अन्कन्डिशनल लव - बेशर्त प्यार... आज तक प्यार के बारे में जितना कुछ सुना, समझा, पढ़ा उससे हमेशा यही जाना कि प्यार में शर्तें नहीं होती और बिना किसी शर्त का प्यार ही सच्चा प्यार है, "ट्रू लव" ... क़िस्से, कहानियों और परीकथाओं जैसा... वो प्यार जो आजकल की दुनिया में मिलना नामुमकिन सी बात लगती है... पर असल में देखिये तो क्या प्यार वाकई ऐसा होता है ?
अच्छा एक बात बताइये... क्या हम इस बात का अनुमान पहले से लगा सकते हैं कि हमें प्यार होने वाला है ? क्या प्यार करने से पहले हम ये शर्त रख पाते हैं कि हमें कब, किससे, कहाँ और कैसे प्यार होगा ? क्या हम प्यार के होने ना होने को काबू में कर पायें हैं कभी ? नहीं ना ?
प्यार तो बस हो जाता है... बिना हमारे कुछ करे.. बिना हमारे कुछ सोचे...
तो फिर प्यार में ये शर्तें आती कब हैं ? और क्या वाकई ये शर्तें होती हैं... शायद नहीं... ये तो बस छोटी छोटी अपेक्षाएं होती हैं... उस इन्सान से जिसे हम दिल कि गहराइयों से प्यार करते हैं... आख़िर हम उनसे क्या चाहते हैं... कोई बड़ा ख़ज़ाना तो नहीं मांगते कभी... बस छोटी छोटी चंद अपेक्षाएं, इच्छाएं होती हैं उनसे और वो ही पूरी हो जाएँ तो हमें किसी बड़े ख़ज़ाने मिलने जैसी ख़ुशी दे जाती हैं... हम बस इतना ही तो चाहते हैं ना कि अगर हम उन्हें फ़ोन करें तो बदले में वो भी हमें कभी कॉल कर लें... हम उन्हें दस चिट्ठियाँ लिखें तो कम से कम वो भी एक चिट्ठी लिख दे हमें... हम उनका ख़्याल रखते हैं तो वो भी हमारा ख़्याल रखें... हम उनकी परवाह करते हैं और बदले में यही उम्मीद ख़ुद के लिये भी रखते हैं... हम प्यार देते हैं और चाहते हैं कि हमें भी वो प्यार मिले... तो इसमें ग़लत क्या है ?
झूठ बोलते हैं वो लोग जो कहते हैं उन्हें किसी से कोई अपेक्षा नहीं... या उन्होंने उम्मीदें रखना छोड़ दिया है... ये तो इन्सानी फ़ितरत है... हमारे स्वभाव का हिस्सा है... ये भला कैसे बदल सकता है... हम जैसा महसूस करते हैं उसे झुठला तो नहीं सकते... ना ही अपनी संवेदनाओं को दबा सकते हैं... हम किसी से प्यार पाना तो चाह सकते हैं पर प्यार ना पाना भला कैसे चाह सकते हैं...
अन्कन्डिशनल लव का मतलब ये नहीं होता कि हम जिसे प्यार करें उससे बदले में प्यार ना चाहें या जिसका ख़्याल रखें, परवाह करें, जिसकी कद्र करें उससे बदले में उस सब की उम्मीद ना रखें... क्यूँकि ऐसा करना हमारे बस में नहीं है... अन्कन्डिशनल लव बिना शर्तों का प्यार नहीं होता, क्यूँकि हम कोई भगवान नहीं हैं, हम सब आम इन्सान हैं और हम अपनी भावनाओं और उम्मीदों को नियंत्रित नहीं सकते... उम्मीद कि लौ तो हम तब भी जलाए रखते हैं, हम तब भी ये चाहते हैं कि सब ठीक हो जाये जब हमें ये पता होता है कि वास्तव में कुछ भी ठीक होने वाला नहीं है...
अन्कन्डिशनल लव का मतलब दरअसल ये तमाम उम्मीद और अपेक्षाएं रखने के बावजूद उनके साथ समझौता करना होता है, उनके साथ सामंजस्य बनाना होता है... उस इन्सान के लिये... जिसे हम प्यार करते हैं...
