ज़मीन की ओर धकेलता है जिससे ये बैकवाटर्स बनते हैं... 

इन ख़ूबसूरत बैकवाटर्स को एक्स्प्लोर करने का एक ही तरीका है... किसी हाउस बोट में बैठ कर पानी के दोनों किनारों पर लगे असंख्य नारियल के पेड़ों को देखते हुए प्रकृति में बस खो जाइये और उस प्रकृति का हिस्सा हो जाइये... ऐसे ही एक हॉउस बोट पर बैठ कर हम भी कुछ देर उस ख़ूबसूरती का हिस्सा हो गये... केरल की जो छवि न जाने कब से मन में बसी हुई थी वो आज हमसे रु-ब-रु थी... मीलों तक पानी ही पानी... पानी के दोनों किनारों पर लगे नारियल के पेड़... जो झुक कर पानी को चूमते हुए से प्रतीत होते हैं... पानी पे तैरती हाउस बोट्स... मछली पकड़ते मछुआरे... नाव पर ढेर सारे नारियल इकठ्ठा करते नाविक... किनारों पर बने छोटे छोटे घर... तकरीबन हर घर में ही नारियल के अलावा आम, केला, कटहल और लाल लाल फूलों से लदे गुड़हल के पेड़... घरों के आगे बंधी नाव और पीछे धान के हरे भरे खेत... सब कुछ कितना सौम्य, कितना शांत...



पानी के साथ साथ समय भी मानो थम सा गया था यहाँ... कुछ था जो शहर की भाग दौड़ से परे समय को थामे हुए था यहाँ... पानी के किनारे बसे लोग इस जीवन के अभ्यस्त हो चुके थे... ये पानी उनकी लाइफलाइन था... कोई घर से निकल कर चार जीने उतर कर इसी पानी में कपड़े धो रहा था और कोई बर्तन... तो कोई बस पानी के किनारे बने लकड़ी के छज्जों में बैठा बातें कर रहा था... किनारे बसे कई घरों में छोटे छोटे ढाबे नुमा रेस्टोरेंट खुले थे, जहाँ घर की महिलायें ही खाना बना रही थीं और पुरुष खाना परोस रहे थे... यही इनकी आजीविका का साधन है... यहाँ टूरिस्ट्स ख़ास तौर पर विदेशी सैलानी बड़े चाव से केले के पत्तों पर परोसा हुआ खाना खाते हैं... इसके अलावा मछली पकड़ना और नारियल पानी बेचना भी इनके जीवन यापन का साधन है... ये लोग इतने में ही संतुष्ट रहते हैं... यहाँ की महिलायें बहुत मेहनती हैं... पुरुषों के साथ साथ महिलायें भी बहुत अच्छे से नाव चला रही थी... हालांकि उनके लिए ये रोज़ मर्रा का काम था क्यूंकि कहीं भी जाने के लिये उनके पास यही एक रास्ता था पानी का और यही एक साधन यानी की नाव... पर यूँ इतने अच्छे से तैयार हो कर, सुन्दर सी साड़ी पहने, बालों में गजरा लगाये, नाव खेती महिलायें पहली बार देखी थी हमने सो थोड़ा विस्मित थे और थोड़ा अभिभूत...





पानी पर यूँ तैरते बहते समय कैसे तेज़ी से बीता पता ही नहीं चला... २ बजने को आया था... अभी कोवलम तक का सफ़र बहुत लंबा था सो ज़्यादा देर नहीं करते हुए हमने आगे का सफ़र जारी रखा... कोवलम पहुँचते तक शाम हो चुकी थी... सनसेट देख पाने की उम्मीद ख़त्म हो चुकी थी... रिसोर्ट में चेक इन कर के रूम में पहुँचते तक बिलकुल अँधेरा हो गया था... अब कमरे की बालकनी में खड़े हो कर सिर्फ़ लहरों का शोर सुना जा सकता था... उन्हें देखने और उनसे खेलने के लिए सुबह तक का इतज़ार और सही...!


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