बहुत परेशाँ हूँ कल से
कितना ढूंढा मिल ही नहीं रही
जाने कहाँ रख के भूल गयी हूँ
कल तुम्हें रुखसत करते वक़्त
दिखी थी आख़री बार
तब से पता नहीं कहाँ खो गयी है
मन के आले पे ही तो रखी थी
उतार कर शायद
पर अब वहाँ नहीं है
कमबख्त! जाने कहाँ गयी
अभी तुम आते होगे
और फिर डांटोगे
"कितनी बार कहा
ये मुस्कराहट हमेशा पहने रहा करो,
तुम मुस्कुराती हुई अच्छी लगती हो..."
-- ऋचा
great piece of abstract thinking... beautiful expression..
ReplyDeleteHappy Blogging
अच्छी प्रस्तूति।
ReplyDeleteKya gazbkee maasoomiyat se likha hai aapne!
ReplyDeleteमुस्कराहट सब पर अच्छी लगती है, आप पर और भी।
ReplyDeleteआपकी भोली सी, मासूम सी, प्यारी सी रचनाएँ पढ़ कर मन आनंदित हो जाता है
ReplyDelete.सही में मुस्कराहट पहने रहा करो...:)
ReplyDeleteaur ab kahan se laaun ise.... daantne hi aa jao, tumse atakker meri muskaan tumhare hi saath chali gai hai, aao... warna shikayat tumhe hi hogi
ReplyDeleteचंद लफ्जों में बहुत ऊँची बात कही, बहुत सुन्दर !
ReplyDeleteअच्छी प्रस्तूति,
ReplyDeleteकृपया अपने बहुमूल्य सुझावों और टिप्पणियों से हमारा मार्गदर्शन करें:-
अकेला या अकेली
बहुत सुन्दर भाव ....
ReplyDeleteमुस्कराते रहिये... बहुत प्यारी क्यूट पोस्ट...
ReplyDeleteमुस्कराहट सी ही प्यारी नज़्म...
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