Wednesday, December 18, 2013

तेरा नाम इश्क़ मेरा नाम इश्क़ !


तुम्हारी हँसी की आवाज़ आज बहुत देर तलक कानों में गूँजती रही...

जानते हो आज कितने दिनों बाद तुम इतना खुल के हँसे हो... वो बच्चों सी उन्मुक्त हँसी... ख़ुशी से गीली हो आयी पलकों से पोंछ के काजल... जी किया कि तुम्हारी हँसी को काला टीका लगा दूँ... या फ़ेंक के कोई जाल क़ैद कर लूँ इस लम्हें को... तुम्हारी हँसी से गूँजता खिलखिलाता ये लम्हा...

रोज़ हँस दिया करो ना ऐसी हँसी एक बार... भले मेरा मज़ाक बना कर ही सही... दिन बन जाता है मेरा...!


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एक हूक सी उठती है कई दफ़े दिल में... कि तुम्हारा हाथ थाम के और तुम्हारे काँधे पे सर रख के बस बैठी रहूँ कुछ देर... बिन कुछ बोले... तुम्हारा लम्स महसूस करूँ अपनी हथेली में... कि तुम्हारे हाथों की गर्मी मन को बहुत ठंडक पहुँचाती है... जैसे कोई अनदेखी ऊर्जा तुम्हारी हथेलियों से होके मेरे मन तक पहुँच रही हो... ज़िन्दगी की ऊर्जा... तुम से मुझ तक बहती हुई... सारी थकन सारी उदासी चंद पलों ही में कहीं ग़ुम हो जाती है...

टच थेरेपी और क्वांटम टच के बारे में सुना है कभी तुमने... कभी सोचा कैसे एक रोता हुआ बच्चा माँ की गोद में आते ही चुप हो जाता है... आप कितनी भी असफ़ल कोशिश कर चुकें हों उसे चुप करने की पर कैसे माँ के सहलाते ही बच्चे का सुबकना बंद हो जाता है... स्पर्श का ये कैसा बेआवाज़ रिश्ता होता है माँ और बच्चे के बीच...

तुम मेरे लिए माँ का वही स्पर्श हो... !

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चाय - कॉफ़ी पीने का मुझे कभी भी बहुत शौक़ नहीं रहा...मेरे लिए वो सिर्फ़ तुम्हारे साथ समय बिताने का बहाना मात्र हुआ करती थीं...वो लॉन्ग ड्राइव्स... वो बेवजह की बातें... वो बेवजह के किस्से कहानियाँ... वो बेवजह के झगड़े... सब...

जानती हूँ बहुत कीमती है तुम्हारा समय... और मेरे पास बेवजह की बातें बहुत सी... फिर भी मेरे सारे प्यार के बदले क्या एक दिन उधार दे सकते हो मुझे ? सिर्फ़ चौबीस घंटे...

बहुत समय हो गया ज़िन्दगी जिये... बड़ी सारी बेवजह की बातें भी इकट्ठी हो गयी हैं...!


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कभी किसी को एक ही सी इंटेंसिटी से पसंद और नापसंद किया है ? नहीं ? मतलब कभी किसी से प्यार नहीं किया आपने... किसी से प्यार कर के देखिये हुज़ूर... सच्चा प्यार... उसकी अच्छाइयों पे जितना प्यार आएगा उसकी बुराइयों से आप उतनी ही नफ़रत करेंगे... प्यार जितना सच्चा होगा नफ़रत उतनी ही तीव्र...

अजीब रिश्ता था उन दोनों का... पल में तोला पल में माशा जैसा... एक पल एक दूसरे पे इतना प्यार बरसाते मानो इस धरती पर प्यार की नीव उन्हीं ने डाली हो और दूसरे ही पल ऐसे पागलों के जैसे लड़ते गोया इस धरती से प्यार का अंत भी उन्हीं के हाथों लिखा हो... शब्दों के तीर से कभी ज़ख्म देते तो कभी उन्हीं ज़ख्मों पर शहद जैसे शब्दों से मरहम लगते... दर्द भी ख़ुद ही, ख़ुद ही दवा भी... जाने किस दुनिया के बंदे थे...

हमारा रिश्ता भी तो कुछ ऐसा ही अजीब है ना जान... इंटेंस... इन्सेशियेबल... इनसेन...!





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