Wednesday, February 24, 2010

इक रिश्ते का बीज...



रिश्ते... हमारी ज़िन्दगी की नीव... हमारे जीने का आधार...  हर व्यक्ति की ज़िन्दगी से बहुत से रिश्ते जुड़े होते हैं... कुछ जिनके नाम होते हैं और कुछ जो बस नाम के होते हैं और कुछ जिनका कोई नाम नहीं होता पर फिर भी बहुत ख़ास होते हैं... इंसान की ज़िन्दगी का सबसे पहला और सबसे ख़ूबसूरत रिश्ता जो उसे उसके जन्म से भी पहले मिल जाता है... माँ... इसके अलावा भाई, बहन, दोस्त, पति, पत्नी और तमाम सांसारिक और सामाजिक रिश्ते... कभी सोचा इंसान की ज़िन्दगी से अगर ये तमाम रिश्ते निकाल दिये जाएँ तो... क्या वो अकेला जी पायेगा ? क्या वो कभी ख़ुश रह पायेगा... क्या वो कभी पूर्ण हो पायेगा ? नहीं... क्यूँकि तब हम बिलकुल अकेले होंगे... ना हमारे पास कोई ख़ुशी बाटने वाला होगा ना ही कोई ग़म बाटने वाला... ये रिश्ते ही तो होते हैं जो हमारे अस्तित्व को पूर्ण करते हैं... हमें पूर्ण करते हैं... इनके बिना हम शायद ज़िन्दा तो रह जाएँ पर जी कभी नहीं पायेंगे... जैसे एक अकेला पौधा जो ज़िन्दा तो रहता है पर पनप नहीं पता...

हम अपनी पूरी ज़िन्दगी में ना जाने कितने ही लोगों से मिलते हैं, उनसे जान-पहचान होती है, पल दो पल साथ रहते हैं, बात करते हैं और बस भूल जाते हैं... क्यूँ हर किसी से हमारा रिश्ता नहीं बन जाता ? क्या फर्क होता है एक जान-पहचान में और एक रिश्ते में ? एक रिश्ते को बनाने के लिये आख़िर क्या चाहिये होता है ? सोचा जाये तो बहुत ज़्यादा नहीं... बस थोड़ा सा प्यार थोड़ा समर्पण, थोड़ा विश्वास थोड़ी ईमानदारी, थोड़ी समझदारी और थोड़ा सा समय... बस ! एक उम्र भर के रिश्ते के बदले बहुत ज़्यादा तो नहीं है शायद...

पर आजकल होता क्या है, ठीक इसका उल्टा... लोगों के पास ना तो समय है ना समझदारी, ना ही विश्वास और ना ईमानदारी... अब भला कोई रिश्ता बने भी तो कैसे और बन भी गया तो कितने दिन जियेगा पता नहीं... हर रिश्ते को एक बच्चे की तरह पालना पड़ता है... निस्वार्थ भाव से... ठीक वैसे ही जैसे एक माँ अपने बच्चे की देखभाल करती है पूरी निष्ठा से... हर रिश्ते का ख़याल रखना पड़ता है, देखभाल करनी पड़ती है... उसे प्यार से सींचना पड़ता है... और अगर आप ऐसा करने में सफल हो गये तो सच मानिये रिश्ते का वो छोटा सा पौधा कब एक बड़े मज़बूत पेड़ का आकर ले लेगा आपको पता भी नहीं चलेगा और उसकी जड़ें इतनी गहरी हो जायेंगी की ज़िन्दगी की कोई भी कठिनाई, कोई भी तूफ़ान उसे उखाड़ना तो दूर हिला तक नहीं पायेगा और उस रिश्ते की महक से आपकी पूरी ज़िन्दगी महकेगी...

इक रिश्ते का बीज बोया था मैंने
कुछ ही समय पहले
उसे प्यार से रोज़ सींचा
विश्वास की खाद भी डाली

कभी प्यार से सहला के उसकी कोपलों को
दो पल साथ बैठ कर बातें करीं
तो कभी उसके आस-पास उग आये
घास-फूस को साफ़ करा

जैसे जैसे पौधा बड़ा होता गया
कुछ लोगों ने नज़र भी लगाई
कहा कितना ख़ूबसूरत पौधा है
कहाँ से खरीदा... कितने का मिला
और मैं बस मुस्कुरा दी...

आज वो नन्हां पौधा
एक विशाल पेड़ का रूप ले चुका है
एक मज़बूत रिश्ता बन चुका है
बड़ा सुकून मिलता है उसकी छाओं में बैठ कर

उसके फूलों की खुशबू से अब
ये ज़िन्दगी महक उठी है
बड़े मीठे फल हैं उसके
कभी आना तुम्हें भी चखाऊँगी...

-- ऋचा
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