Wednesday, August 18, 2010

सब "गुलज़ार" हो जाये...


सबसे पहले तो अपने सबसे पसंदीदा शायर को उनके जन्मदिन पर ढेर सारी दुआएँ, बधाईयाँ और प्यार और ये चंद अल्फ़ाज़ हमारी ओर से उनको जन्मदिन का छोटा सा तोहफ़ा -

वो जो फूँक दे जान लफ़्जों में
तो नज़्म भी साँस लेने लगे
धड़क उठे ग़ज़लों का दिल
और त्रिवेणियाँ बह निकलें
सफ़्हा दर सफ़्हा
किरदार जी उठें
हर्फ़ों को मानी मिल जाये
सब "गुलज़ार" हो जाये...

गुलज़ार साब के बारे में क्या कहें या कहाँ से कहना शुरू करें... कुछ धुंधला-धुंधला सा याद पड़ता है... जब छोटे थे तो लोग उनके बारे में ये मज़ाक में कहा करते थे जो समझ ना आये वो गुलज़ार... आज सोचते हैं तो हँसी आती है... गर वो लोग समझ पाते तो शायद जानते की गुलज़ार कौन हैं और क्या हैं... कलम के ऐसे जादूगर जो अपने शब्दों से बस जादू सा कर देते हैं... वो भी ऐसा जादू जो सीधे दिल को छूता है और सर चढ़ के बोलता है... नज़्मों, ग़ज़लों, त्रिवेणियों, कविताओं या कहानियों की गलियों से जब भी गुज़रे हैं, हर बार, बात को कहने का उनका मुख्तलिफ़ अंदाज़ दिल से "वाह !" निकलवाये बिना नहीं माना... ज़िन्दगी को देखने, समझने और अभिव्यक्त करने का उनका अनूठा अंदाज़, रिश्तों की बारीकियाँ, कुछ कही-अनकही बातें, आपको हर बार एक नया नज़रिया दे जाती हैं चीज़ों को देखने और समझने का...

गुलज़ार साब के लेखन की सबसे बड़ी विशिष्टता ये है की वो "आम" होते हुए भी ख़ास है... वैसी ही भाषा जैसा हम रोज़-मर्रा की आम ज़िन्दगी में बोलते हैं... शायद इसीलिए उनके लेखन से हम इनती आसानी से जुड़ पाते हैं... लगता है यही तो हम कहना चाह रहे थे... बस गुलज़ार साब ने हमारी सोच को शब्द दे दिये... उनकी नज़्मों में कभी एकदम बेबाक सी सच्चाई होती है जो आपको सोचने पे मजबूर कर देती है तो कभी कोई ख़ूबसूरत सी फैंटसी जो दिल को भीतर तक गुदगुदा जाती है... उनकी नज़्मों में पिरोई हुई उदासी भी हसीन लगने लगती है... अपने शब्दों से वो ऐसे बिम्ब और लैंडस्केप्स उकेर देते हैं की मानो किसी पेंटर ने शब्दों की कोई ख़ूबसूरत सी पेंटिंग बना दी हो या किसी फोटोग्राफ़र ने तमाम ख़ूबसूरती को अपनी फोटो में क़ैद कर लिया हो...

वो जो भी लिखते हैं बिलकुल उस किरदार में घुस के लिखते हैं... फिर चाहे वो संजीदा सी नज्में या कहानियाँ हों या बच्चों के लिये लिखे गीत और कवितायें... वो तो याद ही होगा आपको "जंगल जंगल बात चली है पता चला है, अरे चड्डी पहन के फूल खिला है, फूल खिला है..." स्कूल टाइम में हम बच्चों के लिये किसी नेशनल एंथम से कम नहीं हुआ करता था वो... :)

