Monday, August 30, 2010

गुमशुदा...


बहुत परेशाँ हूँ कल से
कितना ढूंढा मिल ही नहीं रही
जाने कहाँ रख के भूल गयी हूँ
कल तुम्हें रुखसत करते वक़्त
दिखी थी आख़री बार
तब से पता नहीं कहाँ खो गयी है
मन के आले पे ही तो रखी थी
उतार कर शायद
पर अब वहाँ नहीं है
कमबख्त! जाने कहाँ गयी
अभी तुम आते होगे
और फिर डांटोगे
"कितनी बार कहा
ये मुस्कराहट हमेशा पहने रहा करो,
तुम मुस्कुराती हुई अच्छी लगती हो..."

-- ऋचा

12 comments:

  1. Kya gazbkee maasoomiyat se likha hai aapne!

    ReplyDelete
  2. मुस्कराहट सब पर अच्छी लगती है, आप पर और भी।

    ReplyDelete
  3. आपकी भोली सी, मासूम सी, प्यारी सी रचनाएँ पढ़ कर मन आनंदित हो जाता है

    ReplyDelete
  4. .सही में मुस्कराहट पहने रहा करो...:)

    ReplyDelete
  5. aur ab kahan se laaun ise.... daantne hi aa jao, tumse atakker meri muskaan tumhare hi saath chali gai hai, aao... warna shikayat tumhe hi hogi

    ReplyDelete
  6. चंद लफ्जों में बहुत ऊँची बात कही, बहुत सुन्दर !

    ReplyDelete
  7. अच्छी प्रस्तूति,
    कृपया अपने बहुमूल्य सुझावों और टिप्पणियों से हमारा मार्गदर्शन करें:-
    अकेला या अकेली

    ReplyDelete
  8. मुस्कराते रहिये... बहुत प्यारी क्यूट पोस्ट...

    ReplyDelete
  9. मुस्कराहट सी ही प्यारी नज़्म...

    ReplyDelete

दिल की गिरह खोल दो... चुप ना बैठो...