Monday, September 6, 2010

इमेजिज़


कितना कुछ चलता रहता है हमारे आस-पास... हर वक़्त... कितनी ही इमेजिज़ बदलती रहती हैं हर पल ज़िन्दगी के पन्नों पर... इक पल बेहद चमकीला... जैसे आफ़ताब उतार आया हो कहीं से... और इक पल थोड़ा मद्धम... जैसे मुश्किलों के बादलों ने चाँदनी को अपनी आग़ोश में ले लिया हो... पर कौन थाम पाया है वक़्त की नब्ज़... कौन रोक पाया है इन गुज़रते लम्हों को... अच्छे-बुरे... रौशन-मद्धम... जैसे भी हों... बीत ही जाते हैं... हम तो बस इनके साथ बहते रहते हैं... इनकी ही रौ में... उन्हें थामना हमारे बस में नहीं... बस देखते रहते हैं बीतते हुए... उन खुशियों को... उन ग़मों को... उन पलों को...

और जब थाम नहीं सकते उन्हें तो आइये जी ही लेते हैं... जी भर के... बह लेते हैं कुछ दूर उनके साथ... बिना किसी शिकायत... बिना किसी अफ़सोस... और "फ्रीज़" कर लेते हैं उन्हें यादों के सफ़्हों में... पेंट कर लेते हैं उन्हें ज़हन के कैन्वस पर... कल जब फ़ुर्सत के पलों में कभी यादों की गैलरी में एग्ज़ीबिशन लगायेंगे तो ये तमाम पल हमारी ज़िन्दगी के गवाह होंगे... उस सफ़र के गवाह होंगे जो हमने बस "यूँ ही" तय नहीं किया, तय करने के लिये... उस सफ़र का लुत्फ़ उठाया... उसे जिया... और संजोया... यादों में... हर पल...

ऐसे ही कुछ मुख्तलिफ़ से लम्हों की इमेजिज़ सजायीं हैं आज यहाँ... ज़िन्दगी की किताब से उतार कर ब्लॉग के सफ़्हे पर... उम्मीद है पसंद आयेंगे शब्दों में पिरोये ये चंद लम्हे...



कल ऑफिस से वापस आते वक़्त देखा था
सूरज ने नदी में कूद के ख़ुदकुशी कर ली
कुछ देर बाद वहीं से
इक सफ़ेद सा साया उभरा
ज़रूर उसका भूत होगा
लोग कहते हैं "चाँद" निकला है !!!

**********







अपने हाथों की लकीरों को देखती हूँ
और सोचती हूँ
जो तुम मिल नहीं सकते
तो तुम मिले ही क्यूँ
जो मिले हो तो फिर
मिलते क्यूँ नहीं....

**********










जवाब जानती हूँ
फिर भी ना जाने क्यूँ
कुछ सवाल हैं
जो तुमसे पूछने को जी चाहता है
जवाब की दरकार भी नहीं है
बस तुम्हारे चेहरे के बदलते रंगों
को पढ़ना चाहती हूँ...

**********









एक तन्हां सा सूरज कल शब
यूँ पेड़ पर ठुड्डी टिका के बैठा था
के जैसे एक शरारती बच्चा
माँ से डांट खा कर
आँखों में आँसू भरे
मुँह फुलाए बैठा हो...

**********










फैला के बाहों का दायरा
आग़ोश में लिया कुछ लम्हों को
और ओक में भर के कुछ पल
यूँ घूँट-घूँट ज़िन्दगी पी आज
कि आत्मा कुछ ऐसे तृप्त हुई
मानो अमृत चख लिया...

-- ऋचा

13 comments:

  1. बहुत खूब... पाँचों क्षणिकाएं बहुत शानदार हैं....

    हैपी ब्लॉगिंग

    ReplyDelete
  2. सबके सब दिल में उतरे हैं
    आज ऐसे, जैसे
    गुनगुनाये मनचली हवा
    संगीत बजाये फिज़ा

    ReplyDelete
  3. क्या बात है.. बदले बदले सरकार नज़र आते हैं..

    ReplyDelete
  4. सुपर्ब रचनाएं ... एक एक मोती जैसी शुद्ध और सौम्य .. अच्छा लगा पढ़ कर ... सच्ची ब्लोगिंग !!

    ReplyDelete
  5. चाँद, नदी और सूरज का नया सम्बन्ध।

    ReplyDelete
  6. सारी क्षणिकाएं बहुत खूबसूरत ...एक से बढ़ कर एक .

    ReplyDelete
  7. हर एक अश'आर तेरा खूबसूरत है रफ़ीक!!!
    के एक की तारीफ़ दूसरे की तौहीन होगी!!!
    आशीष
    --
    बैचलर पोहा!!!

    ReplyDelete
  8. जी इस सूरज से थोडा बच के रहिये.......ख़ुदकुशी का ड्रामा करता है, पसंद आपको करता है और मुलाकाते हमसे :-)
    अच्छा तो लकीरों की भाषा भी आती है आपको....सेकंड जॉब पक्का :-)
    इन सवालों से ही तो मात खाई है ....पूछ बैठते हैं कभी भी किसी से .......कौन कब नाराज़ हो जाए पता ही नहीं चलता....आदते भी अजीब होती हैं ....है ना ?
    ना जाने कितने लम्हे फ्रीज़ हैं और ना जाने कितने होने को

    क्या तारीफ करी है हमने ????????

    ReplyDelete
  9. जान ले लीजिए अब आप ;)

    ReplyDelete
  10. बहुत खूबसूरत शब्द और विचार हैं......

    ReplyDelete
  11. waqt ki katrane aur yah रचना वटवृक्ष के लिए भेजिए - परिचय और तस्वीर के साथ
    '
    rasprabha@gmail.com per

    ReplyDelete

दिल की गिरह खोल दो... चुप ना बैठो...

Related Posts with Thumbnails