और चाँद के साथ उनका राब्ता तो जग ज़ाहिर हैं... वो एक सौ सोलह चाँद की रातें कोई कैसे भुला सकता है भला :) ... या फिर वो "बल्लीमारां के मोहल्ले की पेचीदा दलीलों की सी गलियाँ"... अरे उनके पसंदीदा शायर की ग़ालिब साब की बात कर रहे हैं हम जिनके ऊपर उन्होंने एक कमाल का सीरियल बनाया था "मिर्ज़ा ग़ालिब" जो की एक ज़माने में दूरदर्शन पर आया करता था... तब तो ख़ैर क्या ही समझ आता था पर अभी हाल ही में दोबारा देखा सी.डी. पर और बस मज़ा आ गया... क्या कमाल का डायरेक्शन था और क्या बेहतरीन श्रद्धांजलि थी अपने पसंदीदा शायर को... आपने नहीं देखा तो हमारी मानिये और ज़रूर देखिये... ग़ालिब के लिये ना सही गुलज़ार के लिये ही सही :)

वैसे तो आजतक गुलज़ार साब की बहुत सी नज़्में शेयर करीं हैं आप सब के साथ पर आज उनकी अपनी नज़्मों के साथ एक गुफ़्तगू शेयर करने जा रहे हैं... अस्तित्व की लड़ाई यहाँ भी है... एक शायर और उसकी नज़्म के बीच... पर उम्मीद है आपको पसंद आएगी...

कभी-कभी, जब मैं बैठ जाता हूँ
अपनी नज़्मों के सामने निस्फ़ दायरे में
मिज़ाज पूछूँ
कि एक शायर के साथ कटती है किस तरह से ?

वो घूर के देखती हैं मुझ को
सवाल करती हैं ! उनसे मैं हूँ ?
या मुझसे हैं वो ?
वो सारी नज़्में,
कि मैं समझता हूँ
वो मेरे 'जीन' से हैं लेकिन
वो यूँ समझती हैं उनसे है मेरा नाक-नक्शा
ये शक्ल उनसे मिली है मुझको !

मिज़ाज पूछूँ मैं क्या ?
कि एक नज़्म सामने आती है
छू के पेशानी पूछती है -
"बताओ गर इन्तिशार है कोई सोच में तो ?
मैं पास बैठूँ ?
मदद करूँ और बीन दूँ उलझने तुम्हारी ?"

"उदास लगते हो," एक कहती है पास आ कर
"जो कह नहीं सकते तुम किसी को
तो मेरे कानों में डाल दो राज़
अपनी सरगोशियों के, लेकिन,
गर इक सुनेगा, तो सब सुनेंगे !"

भड़क के कहती है एक नाराज़ नज़्म मुझसे
"मैं कब तक अपने गले में लूँगी
तुम्हारी आवाज़ कि खराशें?"

एक और छोटी सी नज़्म कहती है
"पहले भी कह चुकी हूँ शायर,
चढ़ान चढ़ते अगर तेरी साँस फूल जाये
तो मेरे कंधे पे रख दे,
कुछ बोझ मैं उठा लूँ !"

वो चुप-सी इक नज़्म पीछे बैठी जो टकटकी बाँधे
देखती रहती है मुझे बस,
न जाने क्या है उसकी आँखों का रंग
तुम पर चला गया है
अलग-अलग हैं मिज़ाज सब के
मगर कहीं न कहीं वो सारे मिज़ाज मुझमे बसे हुए हैं
मैं उनसे हूँ या....

मुझे ये एहसास हो रहा है
जब मैं उनको तखलीक़ दे रहा था
वो मुझे तखलीक़ दे रही थीं !!

-- गुलज़ार


जाते जाते गुलज़ार साब के जन्म दिन पर एक बार फिर से उनको ढेरों बधाईयाँ और ढेर सारी दुआएँ... ईश्वर उन्हें लम्बी उम्र दे और सदा स्वस्थ रखे... लॉन्ग लिव गुलज़ार साब !!!

20 comments:

  1. गुलज़ार साब के बारे में जितना कहा जाए कम है.. आपने ख़ूबसूरत शब्दों में उन्हें बखूबी उकेरा है...

    उन्हें जन्मदिन की बहुत-बहुत शुभकामनाएं..