अन्कन्डिशनल लव अपेक्षाएं रखने के साथ साथ ये स्वीकार करना भी होता है कि ज़रूरी नहीं वो सारी अपेक्षाएं पूरी हों... पूरी होती हैं तो उससे अच्छा कुछ भी नहीं पर अगर पूरी नहीं होतीं तो भी बुरा मत मानिये... क्यूँकि अंत में हमारे लिये इन अपेक्षाओं के पूरा होने से ज़्यादा उस इन्सान से प्यार करना मायने रखता है... और अगर आप किस्मतवाले हैं तो आपको भी बदले में वो प्यार ज़रूर मिलता है...
शायद उस तरह से नहीं जिस तरह से आप चाहते थे पर हाँ जिस भी तरह से वो इन्सान आपको प्यार दे सकता है, पूरे दिल से...
और फिर आप प्यार करते हैं - सिर्फ़ प्यार - बिना शर्तों का - अन्कन्डिशनल लव !
[ ऐसा ही एक आर्टिकल हाल ही में एक इंग्लिश मैग्ज़ीन में पढ़ा था... उसे ही अपने शब्दों में पेश करने कि एक छोटी सी कोशिश है बस... ]
मैं
दिये की लौ सी जलती रहूँगी
निरंतर
तुम्हारे लिये
बिना किसी चाह
अपने प्यार से सदा
रौशन करती रहूँगी
ज़िन्दगी तुम्हारी
तुम बस इतना करना
जब मद्धम पड़ने लगे कभी
रौशनी मेरी
या बुझने लगूँ मैं
तो थाम लेना मेरी लौ हाथों के घेरे से
और अपने प्यार का घी डाल देना
थोड़ा सा
और मैं फिर जल उठूँगी
एक बार फिर रौशन करने
ज़िन्दगी तुम्हारी
और जलती रहूँगी
निरंतर
यूँ ही
तुम्हारे लिये...
-- ऋचा
जाने क्यूँ आज ये गाना बड़ी शिद्दत के साथ याद आ रहा है... सोचा आप लोगों को भी सुनवा दूँ... कैनेडियन सिंगर शनाया ट्वेन का गाया हुआ - "यू आर स्टिल द वन"...
nice
ReplyDeletebade dino baad aapki post nazar aayee.. humesha ki tarah bahut khoobsoorat likha hai
Happy Blogging
बहुत उम्दा आलेख …………प्यार तो होता ही बिना शर्तों के है और जहां शर्त आ जाये वहां प्यार कभी हो ही नही सकता वो तो व्यापार बन जायेगा।
ReplyDeleteप्यार - शर्त नहीं , एक चाह तो है ही
ReplyDeleteTrue ......achaa laga padhna ...or last ki najm behad khoobsoorat hai :) keep going :)
ReplyDeleteAalekh to achha haihee...rachana behad khoobsoorat hai!
ReplyDeleteप्रेम असाधारण होता है।
ReplyDelete"प्यार..बेशर्त..बस और कुछ नहीं.."
ReplyDeleteलेकिन कुछ लोग शर्तों ले साथ ही
प्यार करते हैं...और "खुद" के लिए तो बेशर्त प्यार चाहते हैं
लेकिन दूसरों से अपेक्षाएं बड़ी बड़ी रखते हैं..
pyr bas ....kuch or nhi! yahi pyr hai ....bahut sundar lekh !! yadi apki anumati ho to m isse apne blog per publish karna chahunga....
ReplyDeleteJai Ho Mangalmay HO
आपकी कविता वटवृक्ष में पढी, आपका ब्लॉग देखा, बहुत अच्छा लगा , दिल्ली हिन्दी भवन में ब्लॉगर्स सम्मेलन में भी आपकी चर्चा सुनी । बधाई स्वीकारें......
ReplyDeleteप्यार को प्यार ही रहने दो कोई नाम न दो ..सदियों से यही तो एक अद्भुत सत्य, बेहतरीन शब्दों के साथ बेहतरीन कविता बधाई
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