Tuesday, September 15, 2009

जंग


Jung, ye lafz sunnen me hi kitna talkh kitna bitter lagta hai... ek sihran si daud jaati hai jism me jab bhi kisi jung ki tasweeren kisi news channel pe dekhte hain... chaaron taraf bas bum ke dhamake, dhuen ka gubbar, ghayal sainik, pati ya bete ki shahaadat par behis, besudh si aurten, rote bilakhte bachche jinhen chup karaane waala bhi koi nahin... har simt sirf aur sirf tabaahi ka manzar... phir wo jung chaahe kinhi bhi do mulqon ke beech ho... chaahe koi bhi jeete... par haarti insaaniyat hi hai... khud insaan ke haathon hi qatl ho jaati hai bechaari !
Jung kabhi bhi zarkhez nahi hoti... wo sirf niist o naa buud karna jaanti hai... har fateh ki buniyaad zindagi ki shiqast hoti hai... aisi jeet ka bhala koi kya jashn manaaye...
Saahir Ludhiyaanvi ji ki ek bahot hi dil ko chhu lene waali nazm abhi haal hi me padhi jo unhone jung pe likhi thi, aap bhi padhiye...

ख़ून अपना हो या पराया हो
नस्ल-ए-आदम का ख़ून है आख़िर
जंग मग़रिब में हो कि मशरिक में
अमन-ए-आलम का ख़ून है आख़िर

बम घरों पर गिरें कि सरहद पर
रूह-ए-तामीर ज़ख़्म खाती है
खेत अपने जलें या औरों के
ज़ीस्त फ़ाक़ों से तिलमिलाती है

टैंक आगे बढें कि पीछे हटें
कोख धरती की बाँझ होती है
फ़तह का जश्न हो कि हार का सोग
ज़िन्दगी मय्यतों पे रोती है

इसलिए ऐ शरीफ इंसानों
जंग टलती रहे तो बेहतर है
आप और हम सभी के आँगन में
शमा जलती रहे तो बेहतर है।

-- साहिर लुधियान्वी

मग़रिब : West; मशरिक : East; तामीर : Construction; ज़ीस्त : Life; फ़ाक़ों : Hunger

10 comments:

  1. जंग का अंजाम हमेशा बुरा ही होता है.. आपने बहुत गहराई के साथ यह पोस्ट लिखी है.. हैपी ब्लॉगिंग

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  2. dharmvir bharti in his andha yug says

    "टुकड़े-टुकड़े हो बिखर चुकी मर्यादा
    उसको दोनों ही पक्षों ने तोड़ा है
    पाण्डव ने कुछ कम कौरव ने कुछ ज्यादा
    यह रक्तपात अब कब समाप्त होना है
    यह अजब युद्ध है नहीं किसी की भी जय
    दोनों पक्षों को खोना ही खोना है
    अन्धों से शोभित था युग का सिंहासन
    दोनों ही पक्षों में विवेक ही हारा
    दोनों ही पक्षों में जीता अन्धापन"

    whatever we say the fact is "we are thrown in the face of each other" (Sartre).. war is our own invention.. it is going to stay here

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  3. हाँ जंग में तबाही का ही मंज़र होता है किसी भी सूरत में शह तो नहीं... बिलकुल जंग टलती रहे तो बेहतर है और मोहब्बत में दुनिया खिलती रहे तो बेहतर है .

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  4. आप सभी की टिप्पणियों के लिए धन्यवाद... अश्विनी जी सबसे पहले तो धर्मवीर भारती जी के "अँधा युग" से अवगत कराने का शुक्रिया... सच कहा आपने जंग हमारा ही आविष्कार है पर एक बुराई को जन्म जब हमने दिया है तो इसे ख़त्म भी हम ही कर सकते हैं... सोचने मे ज़रूर थोड़ा असंभव सा लगता है पर एक कोशिश तो फिर भी करी ही जा सकती है... आख़िर उम्मीद पे दुनिया कायम है...
    " दिल ना-उम्मीद तो नहीं, नाकाम ही तो है
    लम्बी है ग़म कि शाम, मगर शाम ही तो है "
    -- फैज़ अहमद फैज़

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  5. main kya kahun.......is shabd par kuchh kahane ko dil hi nahin hota......!!

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  6. @richa... i'll be happy if we, the human beings, bring all wars to an end... but this is wishful thinking... man by nature is an imperialist... we want to rule over someone.. and that is why war is going to stay here... & it is a manifestation of competition among us... people want to gain control over resources- material & human both. Is it practical to think that the USA will stop thinking of controlling vast oilfields in middle-east... and why should some beard-sporting gun-totting men dictate how should women live & behave... jung khatm hone ke liye 2 cheezen zaroori hain 1. hum auron ko unki marzi se jeene den. 2. doosre log hamari zindagi aur samaan ko barbad na kare.. But that's asking for too much...

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  7. @ ashwini ji
    sir i agree with you completely... it is not at all practical to think that USA would stop doing so or some beard-sporting gun-totting men would stop dictating others' life... i'm just saying its up to us to identify the wrong, to come forward and say NO, NO MORE, its enough now, we won't tolerate this any more.
    Tell me, did Britishers ever thought of leaving our country after ruling over us for more than 200 years... it was our freedom fighters who came forward with a NO. Someone has to take the initiative in any case...
    If thinking about peace is a wishful thinking let it be... lets just think good at least... aur waise bhi ye USA ye beard-sporting gun-totting men, ye to bade mudde hain aaj bhai bhai se lad raha hai aur dost dost se kam se kam wo jung to khatm kari hi ja sakti hai... aur wo humen aur aapko hum sabko mil kar hi karni hai...
    At least hum to abhi bhi kahenge ki "जंग टलती रहे तो बेहतर है, आप और हम सभी के आँगन में शमा जलती रहे तो बेहतर है"

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  8. क्या खेद प्रकट इस पर......
    जो हो चुका है उसे बदल नही सकते बस जो है हमारे बस में बस हम उसे ही रोक सकते है.....
    जैसे की साम्प्रदायिकता, क्षेत्रवाद, जातिवाद और भाषावाद..... ये सब हमारे समाज में जंग से भी बुरा प्रभाव फैला रही हैं......
    उस जंग को तो नही रोक पाए तो आइये इसी को रोकते है.....
    वैसे आपकी सुन्दर प्रस्तुति थी.....

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दिल की गिरह खोल दो... चुप ना बैठो...

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