    हैपी ब्लॉगिंग

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  2. इस एक पंग्क्ति पर जरा सा ऐतराज़ है मोहतरमा

    "वो जो भी लिखते हैं बिलकुल उस किरदार में घुस के लिखते हैं"

    बकौल गुलज़ार 'मेरे लिखे गीतों में किरदार खुद अपनी जबां में बोलता है', मैं लिखने की कोशिश नहीं करता... मसलन एक अधेड़ आदमी इश्क में कहेगा कि "डर लगता है तनहा सोने में जी "

    बहरहाल... सुबह-सुबह आपने अच्छा पढाया... शुक्रिया... ऐसे ही कोशिश करें हमेशा कुछ अलग बताने का... अभी ऍफ़ एम् रेनबो ने भी गुलज़ार पर कार्यक्रम पेश किया था पता चला वे एक मोटर मेकैनिक थे... अब पेंच कसने वाला देखिये आज क्या कस रहा है और क्या खूब कस रहा है.

    तो सम्पुरण सिंह कालरा को और जानना बेहतर रहा और बंदिनी के मोरा गोरा अंग लेई ले से रांझा-रांझा तक का सफ़र खुशगवार... हमें उनकी पेचीदगी पसंद आती है "जो रात हमने बिताई मर के वो रात तुमने बीती होती"

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  3. @ आशीष जी... शुक्रिया !
    @ माधव जी... हम भी उनके अंदाज़ और आवाज़ के दीवाने हैं...
    @सागर... सागर साहब आपका ऐतराज़ सर आँखों पर...

    एक तो हम राइटर नहीं हैं थोड़ा बहुत स्क्रिबल कर लेते हैं बस और दूसरा ये की अपने फेवरेट शायर और लेखक को उनके जन्मदिन पर विश करने के इक्साइट्मन्ट में शायद ग़लत शब्दों का चुनाव करा हमने :)

    कहना बस इतना चाह रहे थे की चाहे वो "कितनी गिरहें खोली हैं मैंने" लिख कर एक स्त्री के मन की उलझनों को इतनी अच्छी तरह से अभिव्यक्त करें या "बस्ता फ़ेंक ले लोची भागा, रौशनआरा खेत की जानिब, चिल्लाता चल गुड्डी चल, पक्के जामुन टपकेंगे" में एक बच्चे की आतुरता दिखाएँ, हर एक अभिव्यक्ति में उनके शब्द उस किरदार को इतना जीवंत कर देते हैं की लगता ही नहीं वो एक ही व्यक्ति की सोच हो सकती है...

    बाक़ी गुलज़ार साब के बारे में कुछ भी कहना सूरज को दिया दिखाने के समान है... और ये गुस्ताखी हम करना भी नहीं चाहते :)

    हाँ उनके बारे में आगे भी ऐसे ही शेयर करते रहेंगे... गुलज़ार को चाहने वाले उनके बारे में बात कर के कितना ख़ुश होते हैं इस बात से तो आप भी वाक़िफ़ होंगे :)

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  4. आपके इस कमेन्ट से दो ऐतराज़ और ...
    "एक तो हम राइटर नहीं हैं थोड़ा बहुत स्क्रिबल कर लेते हैं बस और दूसरा ये की अपने फेवरेट शायर और लेखक को उनके जन्मदिन पर विश करने के इक्साइट्मन्ट में शायद ग़लत शब्दों का चुनाव करा हमने :)"

    यहाँ कौन राईटर है ? (हम भी बस कभी कभी मौज ले लेते हैं इस शब्द पर, पर अफवाहों पर ध्यान ना दें :)) शब्दों का चुनाव गलत नहीं था, हमने बस ध्यान दिलाया... पोस्ट ऐसे ही तो सार्थक होती हैं... कुछ आप कहें, कुछ हम जोड़ें,

    शीन काफ निजाम का एक शेर है :
    " बात से बात निकलती है,
    बात बांकी है तो हम भी बांकी हैं"

    जारी रहिये... बात बेसबब, बहस बेहिसाब

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  5. @ सागर... बिलकुल ध्यान नहीं दिया सर जी अफवाहों पर... आप ऐसे ही मौज लेते रहें... हम भी ज्वाइन कर लेंगे आपको कभी-कभार :)

    और आपके ऐतराज़ का भी धन्यवाद... पोस्ट सार्थक करने की तरफ़ पहला क़दम...

