१ फरवरी २०१७
मुन्नार की ख़ुमारी अभी उतरी भी नहीं थी कि आज एक और सफ़र पर निकलना था... आज का दिन थोड़ा लंबा होने वाला था... कोच्ची से तकरीबन २२० किलोमीटर का सफ़र तय कर के आज हमें कोवलम पहुँचना था... इस ट्रिप पर मुन्नार के बाद अगर किसी डेस्टिनेशन के लिए हम बहुत ज़्यादा एक्साइटेड थे तो वो था कोवलम और अल्लेप्पी... अल्लेप्पी के बैक वाटर्स के बारे में बहुत कुछ सुन और देख रखा था टीवी और मैगज़ीन्स में... कोच्ची से ये अल्लेप्पी कोई ५५ किलोमीटर की दूरी पर है कोवलम जाने वाले रास्ते में ही... शेड्यूल बहुत टाइट होने की वजह से वहाँ रात रुकना तो मुमकिन नहीं था पर यहाँ तक आ कर अल्लेप्पी जाना तो था ही.. सो रास्ते में २ घंटे का हॉल्ट ले कर बैक वाटर्स का मज़ा लिया जाना तय हुआ... ये जानने-समझने के लिये की आख़िर क्यूँ अल्लेप्पी को "वेनिस ऑफ़ दा ईस्ट" कहते हैं...
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इन ख़ूबसूरत बैकवाटर्स को एक्स्प्लोर करने का एक ही तरीका है... किसी हाउस बोट में बैठ कर पानी के दोनों किनारों पर लगे असंख्य नारियल के पेड़ों को देखते हुए प्रकृति में बस खो जाइये और उस प्रकृति का हिस्सा हो जाइये... ऐसे ही एक हॉउस बोट पर बैठ कर हम भी कुछ देर उस ख़ूबसूरती का हिस्सा हो गये... केरल की जो छवि न जाने कब से मन में बसी हुई थी वो आज हमसे रु-ब-रु थी... मीलों तक पानी ही पानी... पानी के दोनों किनारों पर लगे नारियल के पेड़... जो झुक कर पानी को चूमते हुए से प्रतीत होते हैं... पानी पे तैरती हाउस बोट्स... मछली पकड़ते मछुआरे... नाव पर ढेर सारे नारियल इकठ्ठा करते नाविक... किनारों पर बने छोटे छोटे घर... तकरीबन हर घर में ही नारियल के अलावा आम, केला, कटहल और लाल लाल फूलों से लदे गुड़हल के पेड़... घरों के आगे बंधी नाव और पीछे धान के हरे भरे खेत... सब कुछ कितना सौम्य, कितना शांत...
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पानी पर यूँ तैरते बहते समय कैसे तेज़ी से बीता पता ही नहीं चला... २ बजने को आया था... अभी कोवलम तक का सफ़र बहुत लंबा था सो ज़्यादा देर नहीं करते हुए हमने आगे का सफ़र जारी रखा... कोवलम पहुँचते तक शाम हो चुकी थी... सनसेट देख पाने की उम्मीद ख़त्म हो चुकी थी... रिसोर्ट में चेक इन कर के रूम में पहुँचते तक बिलकुल अँधेरा हो गया था... अब कमरे की बालकनी में खड़े हो कर सिर्फ़ लहरों का शोर सुना जा सकता था... उन्हें देखने और उनसे खेलने के लिए सुबह तक का इतज़ार और सही...!
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