Thursday, May 30, 2013

मिलेगी छाँव तो बस कहीं धूप में मिलेगी...!


एक दोस्त हमेशा कहता है, शायद मज़ाक में... सच बोलते हुए इंसान बहुत ख़ूबसूरत हो जाता है... पर महसूस करो तो उसकी बात सौ फ़ीसदी सही है... सच बोलते हुए या सच स्वीकारते हुए आप हमेशा ख़ूबसूरत महसूस करते हैं ख़ुद को... एक आभा आ जाती है चेहरे पर... शायद मन का सुकूं चेहरे पे झलक आता होगा... आज बहुत समय बाद अच्छा सा महसूस हो रहा है... ख़ुद से सच बोल के... मन बहुत हल्का सा लग रहा है...

हम अक्सर अपने रिश्तों को मुट्ठी में कस के पकड़ने की कोशिश करते हैं... भूल जाते हैं रिश्ते बहता पानी होते हैं... जितनी कस के पकड़ने की कोशिश करेंगे वो उतनी ही तेज़ी से हमारी मुट्ठी से बह जायेगा... छोड़ जायेगा बस बीते लम्हों की कसक लिए एक नम सी हथेली.. और आज़ाद छोड़ दो तो चाहे कितनी भी रुकावटें हो रास्ते में वो अपनी राह तलाशते हुए... अपनी जगह बनाते हुए... अविरल बहता हुआ आ मिलेगा अपनी बिछड़ी धारा से...

जैसे एक फूल को सिर्फ़ छाया में रख के खिला नहीं सकते आप... उसे अपने हिस्से की धूप भी ज़रूर चाहिए होती है... ठीक उसी तरह एक रिश्ते को भी हर वक़्त आप ज़िन्दगी और परिस्थितियों की धूप से बचाए नहीं रख सकते... उसे इस धूप में जलना होता है और इसमें तप के ही कुंदन बनना होता है... बहुत ज़्यादा पानी और छाया में पेड़ की जड़ें गल जाती हैं.. पेड़ पनप नहीं पाता... और बहुत ज़्यादा मीठे फल में कीड़े पड़ जाते हैं... कहने के मायने बस इतने की अति हर चीज़ की बुरी होती है.. भले ही वो अच्छी चीज़ हो या अच्छे के लिए हो...

पौ फूटने से पहले अँधेरा सबसे गहरा होता है... बेहद डरावना और उदास... ऐसी स्याह तारीकी जो सब कुछ ख़ुद में छुपा ले, जज़्ब कर ले... पर सूरज की पहली किरण जब उसे चीरती हुई धरती पे पड़ती है तो चिड़ियाँ  चहक उठती हैं... फूल खिल जाते हैं... धरती पर एक बार फिर जीवन शुरू हो जाता है...

अँधेरा छंट चुका है... दिन एक बार फिर निकल आया है... 

आज अपने रिश्ते को सारे बन्धनों से मुक्त कर दिया है मैंने... उसे खुली हवा में फिर से साँस लेने की आज़ादी दे दी है... उसे पनपने और मज़बूत होने की जगह दी है... बस अब इसे प्यार की हलकी बौछार से सींचना है... आस पास उग आये घास पतवार को हटाना है और उसे एक बार फिर से ख़ूबसूरत बनाना है...

बोलो दोगे मेरा साथ ?


मैं छाँव छाँव चला था अपना बदन बचा कर

कि रूह को एक ख़ूबसूरत सा जिस्म दे दूँ
न कोई सिलवट, न दाग़ कोई
न धूप झुलसे, न चोट खाये
न ज़ख़्म छुए, न दर्द पहुँचे
बस एक कोरी कुँवारी सुबह का जिस्म पहना दूँ रूह को मैं

मगर तपी जब दोपहर दर्दों की,
दर्द की धूप से जो गुज़रा
तो रूह को छाँव मिल गयी है

अजीब है दर्द और तस्कीं का साँझा रिश्ता
मिलेगी छाँव तो बस कहीं धूप में मिलेगी

-- गुलज़ार

Friday, May 10, 2013

रहें न रहें हम महका करेंगे...!



वो सारे ख़त जो कभी हमने एक दूजे को लिखे थे... वो सारी बेवजह की बातें... वो साथ बिताये अनगिनत पल... वो हँसी वो खिलखिलाहट जो अब तलक गूंजा करती है यादों की पिछली गलियों में... वो सारी शरारतें वो अटखेलियाँ... वो रूठना मनाना वो हँसना रुलाना.... हर वो लम्हा जो बीत कर भी नहीं बीता... ठहर गया है दिल की ज़मीं पर... तुम्हारी यादों के सुर्ख धागे में लिपटे बीते लम्हों के वो सारे सूखे फूल जिनकी ख़ुश्बू मन की जाने कितनी तहों के नीचे महफूज़ है... उन्हें बड़े प्यार से सहेजा है यहाँ.. हर एक पल हर एक लम्हां... यहाँ इस वर्चुअल दुनिया में...

हमारे ख़्वाबों की... हमारी ख्वाहिशों की दुनिया.. ये हमारी वर्चुअल दुनिया... जिसने हमारे बीच कभी भी दूरी को आने नहीं दिया... मीलों दूर होते हुए भी हम एक दूसरे से हमेशा जुड़े रहे... साथ रहे.. पास रहे... कितनी ख़ूबसूरत दुनिया है न ये... याद है तुम कभी कहा करते थे ये दुनिया उस दुनिया से बहुत ख़ूबसूरत है हमें कभी यहाँ से जाने को मत कहना... हम यही रहेंगे हमेशा.. बस हम और तुम...

कभी सोचा है जान कल जब हम न होंगे तो हमारे इस वर्चुअल वजूद का क्या होगा... क्या वो वर्चुअल दुनिया की ख़लाओं में अकेले यूँ ही भटकता फिरेगा...  मेरे बाद तुम मुझसे कैसे जुड़े रह पाओगे... क्या होगा उन सारे ख़तों जो मेरे ईमेल खाते में अब भी जमा हैं... पिकासा अकाउंट में इकट्ठी करी उन सारी तस्वीरों का... चैट हिस्ट्री में जमा तुम्हारी मेरी बातों का... मेरी उन सारी ब्लॉग पोस्ट्स का जो तुम्हारी थीं तुम्हारे लिए थीं... तुम्हारी याद कि उन सारी चमकती गिन्नियों का जो इस मेरे गूगल अकाउंट की गुल्लक में जमा हैं... मेरा ये सारा ख़ज़ाना क्या यूँ ही लावारिस सा पड़ा रह जाएगा...

नहीं जान.. इस ख़ज़ाने को यूँ ही गुम नहीं होने दे सकती मैं.. इसलिए लो आज ये सब तुम्हारे नाम करती हूँ... गूगल इनएक्टिव अकाउंट मेनेजर को बता दिया है मैंने कि मेरे बाद इस ख़ज़ाने की चाभी तुम्हें दे दे... सुनो, मेरे बाद इसे सम्भाल के रखना... मेरी ज़िन्दगी भर की जमा पूँजी है इसमें... मेरे वो सारे बचकाने ख्व़ाब... मेरी बे-सिर-पैर की ख़्वाहिशें... जिन्हें तुमने बड़े प्यार से पूरा किया हमेशा वो सब यहाँ जमा हैं... कल जब मैं नहीं होऊँगी तो भी इसके ज़रिये मैं हमेशा तुम्हारे साथ रहूँगी... तुम्हारा हमसाया बन के !

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