    कफ़ील आज़ेर साहब ने भी एक बार कहा था... "बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जायेगी"... ऐतराज़ यूँ ही जारी रहे :)

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  6. मजा आ गया :)
    आज मैं ज्यादा कुछ अपने ब्लॉग पे लिखने के मुड में नहीं था, कल सोचा था की गुलज़ार साहब पर एक पोस्ट लिखूंगा,लेकिन आज बस ऐसे ही एक छोटी सी पोस्ट के आखिर में उन्हें जन्मदिन की बधाई दे दिया :) पर इतना पता था की गुल्ज़ारियत धर्म निभाने वाले लोग आज जरूर कुछ न कुछ पोस्ट करेंगे,


    हैप्पी बर्थडे :)

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  7. गुलजार के लेखन की सबसे बड़ी विशिष्टता है वो 'आम' होते भी ''खास' है..

    एक ही वाक्य में बहुत कुछ कह दिया.

    गुलजार जी को जन्मदिन की बधाई.

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  8. गुलजार के लेखन की सबसे बड़ी विशिष्टता है की वो 'आम' होते हुए भी 'खास' है..

    एक ही वाक्य में बहुत कुछ कह दिया.

    गुलजार जी को जन्मदिन की बधाई.

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  9. सबसे पहले शुक्रिया इस पोस्ट का, इस नज़्म का...
    गुलज़ार साहब को बहुत बधाई...वो ये जादू रचते रहे हमेशा..

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  10. वो घूर के देखती हैं मुझ को
    सवाल करती हैं ! उनसे मैं हूँ ?
    या मुझसे हैं वो ?
    वो सारी नज़्में,
    कि मैं समझता हूँ
    वो मेरे 'जीन' से हैं लेकिन
    वो यूँ समझती हैं उनसे है मेरा नाक-नक्शा
    ये शक्ल उनसे मिली है मुझको !
    waaaaaaaaaaaaaah, janamdin ka tohfa hamen mila

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  11. बहुत खूबसूरत, वो शायर हम सबका है और उसके शब्द हम सबके सिर चढ़ के बोलते हैं

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  12. Gulzaar ko sirf kavy rachnaon me nahi,katha,nirdeshan adi sabhi me maharath haasil hai!Ekhi geet unhen waise amar kar sakta tha,"Hamne dekhi hai in aankhon ki mahakti khushbu!"

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  13. अब गुलज़ार जी के लिये कुछ कहना तो सूरज को दीया दिखाना हुआ…

    बस सिर्फ़ इतना ही……………उम्र दराज़ हो, हर खुशी नसीब हो।

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  14. गुलज़ार साहब को जन्मदिन की बधाईयाँ।

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  15. कई बार पढ़ा, बार-बार पढ़ा, तुमको भी पढ़ा और गुलज़ार को भी पढ़ा.....कुछ जलन टाइप हुई...कंफ्युस हुई की ये जलन गुलज़ार से हुई या तुमसे.....अब देखो गुलज़ार से तो जल नहीं सकते ....तो यकीनन तुमसे ही जल गए....लगा कि ज्यादा शिद्दत से उन्हें पसंद करती हो ....लेकिन इंड तक आते-आते समझ गए कि हम तो लेखनी के ही कायल है.....इतना ओवर कांफिडेंस अच्छी बात नहीं है....ठीक है ठीक है... उनकी कलम को भी शेयर किया .....अब खुश!
    Yes LONG LIVE GULZAAR SAA'b

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  16. पोस्ट पढने में आनंद आया....अब तो ठीक ठीक याद भी नहीं कि इस आनंद में असर किसका ज्यादा है गुलज़ार साहब का, ऋचा जी का या फिर ऋचा & सागर के वार्तालाप का :-)

    वैसे हम भी अपने दस्तख़त किये देते हैं कि गुलज़ार साहब हमारे भी पसंदीदा हैं

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  17. गुलज़ार साहब को हमने भी याद किया था....क्या बुरा है कि गुलज़ार के फैन्स के साथ यहां भी बांट लिया जाए
    http://bura-bhala.blogspot.com/2011/08/blog-post_18.html

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दिल की गिरह खोल दो... चुप ना बैठो...