ख़ुश रहे या बहुत उदास रहे
ज़िन्दगी तेरे आस पास रहे
-- बशीर बद्र
जिसे भी देखिये वो हर वक़्त ख़ुशी को तलाशता रहता है... कोई भी कभी ख़ुश नहीं रहता... जो आज, अभी आपके पास है उसे छोड़ कर ना जाने क्या खोजते रहते हैं हम... आख़िर ये ख़ुशी है क्या ? कैसे मिलती है ? कहाँ मिलती है ? यूँ तो ये बड़े बेमानी से सवाल लग रहे होंगे... पर सोचा जाये तो काफी अहम सवाल हैं जो वाकई आपको सोचने पे मजबूर कर देते हैं... क्यूँ कोई भी ख़ुश नहीं है... शायद हमने ख़ुद ही ये उदासी का नक़ाब ओढ़ रखा है... बेवजह...
ख़ुशी की परिभाषा सबकी अपनी होती है, ख़ुशी का पैमाना सबका अपना होता है... किसी को रुपये पैसे से ख़ुशी मिलती है... तो किसी को पद-प्रतिष्ठा और औहदे से... किसी को अपना काम अच्छी तरह से पूरा कर लेने मात्र से ही ख़ुशी मिलती है... तो किसी को अपने दोस्तों के साथ समय बिता के... एक माँ को अपने बच्चों की अच्छे से देखभाल करने में ख़ुशी मिलती है... तो एक बच्चे को अपनी माँ से वो प्यार दुलार पा कर ख़ुशी मिलती है... एक स्त्री को अपने परिवार की सेवा कर के और एक पुरुष को अपने परिवार की ज़रूरतों का अच्छे से ख़याल रख के ख़ुशी मिलती है... एक अमीर इंसान एक दिन में हज़ारों रुपये खर्च कर के ख़ुश हो जाता है और एक रिक्शेवाला दिन में सौ रुपये कमा के ख़ुश हो जाता है...
देखा जाये तो ख़ुश होने के लिये या ख़ुश रहने के लिये बहुत कुछ नहीं चाहिये होता है... फिर भी कोई ख़ुश नहीं रहता... क्यूँकि हम उन छोटी छोटी ख़ुशी की तरफ कभी ध्यान ही नहीं देते... और किसी बड़ी ख़ुशी की तलाश में इन छोटी ख़ुशी का स्वाद भी नहीं चखते... शायद इंसान फितरत से ही लालची है... जो मिल रहा है उससे कभी संतुष्ट नहीं होता... उसे और ज़्यादा... और ज़्यादा... चाहिये होता है...
कभी किसी बच्चे के साथ बच्चा बन के देखिये... कभी किसी बुज़ुर्ग से बात कर के देखिये... ढेर सारे गैस वाले गुब्बारे लीजिये और उन्हें यूँ ही आसमान में उड़ा दीजिये... मौसम की पहली बारिश में भीग के देखिये... खुले आसमान के नीचे रात भर जाग कर तारों से बातें कर के देखिये... किसी रोते हुए को हँसा के देखिये... किसी उदास चेहरे पे एक मुस्कान खिला के देखिये... बहुत ख़ुशी मिलती है और ये ख़ुशी खोखली नहीं होती... एक सुकून होता है इन खुशियों में... एक संतुष्टि होती है... परितृप्ति होती है...
बेवजह उदास तो बहुत रह लिये, कभी बेवजह, यूँ ही ख़ुश हो के देखिये... ज़िन्दगी इतनी भी बुरी नहीं है...
ख़ुशी क्या होती है... किसे कहते हैं ?
किसी अपने के साथ बिताये
कुछ बेशकीमती पल
किसी को सोचने मात्र से ही
आपके होंठों पे खिल उठी मुस्कान
किसी के साथ मिल कर संजोये
कुछ रंगीन ख़ूबसूरत ख़्वाब
किसी को चंद ख़ुशियाँ देकर मिला
वो दिली सुकून
किसी के दिल में छोटी सी सही
पर एक पुख्ता जगह बनाना
किसी की ज़िन्दगी के लिए
ख़ास होने का एहसास
किसी को बिना किसी शर्त इतना प्यार देना
की ख़ुशी उसकी आवाज़ में झलके
किसी से बिना किसी शर्त इतना प्यार पाना
की ख़ुशी आपकी आँखों से छलके
बस इतना ही ना ??
ख़ुशियों की परिभाषा बस इतनी सी तो होती है...
हाँ...
मैं ख़ुश हूँ... बहुत ख़ुश !!!
-- ऋचा